Pratyangira Mahavidya Stotra :प्रत्यंगिरा महाविद्या स्तोत्र: मां प्रत्यंगिरा महाकाली का विशाल रूप हैं। गुप्त रूप से प्रत्यंगिरा महाविद्या स्तोत्र का पाठ करने से बड़े-बड़े और प्रतिष्ठित लोगों में बड़ा अंतर आता है। चाहे कितना भी बड़ा काम हो या कितना भी बड़ा शत्रु क्यों न हो, प्रत्यंगिरा महाविद्या स्तोत्र के पाठ से सभी क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं।

प्रत्यंगिरा महाविद्या स्तोत्र के पाठ से शत्रुओं से निपटना आसान होता है, लेकिन हमारे कई अप्रत्यक्ष शत्रु भी होते हैं, जो मित्रवत होते हैं, लेकिन वे हमारी बुराई करते हैं और अधिकतर हमारी छवि खराब करते हैं, और हमारे परिवार के सदस्यों से बदला लेते हैं। प्रत्यंगिरा महाविद्या स्तोत्र के प्रयोग से न केवल शत्रुओं का नाश होता है, बल्कि उनके परिवार के सदस्यों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।

मानव मानस में मां की गहरी आद्यरूपी आवश्यकता होती है। ऐसा कहा जाता है कि देवी मानव जाति की देवत्व की सबसे प्रारंभिक अवधारणा थी। देवी की पूजा करने वाले शाक्तों में, सभी अस्तित्व का स्रोत स्त्री है। ईश्वर स्त्री है। Pratyangira Mahavidya Stotra वह देवत्व का मुख्य प्रतिनिधित्व है। वह वह शक्ति है जो चेतना, मन, पदार्थ, ऊर्जा, मौन, आनंद तथा अशांति और हिंसा के रूप में सभी के जीवन में निवास करती है। वह जीवंत ऊर्जा है जो हर चीज को जीवंत, आकर्षक और अद्भुत बनाती है। वह हर चीज में निहित है और साथ ही हर चीज से परे है।

प्रत्यंगिरा को कभी-कभी भद्रकाली और सिद्धिलक्ष्मी के रूप में पहचाना जाता है। हालाँकि देवी की पूजा काली, कमलात्मिका, तारा, त्रिपुरसुंदरी आदि एक रूप में करना कहीं अधिक बेहतर है। प्रत्यंगिरा साधना मुख्य रूप से काले जादू के हमलों से खुद को बचाने और अपने जीवन में समृद्धि के लिए की जाती है।

यदि आपके शत्रु आपसे दुश्मनी की भावना रखते हैं और आप पर बार-बार तांत्रिक हमले करते हैं या अन्य प्रकार के जादू-टोने करते हैं, और आर्थिक, शारीरिक नुकसान पहुंचाते हैं और आपका भविष्य नष्ट कर रहे हैं, तो इस समय आप माँ भद्रकाली के प्रत्यंगिरा महाविद्या स्तोत्र रूप की पूजा करें और शत्रु द्वारा किसी भी प्रकार की घृणा, जादू-टोना, यातना, रुमाल, घाव आदि को नष्ट कर दें, माँ भगवती द्वारा नष्ट कर दिया जाएगा।

इतना ही नहीं, आप पर किए गए टोने-टोटके आदि के अनेक प्रयोग माता द्वारा शत्रु पर दुगुनी तीव्रता से वापस लौटेंगे। कुछ अन्य प्रयोग भी शत्रु को लौटा देते हैं तथा शत्रु की सारी शक्ति को नष्ट कर देते हैं और शत्रु पर आक्रमण भी करते हैं।

