Vikram Betaal एक बार, राजा विक्रमादित्य अपने मंत्री मलयध्वज के साथ जंगल में घूम रहे थे। रास्ते में, उन्होंने एक पेड़ पर लटके हुए एक आदमी को देखा। आदमी ने राजा को आवाज़ दी और कहा, “हे राजन! मैं एक बेताल हूँ। अगर तुम मुझे अपने कंधे पर रखकर सूर्योदय तक घर ले जाओगे, तो मैं तुम्हें एक कहानी सुनाऊँगा।”

राजा विक्रमादित्य ने बेताल की बात मान ली और उसे अपने कंधे पर बैठा लिया। बेताल ने एक कहानी सुनाई, जो इस प्रकार थी:

Story कहानी

एक बार, एक राजा मांडलिक था। उसके दो बच्चे थे, एक लड़का और एक लड़की। लड़का का नाम वीर था और लड़की का नाम लावण्यवती था। वीर बड़ा होकर एक शक्तिशाली योद्धा बना, जबकि लावण्यवती एक सुंदर और बुद्धिमान लड़की थी।

एक दिन, राजा मांडलिक ने अपने बच्चों के विवाह की बात सोची। उसने एक ज्योतिषी को बुलाया और उनसे पूछा कि उनके बच्चों के लिए कौन से जोड़े सबसे उपयुक्त होंगे। ज्योतिषी ने कहा, “आपके बेटे के लिए एक ऐसी लड़की सबसे उपयुक्त होगी, जिसकी उम्र उससे कम हो। आपकी बेटी के लिए एक ऐसी लड़की सबसे उपयुक्त होगी, जिसकी उम्र उससे अधिक हो।”

राजा मांडलिक ने अपने बच्चों की शादी के लिए एक समारोह का आयोजन किया। समारोह में कई राजाओं और महाराजाओं ने भाग लिया।

समारोह के दौरान, वीर ने एक लड़की को देखा, जिसकी उम्र उससे कम थी। वह लड़की बहुत सुंदर थी। वीर ने उस लड़की से शादी करने का फैसला किया।

लावण्यवती ने भी एक लड़की को देखा, जिसकी उम्र उससे अधिक थी। वह लड़की भी बहुत सुंदर थी। लावण्यवती ने उस लड़की से शादी करने का फैसला किया।

राजा मांडलिक ने अपने बच्चों की इच्छा को पूरा किया और दोनों की शादी कर दी।

कुछ समय बाद, वीर की पत्नी ने एक बेटे को जन्म दिया। लावण्यवती की पत्नी ने भी एक बेटे को जन्म दिया।

बेटा होने पर, वीर और लावण्यवती ने अपने बच्चों का नाम रख दिया, “संतोष”।

संतोष बड़ा होकर एक विद्वान और गुणी व्यक्ति बना। वह अपने माता-पिता का आज्ञाकारी और भक्त पुत्र था।

एक दिन, संतोष अपने माता-पिता के साथ जंगल में घूम रहा था। रास्ते में, उन्होंने एक साधु को देखा। साधु ने संतोष को देखा और कहा, “हे बालक! तुम एक बहुत ही सुंदर और गुणी हो। तुम्हारे माता-पिता तुमसे बहुत प्यार करते हैं।”

संतोष ने साधु की बात सुनकर प्रसन्नता व्यक्त की।

साधु ने फिर कहा, “हे बालक! तुम अपने माता-पिता के लिए क्या कर सकते हो?”

संतोष ने कहा, “हे साधु! मैं अपने माता-पिता के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।”

साधु ने कहा, “हे बालक! तुम्हारे माता-पिता के लिए सबसे अच्छा काम यह होगा कि तुम अपने भाई-बहनों के साथ प्रेम और सद्भाव से रहो।”

संतोष ने साधु की बात मान ली और अपने भाई-बहनों के साथ प्रेम और सद्भाव से रहने लगा।

Story end कहानी खत्म

बेताल ने कहानी खत्म करने के बाद राजा विक्रमादित्य से पूछा, “हे राजन! रिश्ता क्या हुआ?”

राजा विक्रमादित्य ने सोच-समझकर कहा, “हे बेताल! रिश्ता तो वही है, जो हमेशा से रहा है। माता-पिता के लिए बच्चे हमेशा बच्चे ही होते हैं, चाहे उनकी उम्र कितनी भी हो।”

बेताल राजा विक्रमादित्य की बात सुनकर प्रसन्न हुआ और कहा, “हे राजन! तुम्हारा जवाब सही है। रिश्ता तो प्रेम और स्नेह का होता है, उम्र का नहीं।”

बेताल यह कहकर फिर से पेड़ पर लटक गया। राजा विक्रमादित्य ने बेताल को प्रणाम किया और अपने रास्ते पर चल दिए।

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