अंगद का पैर। रावण और अंगद का संवाद। रावण को अंतिम शांति प्रस्ताव।
Ram setu राम सेतु निर्माण के बाद समस्त वानर सेना लंका पहुंचती है
राम सेतु निर्माण के बाद समस्त वानर सेना समुद्र को पार करके लंका तक पहुंच जाती है। लंका पहुंचने के बाद श्री राम सुग्रीव को आदेश देते हैं कि वह अपने-अपने पड़ाव यहां डालें। वानर सैनिक वहां पर अपने-अपने तंबू खड़े करने में व्यस्त हो जाते हैं।
Rawan रावण अपने गुप्तचरों को श्री राम की सेना में भेजता है
राम की सेना लंका में प्रवेश कर चुकी है यह खबर सुनकर लंका के राजा रावण भी आश्चर्य में पड़ जाता है। वह अपने गुप्तचरों को श्री राम की सेना में भेजकर उनके भेद जानने के लिए कहता है।
सुख और सारन भेष बदलकर श्री राम की सेना में घुसते हैं
रावण के दो गुप्तचर, जिनमें एक रावण का खास सैनिक था जिनके नाम सुख और सारन था, भेष बदलकर श्री राम की सेना में घुस जाते हैं। वे स्वयं को वानर सेना के दो सैनिक के रूप में पेश करते हैं और श्री राम की सेना में घुसने में सफल हो जाते हैं।
सुख और सारन श्री राम की सेना का भेद जानने की कोशिश करते हैं
सुख और सारन श्री राम की सेना के बीच घूमते हुए उनका दल बल और युद्ध की रणनीति का पता लगाने की कोशिश करते हैं। वे वानर सैनिकों से बात करते हैं और उनसे उनके बल और पराक्रम के बारे में पूछते हैं।
सुख और सारन को श्री राम की सेना का भेद नहीं मिल पाता
लेकिन वानर सैनिक सुख और सारन को कोई भी महत्वपूर्ण जानकारी नहीं देते हैं। वे उन्हें बताते हैं कि श्री राम और उनकी सेना बहुत शक्तिशाली है और वे रावण को निश्चित रूप से पराजित करेंगे।
वानर सेना का लंका प्रस्थान तथा राम सेतु निर्माण । Ram Setu Nirman Story in Hindi
सुख और सारन वापस लंका जाते हैं और रावण को रिपोर्ट करते हैं
अंत में, सुख और सारन लंका वापस जाते हैं और रावण को रिपोर्ट करते हैं कि श्री राम और उनकी सेना बहुत शक्तिशाली है। वे रावण को बताते हैं कि श्री राम को पराजित करना बहुत मुश्किल होगा।
रावण सुख और सारन की रिपोर्ट सुनकर चिंतित हो जाता है
रावण सुख और सारन की रिपोर्ट सुनकर चिंतित हो जाता है। वह जानता है कि श्री राम और उनकी सेना को पराजित करना बहुत मुश्किल होगा। लेकिन वह हार मानने वाला नहीं है। वह श्री राम और उनकी सेना से युद्ध करने के लिए तैयार हो जाता है।
Rawan रावण के गुप्तचर
रावण के गुप्तचर सुख और सारन वानर सैनिकों का वेश धारण करके श्री राम की सेना में इधर-उधर घूम रहे थे ताकि उनकी पूरी छावनी की व्युह्रचना रचना का भेद जान सकें। लेकिन विभीषण उन दोनों को पहचान जाते हैं और उन्हें पकड़कर श्री राम
