Vikram Betaal एक बार की बात है, एक नगर में एक राजा रहता था। उसका नाम चंद्रसेन था। राजा बहुत ही गुणी और सुंदर था। उसकी एक पत्नी थी, जिसका नाम सुशीला था। सुशीला भी बहुत ही सुंदर और गुणी थी।

राजा और सुशीला एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे। एक दिन, राजा को एक युद्ध में जाना पड़ा। युद्ध में राजा को हार का सामना करना पड़ा और उसे कैद कर लिया गया।

सुशीला को जब यह पता चला कि राजा को कैद कर लिया गया है तो वह बहुत दुखी हुई। उसने राजा को छुड़ाने के लिए बहुत कोशिश की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।

एक दिन, सुशीला ने एक साधु से मदद मांगी। साधु ने सुशीला को एक जड़ी-बूटी दी और कहा, “इस जड़ी-बूटी को खाकर तुम राजा को कैद से छुड़ा सकती हो। लेकिन इस जड़ी-बूटी का एक दुष्प्रभाव भी है। इस जड़ी-बूटी को खाने के बाद तुम हमेशा के लिए अंधी हो जाओगी।”

सुशीला ने राजा को छुड़ाने के लिए जड़ी-बूटी खा ली। जड़ी-बूटी खाने के बाद सुशीला अंधी हो गई, लेकिन उसने राजा को कैद से छुड़ा लिया।

राजा और सुशीला फिर से एक साथ रहने लगे। सुशीला ने राजा से कहा, “मैं अपनी आंखों के बदले में तुम्हें पाकर बहुत खुश हूं।”

राजा ने सुशीला से कहा, “तुमने मेरे लिए जो किया है, उसके लिए मैं तुम्हारा ऋणी हूं। मैं तुम्हारी आंखों के बदले में तुम्हारी जिंदगी को भी दे सकता हूं।”

Vikram Betaal बेताल का सवाल

बेताल ने विक्रमादित्य से पूछा, “राजन, बताओ कि सबसे ज्यादा प्रेम में अंधा कौन था?”

विक्रमादित्य ने कहा, “सबसे ज्यादा प्रेम में अंधा सुशीला थी। उसने राजा को छुड़ाने के लिए अपनी आंखों की भी परवाह नहीं की।”

बेताल ने कहा, “तुमने सही कहा। सुशीला सबसे ज्यादा प्रेम में अंधी थी।”

बेताल ने विक्रमादित्य को छोड़ दिया और पेड़ पर लटक गया।

विचार

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि प्रेम में पड़कर लोग अक्सर कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। वे अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाते हैं और अक्सर गलत निर्णय ले लेते हैं।

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