Vikram Betaal:एक समय की बात है, वक्रोलक नामक नगर में सूर्यप्रभ नाम का राजा राज करता था। वह बहुत ही धर्मात्मा और कर्मठ राजा था। उसके कोई सन्तान नहीं थी। एक दिन, राजा को एक साधु ने बताया कि उसकी पत्नी धनवंती गर्भवती है और उसे एक पुत्र होगा।

धनवंती के गर्भवती होने की खबर से राजा बहुत खुश हुआ। उसने पूरे नगर में खुशियां मनाईं। धनवंती ने एक पुत्र को जन्म दिया। राजा ने उसका नाम धनपाल रखा।

धनपाल बहुत ही सुंदर और बुद्धिमान था। वह बड़े होकर एक महान राजा बना। एक दिन, धनपाल की मृत्यु हो गई। राजा सूर्यप्रभ बहुत दुखी हुए। उन्होंने धनपाल के लिए श्राद्ध और पिंडदान करने का निर्णय लिया।

राजा ने धनपाल के पिंडदान के लिए ब्राह्मणों को बुलाया। ब्राह्मणों ने कहा, “राजन, पिंडदान का अधिकारी वह व्यक्ति होता है, जिसने मृत व्यक्ति को जन्म दिया हो। इस मामले में, धनपाल की मां धनवंती पिंडदान का अधिकारी है।”

राजा सूर्यप्रभ ने कहा, “लेकिन धनवंती अब एक वेश्या है। क्या वह पिंडदान का अधिकारी हो सकती है?”

ब्राह्मणों ने कहा, “हां, धनवंती पिंडदान का अधिकारी है। क्योंकि, वह धनपाल की मां है।”

राजा सूर्यप्रभ ने ब्राह्मणों की बात मान ली और धनवंती को धनपाल के पिंडदान के लिए बुलाया। धनवंती ने धनपाल के लिए पिंडदान किया।

Vikram Betaal बेताल का सवाल

बेताल ने विक्रमादित्य से पूछा, “राजन, बताओ कि धनपाल के पिंडदान का अधिकारी कौन था?”

विक्रमादित्य ने कहा, “धनपाल के पिंडदान का अधिकारी धनवंती थी। क्योंकि, वह धनपाल की मां थी।”

बेताल ने कहा, “तुमने सही कहा। धनवंती धनपाल के पिंडदान का अधिकारी थी।”

बेताल ने विक्रमादित्य को छोड़ दिया और पेड़ पर लटक गया।

विचार

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि पिंडदान का अधिकारी वह व्यक्ति होता है, जिसने मृत व्यक्ति को जन्म दिया हो। चाहे वह व्यक्ति जीवित हो या मृत, पिंडदान का अधिकार उसके माता-पिता को ही होता है।

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