के समक्ष लेकर आते हैं। लक्ष्मण, जामवंत, अंगद, और सुग्रीव आदि सभी श्रीराम से आग्रह करते हैं कि उन दोनों गुप्तचरों को मृत्युदंड दिया जाए क्योंकि युद्ध नीति यही कहती है । एक गुप्त चर यदि पकड़ा जाए तो उसके लिए मृत्युदंड का ही विधान है। लेकिन श्री राम, रावण के दोनों को गुप्तचरों का छोड़ने का आदेश देते हैं और कहते हैं कि युद्ध में विजय और पराजय केवल गुप्तचरों पर निर्भर नहीं करते और यदि ऐसा है तो योद्धा का रण कौशल और पराक्रमी होने व्यर्थ है। इसलिए श्रीराम दोनों लोग गुप्तचरों को मुक्त करने का आदेश देते हैं उन दोनों को यह भी कहते हैं कि, यदि तुमने हमारी पूरी छावनी का अवलोकन न किया हो तो तुम अभी भी पूरी छावनी का अवलोकन कर सकते हो बल्कि महाराज विभीषण तुम्हें खुद अवलोकन करवाएंगे। श्रीराम के मुख से ऐसे वाक्य सुनकर दोनों गुप्तचर उनके पैरों में गिर जाते हैं और बोलते हैं कि हे कृपा निधान, हम तो मृत्यु के पात्र हैं, लेकिन फिर भी आप हमें मुक्त कर रहे हैं । वाकई में आप जैसा उदार और दयालु शत्रु हमने आज तक नहीं देखा। यह कहकर दोनों गुप्तचर चले जाते हैं। जब यह खबर रावण को पता चलती है तो वह अपने दोनों गुप्तचरों को धिक्कारता है और कहता है कि तुमने अपने प्राणों के भय से आत्मसमर्पण कर दिया।
Angad अंगद को दूत बनाकर भेजना
अगले दिन श्रीराम की सेना लंका पर चढ़ाई करने के लिए तैयार थी। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अंतिम बार रावण को अवसर देने का विचार किया। इसलिए उन्होंने एक बार फिर रावण के पास शांति प्रस्ताव भेजने का निश्चय किया। श्री राम की तरफ से रावण को शांति प्रस्ताव देने के लिए बाली पुत्र अंगद को चुना जाता है। जबकि लक्ष्मण जी बजरंगबली हनुमान को दूत बनाकर भेजने का परामर्श देते है लेकिन श्रीराम ने यह सोच कर उन्हें दूत बनाकर नहीं भेजा क्योंकि वह पहले भी रावण के दरबार में जा चुके हैं। इससे रावण को यही लगेगा कि हमारी सेना में हनुमान के अतिरिक्त कोई वीर वानर नही है। युवराज अंगद को शांति प्रस्ताव लेकर लंका में भेजा जाता है। लंका के द्वार रक्षक अंगद को महाराज रावण के दरबार में ले जाते हैं। रावण के दरबार में अंगद का एक दूत की तरह सम्मान न होने के कारण वह बोलता है।
Angad or Rawan अंगद रावण संवाद
हे रावण, मैं श्रीराम का दूत हु इसलिए आपका कर्तव्य था की मुझे एक दूत की तरह सम्मान देकर मेरे लिए एक आसन की व्यवस्था होनी चाहिए थी । किंतु आपने ऐसा नहीं किया इसलिए मेरा यह धर्म बनता है की मैं यहां से लौट जाऊं। लेकिन मेरे ऐसा करने से श्रीराम प्रभु का संदेश आप तक नहीं पहुंच पाएगा। इसीलिए मैं स्वयं ही अपने लिए एक उचित आसन का प्रबंध करता हूं। इतना कहकर अंगद अपनी पूंछ से रावण के सिंहासन जितना ऊंचा आसन बना लेता है , और इस पर बैठकर बोलता है… हे लंकापति रावण, मैं महाराज बाली का पुत्र अंगद हूं। मेरे प्रभु श्री राम ने मुझे आपको अंतिम अवसर के रूप में शांति प्रस्ताव सुनाने के लिए भेजा है । अतः श्रीराम का संदेश ध्यान से सुने ।
