भगवान विष्णु

भगवान विष्णु बसंत पंचमी का त्योहार हर वर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन मनाया जाता है. वहीं, माता सरस्वती से जुड़ी कईं दिलचस्प कथाएं हैं जिनमें से एक है कि आखिर भगवान विष्णु और माता सरस्वती का युद्ध क्यों हुआ था. आइए जानते हैं इसके पीछे की कथा.

जब अचानक यज्ञ के दौरान प्रकट हुईं सरस्वती

एक बार ब्रह्मा जी एक यज्ञ कर रहे थे और उसमें भाग लेने के लिए देवता भी आए हुए थे. यज्ञ के बीच में अचानक माता सरस्वती की आवाज सुनाई दी. वह क्रोधित थीं और उनके क्रोध से खून बह रहा था. उनकी वीणा हथियार बन गई थी और उसने तीनों लोकों को हिला दिया था. सरस्वती ने ब्रह्मा जी से कहा कि उनका अपमान किया गया है और अब वह यज्ञ को नष्ट कर रही हैं क्योंकि ब्रह्मा जी ने ज्ञान के बजाय धन को चुना है.

उसी समय उपस्थित विष्णु जी ने कहा, ‘जब तक मैं मौजूद हूं, तब तक तुम्हारी आवश्यकता नहीं है.’ सृजन की कला की मधुरता खोज ली गई है. तुम्हारा वर्तमान ज्ञान सागर ने खोज लिया है. तुम यज्ञ को संकट में डाल रहे हो और मैं जानता हूं कि इसका कोई औचित्य नहीं है. इस यज्ञ को नष्ट करने से पहले तुम्हें मेरा विनाश करना होगा.

भगवान विष्णु माता सरस्वती को आया क्रोध

यह देखकर माता सरस्वती ज्वालामुखी की तरह भड़क उठीं. उनके वस्त्र काले पड़ गए थे. उनका कमल भी काला हो रहा था. हंस काला होने लगा था. वह अपना ही रूप उलट रही थीं. सरस्वती और विष्णु एक-दूसरे के सामने आए तो ब्रह्मांड उनसे प्रार्थना करने लगा. देवता ने देवी को, पुरुष ने प्रकृति को चुनौती दी थी. ब्रह्मांड के दो भाग परस्पर युद्ध करने जा रहे थे. सरस्वती ने तुरंत माया-शक्ति को एक विशाल नारकीय अग्नि के रूप में प्रकट कर दिया. किंतु विष्णु जी ने उसे तत्काल बुझा दिया. फिर सरस्वती ने कपालिका शक्ति प्रकट की किंतु विष्णु जी ने उसे भी विफल कर दिया.

इसके बाद देवी ने कई भयानक शक्तियों का आह्वान करते हुए कालिका शक्ति को उत्पन्न किया परंतु विष्णु जी के सामने वह शक्ति भी विफल हो गईं. देवी क्रोध से जल रही थीं और उनकी आंखें खून की तरह लाल थीं. भगवान विष्णु उनके केश खुले थे, हंस चिल्ला रहा था, कमल मुरझा चुका था. सबके देखते-देखते माता सरस्वती का रूप बदलने लगा. वह तरल हो रही थीं तथा उनका हिम-प्रतिमा जैसा शरीर पिघल रहा था. माता सरस्वती ने एक विशाल भंवर का रूप धारण कर लिया जिसने धरती में एक विशाल कुंड बना दिया और देवी उसे जल से लबालब भर रही थीं.

माता सरस्वती नदी में हुई परिवर्तित

फिर पार्वती ने पूछा, ‘यह क्या कर रही हैं?’ फिर ब्रह्मा जी ने उत्तर देते हुए कहा कि, ‘ सरस्वती नदी में परिवर्तित हो रही हैं क्योंकि वह यज्ञ को नष्ट नहीं पाई इसलिए अब इसे डुबाना चाहती हैं.’ वहां अब देवी नहीं थीं. केवल एक जलधारा थी जो क्रूरतापूर्वक यज्ञ-वेदी की ओर बढ़ रही थी. भूलोक की त्वचा को छील रही थी. पत्थरों को धूल में मिला रही थी. उसने क्रुद्ध रूप धारण कर लिया था मानो पृथ्वी की शिराओं में रक्त धधक रहा हो. उस धारा का प्रवाह इतना प्रचंड था कि लगा जैसे वह यज्ञ को रसातल में ले जाएंगी. विष्णु जी माता सरस्वती की ओर बढ़ने लगे.

फिर मां लक्ष्मी ने पूछा, ‘क्या श्री हरि उसे शांत कर पाएंगे?’ हां में शिव ने सिर हिलाया, ‘जैसे मैंने गंगा को शांत किया था और जैसे काली को शांत किया था.’

विष्णु जी नदी के मार्ग में लेट गए. उन्होंने अनंत शयन की मुद्रा धारण कर ली किंतु उन्हें नींद नहीं आई. वे देख रहे थे कि जल-प्रवाह तेज हो रहा है. सरस्वती अपने तरल रूप में रोष के साथ आगे बढ़ रही थीं. धीरे धीरे और करीब आ गईं. माता सरस्वती ने बाढ़ का रूप धारण कर लिया था और वह निकट आ चुकी थी. उन्होंने लहर की तरह गरजना शुरू कर दिया. भगवान विष्णु वह तटों के ऊपर से छलकने लगी. भगवान विष्णु वह पहले से भी निकट थी. उसने धरती को जैसे चीर दिया था.

भगवान विष्णु करीब से यह दृश्य देखकर मां लक्ष्मी घबरा गईं. देवता झेंप गए. फिर विष्णु जी से जरा-सी दूरी पर आकर नदी सहसा मुड़ गई और दाहिनी ओर बहने लगी. उसके प्रवाह से धरती में गड्ढा हो गया जिससे होते हुए वह पाताल लोक में चली गईं. वह ब्रह्मांड की आंतों में लुप्त हो गईं. देवताओं ने राहत की सांस ली. सब आश्चर्य से देख रहे थे और सरस्वती स्वयं को रिक्त कर रही थीं. देवी ने भगवान विष्णु के समक्ष समर्पण कर दिया था.

‘देवता ने फिर से देवी पर नियंत्रण पा ही लिया,’ पार्वती ने शिव की ओर देखकर कहा. शिव ने देवी पार्वती को पुष्प अर्पित किया और बोले, ‘देवी ने भी महिषासुर पर अंकुश लगाया था. देवी ने रक्तबीज को भी नियंत्रित किया था. एक देवता ने भी दूसरे देवता को नियंत्रित किया था जब मैंने शरभ के रूप में नृसिंह को शांत किया था. और श्रीहरि ने मेरे रुद्र तांडव को शांत किया था. भगवान विष्णु यह देवता या देवी की बात नहीं है, बल्कि यह संसार के लिए संकट बने विष का प्रतिकार करने की बात है. और विष का लिंग नहीं होता

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