Vikram Betaal राजा विक्रमादित्य और बेताल की कहानियों में से एक कहानी है भिक्षु शान्तशील की कथा। इस कहानी में, राजा विक्रमादित्य को एक योगी से शव लाने का आदेश मिलता है। राजा शव को श्मशान ले जाता है, लेकिन रास्ते में बेताल उसे 24 बार रोकता है और उसे एक कठिन पहेली पूछता है। राजा प्रत्येक पहेली का सही उत्तर देता है और शव को श्मशान ले जाने में सफल होता है।

जब राजा योगी के पास शव लेकर आता है, तो योगी बहुत खुश होता है। वह राजा से कहता है, “हे राजन, आपने इस मुश्किल काम को करके यह साबित कर दिया कि आप सभी राजाओं में सबसे श्रेष्ठ हैं।” यह कहते हुए वह राजा के कंधे से शव को उतारा और उसे तंत्र साधना के लिए तैयार करने लगा।

जब तंत्र साधना हो गई तो योगी राजा से कहता है, “हे राजन, अब आप इसे लेटकर प्रणाम करें।” इतना सुनते ही राजा को बेताल की बात याद आ गई। उसने योगी से कहा, “मुझे ऐसा करना नहीं आता, इसलिए आप मुझे पहले करके बता दें, फिर मैं ऐसा कर लूंगा।”

जैसे ही योगी प्रणाम करने के लिए झुका, राजा ने उसका सिर काट दिया। यह सब देखकर बेताल बहुत खुश हुआ और बोला, “राजन यह योगी विद्वानों का राजा बनना चाहता था, लेकिन अब तुम बनोगे विद्वानों के राजा। मैंने तुम्हें बहुत परेशान किया, अब तुम्हें जो चाहिए मांग लो।”

राजा ने बेताल से कहा, “बेताल, मैं तुमसे कुछ नहीं मांगता। मैं तो बस तुम्हारी बातों का जवाब देना चाहता था।”

बेताल ने कहा, “राजन, तुमने मेरी बातों का जवाब बहुत अच्छी तरह से दिया है। मैं तुम्हारी बुद्धि और साहस की सराहना करता हूं।”

यह कहकर बेताल राजा विक्रमादित्य से हमेशा के लिए विदा हो गया।

इस कहानी का नैतिक

इस कहानी का नैतिक यह है कि बुद्धि और साहस से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है। राजा विक्रमादित्य ने बेताल की पहेलियों का सही उत्तर देकर अपनी बुद्धि का परिचय दिया। उन्होंने योगी का सिर काटकर अपना साहस भी दिखाया।

इस कहानी से हमें यह भी सीख मिलती है कि हमें हमेशा सावधान रहना चाहिए। योगी एक विद्वान था, लेकिन वह दुष्ट था। वह राजा विक्रमादित्य को मारना चाहता था। राजा ने अपनी बुद्धि और साहस से योगी को मारकर अपनी जान बचाई।

यह सुनते ही राजा ने बोला, “अगर आप खुश हैं तो मैं यही चाहता हूं कि आपने जो मुझे चौबीस कहानियां सुनाई हैं, उनके साथ यह पच्चीसवीं कहानी भी पूरी दुनिया में मशहूर हो जाए और हर कोई इन्हें आदर के साथ पढ़ें।”

बेताल ने यह सुनते ही कहा, “जैसी आपकी इच्छा, ऐसा ही होगा, ये कहानियां ‘बेताल-पच्चीसी’ के नाम से जानी जाएंगी और जो भी इन्हें ध्यान से पढ़ेगा या सुनेगा, उनके पाप खत्म हो जाएंगे।” इतना कहकर बेताल चला गया और उसके जाने के बाद शिवजी ने राजा को दर्शन दिए। शिवजी ने प्रकट होकर राजा से कहा, “तुमने इस दुष्ट योगी को मारकर एक अच्छा काम किया है। अब तुम जल्द ही सात द्वीपों समेत पाताल और पृथ्वी पर राज करोगे। जब तुम्हारा इन सभी चीजों से मन भर जाए, तो तुम मेरे पास चले आना।” इतना कहकर शिवजी वहां से चले गए।

इसके बाद राजा अपने नगर गए और वहां जब सब को राजा की वीरता के बारे में पता चला तो सभी ने राजा की प्रशंसा की और खुशियां मनाई। कुछ ही वक्त बाद राजा विक्रमादित्य धरती और पाताल के राजा बन गए। जब उनका मन भर गया, तो वे भगवान शिवजी के पास चले गए।

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