हे रावण, आप त्रिलोक विजयी, अत्यंत शक्तिशाली, भगवान शिव के परम भक्त और परम ज्ञानी हैं। उसके पश्चात भी आपने जगत में निंदा के योग्य कार्य किया है जिसमे आपने हमारे स्वामी श्री राम की पत्नी सीता का हरण किया है। श्री राम अपने पत्नी सीता को मुक्त कराने और आपको आपके कर्मों का दंड देने के लिए लंका के द्वार तक आ गए हैं । लेकिन उन्होंने आपको अंतिम बार शांति स्थापित करने का अवसर दिया है। श्री राम का कथन है कि आप उनकी पत्नी सीता को सम्मान सहित उन्हें लौटा दे, तो वह बिना युद्ध किए वापस लौट जाएंगे और आपकी लंका नगरी भी विध्वंस होने से बच जाएगी।
अंगद के मुंह से शांति प्रस्ताव सुनने के बाद रावण का अहंकार और भी बढ़ जाता है क्योंकि वह सोचता हैं कि राम ने मेरे भय के कारण युद्ध से बचने के लिए शांति प्रस्ताव भेजा है। रावण हंसी उड़ाते हुए कहता है कि, तुम्हारे राम में मुझसे युद्ध करने की हिम्मत नहीं है। इसलिए उसने तुम्हें दूत बनाकर शांति का प्रस्ताव भेजा है, अगर सच्चा वीर होता तो सबसे पहले मुझ पर आक्रमण करता। इस तरह बार-बार दूत भेजकर अपना अपमान नहीं करवाता। रावण के इस अहंकार का जवाब देते हुए अंगद ने कहा, अहंकारी रावण, श्रीराम ने शांति प्रस्ताव इसलिए भेजा है क्योंकि वह सच्चे वीर है, वह नहीं चाहते कि तुम्हारे कुकर्म के कारण लंका के निर्दोष लोग मारे जाएं। और हां यदि आपको अपनी और अपने योद्धाओं की शक्ति पर इतना ही अभिमान है, तो मैं अपना एक पैर आप के दरबार में जमा देता हूं, और आपके सभी योद्धाओं को चुनौती देता हूं, कि अगर उनमें हिम्मत और साहस है तो वह मेरे पैर को जमीन से हिला कर दिखाएं। यदि आपका कोई भी योद्धा मेरे पैर को जमीन से उठा देगा तो मैं अपने स्वामी श्री राम की ओर से आपको या वचन देता हूं, कि वह हार मान कर वापिस लौट जाएंगे।
Angad’s Foot अंगद का पैर
यह कहकर वीर अंगद अपना एक पैर जोर से जमीन पर पटक कर उसे वही जमा देते हैं, तथा रावण के सभी योद्धाओं को
अपना पैर हिलाने की चुनौती देते हैं। उसके बाद रावण का एक एक शक्तिशाली और महाभट्ट योद्धा आते हैं लेकिन उनमें से कोई भी अंगद के पैर को जरा सा भी हिला नहीं पाता। रावण का सबसे प्रिय पुत्र और सबसे पराक्रमी योद्धा इंद्रजीत भी अंगद के पैर को हिला नहीं पाता तो ग्लानि से अपने आसन पर जाकर बैठ जाता है। आखिर में जब रावण यह देखता है कि उसका कोई भी योद्धा अंगद के पैर को हिला नहीं पा रहा तो वह स्वयं जाता है। जब रावण अंगद का पैर उठाने के लिए नीचे झुकता है तो अंगद एकदम से अपना पैर हटा लेता है जिससे रावण का मुकुट नीचे जमीन पर गिर जाता है । रावण का मुकुट उठाकर अंगद ने सावधान करते हुए वह मुकुट बाहर फेंक देते हैं। अंत में अंगद कहता है कि, हे रावण, मेरी चुनौती आपके योद्धाओं के लिए थी आपके लिए नहीं। मैं आपको अब भी यही परामर्श दूंगा कि आप सीता माता को सम्मान पूर्वक श्री राम को लौटा दीजिए और उनकी शरण में जाकर उनसे क्षमा मांग लीजिए तो आप की असुर जाती विध्वंस होने से बच जाएगी। यह कहकर अंगद उड़कर वहां से वापस आ जाता है।