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Story of Kedarnath Temple

Story of Kedarnath Temple:धार्मिक मान्यतानुसार केदारनाथ (Kedarnath Temple) को द्वादश ज्योतिर्लिंगों (Jyotirlinga) में 11वां माना जाता है. साथ ही यह सबसे पवित्र तीर्थस्थलों (Holy Pilgrimage) में से एक है. कहा जाता है कि केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) की कहानी बेहद अनोखी और दिलचस्प है.

History of Kedarnath Dham : द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम में भगवान शिव लिंग रूप में विराजमान हैं। कहा जाता है कि यहां भगवान शिव द्वारा धारण किए गए भैंसे के रूप के पिछले भाग की पूजा की जाती है। वहीं केदारनाथ मंदिर के इतिहास से जुड़ी अन्‍य कहानियां भी प्रचलित हैं।

केदारनाथ धाम में हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। धाम के कपाट हर वर्ष अप्रैल या मई में खोले जाते हैं और भैयादूज पर शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं। शीतकाल में बाबा केदार की चल विग्रह उत्सव डोली को ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर लाया जाता है। छह माह के लिए बाबा यहीं विराजमान रहते हैं।केदारनाथ धाम का उल्लेख स्कंद पुराण के केदार खंड में मिलता है। Story of Kedarnath Temple कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली में हुआ है। पांडवों के वंशज जन्मेजय ने यहां इस मंदिर की स्थापना की थी। बाद में आदि शंकराचार्य द्वारा इसका जीर्णोद्धार कराया गया था।

Story of Kedarnath Temple:केदारनाथ धाम की प्राचीन मान्यता

मंदिर के संबंध में कई मान्‍यताएं प्रचलित हैं। मान्‍यता है कि महाभारत के बाद पांडव अपने गोत्र बंधुओं की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव की शरण में जाना चाहते थे। और इसके लिए वह भगवान शिव की खोज करने हिमालय की ओर गए। तब भगवान शिव अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे।

पांडव भी उनके पीछे केदार पर्वत पहुंच गए। Story of Kedarnath Temple तब भगवान शिव ने पांडवों को आता देख भैंसे का रूप धारण कर लिया और पशुओं के बीच में चले गए। भगवान शिव के दर्शन पाने के लिए पांडवों ने एक योजना बनाई और भीम ने विशाल रूप धारण कर अपने दोनों पैर केदार पर्वत के दोनों और फैला दिए।

सभी पशु भीम के पैरों के बीच से गुजर गए, लेकिन भैंसे के रूप में भगवान शिव भीम के पैर के नीचे से निकले। तभी भगवान शिव को पहचान कर भीम ने भैंसे को पकड़ना चाहा तो वह धरती में समाने लगा। तब भीम ने भैंसे का पिछला भाग कस कर पकड़ लिया।

भगवान शिव पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्‍हें दर्शन देकर पाप से मुक्त कर दिया। कहा जाता है कि तभी से भगवान शिव की यहां भैंसे की पीठ की आकृति के रूप में पूजे जाते हैं। मान्‍यता है Story of Kedarnath Temple कि इस भैंसे का मुख नेपाल में निकला, जहां भगवान शिव की पूजा पशुपतिनाथ के रूप में की जाती है।

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12वीं-13वीं शताब्दी का है मंदिर:The temple is from 12th-13th century

राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह मंदिर 12वीं-13वीं शताब्दी का है। Story of Kedarnath Temple ग्वालियर से मिली एक राजा भोज स्तुति के अनुसार यह उनके द्वारा बनाया गया मंदिर है। वह राजा 1076-99 काल के थे।

नर और नारायण ऋषि ने की थी तपस्या:Sage Nar and Narayan did penance

यह भी कहा जाता है कि हिमालय के केदार पर्वत पर भगवान विष्णु के अवतार तपस्वी नर और नारायण ऋषि ने तपस्या की थी। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए। जिसके बाद नर और नारायण ऋषि ने भगवान शिव से ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्राप्‍त किया।

2013 आपदा में क्षतिग्रस्‍त हो गया था धाम:The temple was damaged in the 2013 disaster.

2013 में आपदा के दौरान केदारनाथ धाम में मंदिर को छोड़ बाकी पूरा परिसर क्षतिग्रस्त हो गया था। इसके बाद से अब तक धाम में पुनर्निर्माण का कार्य चल रहा है। वहीं केदारनाथ पुनर्निर्माण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में भी शामिल है। Story of Kedarnath Temple धाम में हो रहे पुनर्निर्माण कार्यों पर वह स्वयं नजर रखते हैं।

केदारनाथ में 225 करोड़ रुपये से ज्‍यादा की लागत से प्रथम चरण के कार्य पूरे किए जा चुके हैं। जिसमें शंकराचार्य की समाधि का पुनर्निर्माण, सरस्वती व मंदाकिनी नदी और उसके घाटों की सुरक्षा, तीर्थ पुरोहितों के आवासों का निर्माण किया गया है। मंदाकिनी नदी पर 60 मीटर लंबे पुल का निर्माण के साथ ही आस्था पथ का निर्माण किया गया है। अब दूसरे चरण में 184 करोड़ रुपये के निर्माण कार्य चल रहे हैं।

केदारनाथ मंदिर की कथा (Kedarnath Temple Story)

Story of Kedarnath Temple केदारनाथ मंदिर के विषय में प्रचलित कथा के अनुसार, पांडवों की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव नें उन्हें हत्या के पाप से मुक्त कर दिया था. मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव अपने भाईयों की हत्या से मुक्ति के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे. परंतु, भगवान उनसे कर्म से खुश नहीं थे, इसलिए वे केदारनाथ चले गए.

पांडव भी उनके दर्शन के लिए केदारनाथ पहुंच गए. पांडवों को वहां पहुंचने पर भगवान शिव में भैंसे का रूप धारण कर लिया. जिसके बाद वे अन्य पशुओं के बीच में चले गए ताकि पांडल भगवान शिव के उस रूप को ना पहचान पाए. कहते हैं कि भीम ने विशालकाय शरीर धारण कर दो पहाड़ों पर अपने पैर फैला दिए.

जिसके बाद उस पहाड़ के नीचे से सभी पशु तो निकल गए, लेकिन वहां मौजूद एक भैंस ने ऐसा नहीं किया. जिसके बाद भीम पूरी शक्ति से भैंस की ओर झपटे, लेकिन वह जमीन में समाने लगा. तभी भीम ने उसकी की पीठ का पिछला हिस्सा पकड़ लिया. कहा जाता है Story of Kedarnath Temple कि भगवान शिव ने भैंसे का रूप बनाया था. मान्यता है Story of Kedarnath Temple कि भगवान शिव पांडवों की ईच्छाशक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर हत्या के पाप से मुक्त होने का आशीर्वाद दिया. धार्मिक मान्यता है कि उसी समय से केदारानाथ में भैंस की पीठ को शिव का रूप मानकर पूजा होने लगी.

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