Pratyangira Mahavidya Stotra:प्रत्यंगिरा महाविद्या स्तोत्र के लाभ

देवी प्रत्यंगिरा को आह्वान करने के लिए एक अत्यंत शक्तिशाली मंत्र साधना यहां दी गई है। Pratyangira Mahavidya Stotra प्रत्यंगिरा महाविद्या स्तोत्र का प्रयोग किसी ऐसे शत्रु के मन को नष्ट करने के लिए किया जाता है जो अनावश्यक रूप से किसी निर्दोष और असहाय व्यक्ति को परेशान करता है और उसे नुकसान पहुंचाने पर तुला रहता है। यह शत्रु की हानिकारक और विनाशकारी सोच को नष्ट करके और उसके मन को भ्रमित करके उसे भ्रमित करता है।

Pratyangira Mahavidya Stotra:किसको करना है यह स्तोत्र का पाठ

Pratyangira Mahavidya Stotra शत्रुओं द्वारा किए गए टोने-टोटके, बुरी नजर, काले जादू से प्रभावित और अपने जीवन को परेशान करने वाले व्यक्तियों को किसी विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में प्रत्यंगिरा महाविद्या स्तोत्र का पाठ करना चाहिए ताकि इसका परिणाम तुरंत मिल सके।
किसी भी प्रकार के दिशा-निर्देशों और जानकारी के लिए कृपया एस्ट्रो मंत्र से संपर्क करें।

प्रत्यंगिरा महाविद्या स्तोत्र | Pratyangira Mahavidya Stotra

Pratyangira Mahavidya Stotra किसी भी शत्रु की प्रबलतम तांत्रिक क्रियाओं को वापिस लौटने वाली एवं रक्षा करने वाली ये महा दिव्यशक्ति है। इस तंत्र का प्रयोग शत्रु को नाश करने के लिए, शत्रुओं के किये-करायों को नाश करने के लिए किया जाता है। Pratyangira Mahavidya Stotra कोई भी सिद्ध तन्त्र क्रियाओं को जानने वाला तांत्रिक इस विद्या का प्रयोग कर सकता है, क्योंकि इस विद्या को प्रयोग करने से पूर्व शत्रुओं के तन्त्र शक्ति, उसकी प्रकृति एवं उसकी मारक क्षमता का ज्ञान होना अति आवश्यक है।

वास्तव में प्रत्यंगिरा स्वयं में शक्ति न होकर नारायण, रूद्र, कृत्य, भद्रकाली आदि महा शक्तियों की संवाहक है। जैसे तारे स्वयं में विद्युत् न होकर करंट की सम्वाहिकाएँ हैं। बहुत से व्यक्ति प्रेत, यक्ष, राक्षस, दानव, दैत्य, मरी-मसान, शंकिनी, डंकिनी बाधाओं तथा दूसरे के द्वारा या अपने द्वारा किए गए प्रयोगों के फल-स्वरुप पीड़ित रहते हैं। इन सबकी शान्ति हेतु यहाँ भैरव-तन्त्रोक्त ‘विपरीत-प्रत्यंगिरा’ की विधि प्रस्तुत है।

पीड़ित व्यक्ति या प्रयोग-कर्ता गेरुवा लंगोट पहन कर एक कच्चा बिल्व-फल अपने तथा एक पीड़ित व्यक्ति के पास रखे। रात्रि में सोने से पूर्व पीड़ित व्यक्ति की चारपाई पर चारों ओर इत्र का फाहा लगाए। Pratyangira Mahavidya Stotra रात्रि को 108 या कम से कम 15 पाठ सात दिन तक करे। Pratyangira Mahavidya Stotra नित्य गो-घृत या घृत-खाण्ड (लाल शक्कर), घृत, पक्वान्न, बिल्व-पत्र, दूर्वा, जाउरि (गुड़ की खीर) से हवन करे। सात ब्राह्मणों या कुमारियों को भोजन प्रतिदिन करावे। यदि भोजन कराने में असमर्थ हो, तो कुमारियों को थोड़े बताशे तथा दक्षिणा प्रतिदिन दे, बिल्व-फल जब काला पड़ जाये, तो दूसरा हरा बिल्व-फल ले ले। फल को लाल कपड़े में लपेटकर रखे।

।। ध्यानम् ।।

नानारत्नार्चिराक्रान्तं वृक्षाम्भ: स्त्रव??र्युतम् ।

व्याघ्रादिपशुभिर्व्याप्तं सानुयुक्तं गिरीस्मरेत् ।।

मत्स्यकूर्मादिबीजाढ्यं नवरत्न समान्वितम् ।

घनच्छायां सकल्लोलम कूपारं विचिन्तयेत् ।।

ज्वालावलीसमाक्रान्तं जग स्त्री तयमद्भुतम् ।

पीतवर्णं महावह्निं संस्मरेच्छत्रुशान्तये ।।

त्वरा समुत्थरावौघमलिनं रुद्धभूविदम् ।

पवनं संस्मरेद्विश्व जीवनं प्राणरूपत: ।।

नदी पर्वत वृक्षादिकालिताग्रास संकुला ।

आधारभूता जगतो ध्येया पृथ्वीह मंत्रिणा ।।

सूर्यादिग्रह नक्षत्र कालचक्र समन्विताम् ।

निर्मलं गगनं ध्यायेत् प्राणिनामाश्रयं पदम् ।।

“वक्र-तुण्ड महा-काय, कोटि-सूर्य-सम-प्रभं! अविघ्नं कुरु मे देव! सर्व-कार्येषु सर्वदा।।”

उक्त श्लोक को पढ़कर भगवान् गणेश को नमन करे। फिर पाठ करे-

ब्राह्मी मां पूर्चतः पातु, वह्नौ नारायणी तथा। माहेश्वरी च दक्षिणे, नैऋत्यां चण्डिकाऽवतु।।

पश्चिमेऽवतु कौमारी, वायव्ये चापराजिता। वाराही चोत्तरे पातु, ईशाने नारसिंहिका।।

प्रभाते भैरवी पातु, मध्याह्ने योगिनी क्रमात्। सायं मां वटुकः पातु, अर्ध-रात्रौ शिवोऽवतु।।

निशान्ते सर्वगा पातु, सर्वदा चक्र-नायिका।

ॐ क्षौं ॐ ॐ ॐ हं हं हं यां रां लां खां रां रां क्षां ॐ ऐं ॐ ह्रीं रां रां मम रक्षां कुरु ॐ ह्रां ह्रं ॐ सः ह्रं ॐ क्ष्रीं रां रां रां यां सां ॐ वं यं रक्षां कुरु कुरु।

ॐ नमो विपरित-प्रत्यंगिरायै विद्या-राज्ञो त्रैलोक्य-वशंकरी तुष्टि-पुष्टि-करी, सर्व-पीड़ापहारिणी, सर्व-रक्षा-करी, सर्व-भय-विनाशिनी। सर्व-मंगल-मंगला-शिवा सर्वार्थ-साधिनी। वेदना पर-शस्त्रास्त्र-भेदिनी, स्फोटिनी, पर-तन्त्र पर-मन्त्र विष-चूर्ण सर्व-प्रयोगादीनामभ्युपासितं, यत् कृतं कारितं वा, तन्मस्तक-पातिनी, सर्व-हिंसाऽऽकर्षिणी, अहितानां च नाशिनी दुष्ट-सत्वानां नाशिनी। यः करोति यत्-किञ्चित् करिष्यति निरुपकं कारयति। तन्नाशयति, यत् कर्मणा मनसा वाचा, देवासुर-राक्षसाः तिर्यक् प्रेत-हिंसका, विरुपकं कुर्वन्ति, मम मन्त्र, यन्त्र, विष-चूर्ण, सर्व-प्रयोगादीनात्म-हस्तेन, पर-हस्तेन। यः करोति करिष्यति कारियिष्यति वा, तानि सर्वाणि, अन्येषां निरुपकानां तस्मै च निवर्तय पतन्ति, तस्मस्तकोपरि।

।।भैरव-तन्त्रान्तर्गत विपरित-प्रत्यंगिरा महा-विद्या स्तोत्रम्।।

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