Hanuman Putra वह प्रभु राम और लक्ष्मण को पाताल लोक लेकर चला गया था। तब हनुमान जी प्रभु राम और लक्ष्मण को खोजते हुए पाताल लोक पहुंच गए। वहां उन्होंने अपने जैसे पहरेदार को देखकर अचंम्भा हो गए।

भगवान हनुमान प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त हैं। हम सभी जानते हैं कि पवनपुत्र हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी थे। इसी वजह से उनका एक पुत्र होने की बात पर आश्चर्य होना स्वभाविक है। हालांकि महर्षि वाल्मीकि के रामायाण में बताया गया है कि भगवान हनुमान का एक पुत्र भी था। वाल्मीकि रामायण में इससे संबंधित एक प्रसंग का वर्णन भी मिलता है। आइए पढ़ते हैं उससे जुड़ी कथा के बारे में।

हनुमान पुत्र मकरध्वज की कथा

जब पाताल लोक के असुरराज अहिरावण ने भाई रावण के कहने पर प्रभु राम और लक्ष्मण को बंदी बना लिया था। वह प्रभु राम और लक्ष्मण को पाताल लोक लेकर चला गया था। तब हनुमान जी प्रभु राम और लक्ष्मण को खोजते हुए पाताल लोक पहुंच गए। वहां उन्होंने अपने जैसे पहरेदार को देखकर अचंभित हो गए। हनुमान जी की तरह दिखाई देने वाले पहरे पर खड़े हुए मकरध्वज ने स्वयं को हनुमान का पुत्र बताया। हनुमान जी इस बात को मानने को तैयार नहीं हुए, तो मकरध्वज Makardhwaj ने अपनी उत्पत्ति की कथा सुनाई।

मकरध्वज ने हनुमान जी से बोला कि आप जब माता सीता की खोज में लंका पहुंचे। आपको मेघनाद द्वारा पकड़कर रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया। वहां पर रावण ने आपकी पूंछ में आग लगवा दी थी, जिसके बाद आप अपनी जलती पूंछ की आग बुझाने के लिए समुद्र तट पर पहुंचे। आग बुझाते हुए आपके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी, जिसे एक बड़ी मछली ने पी लिया था। उसी एक बूंद की वजह से वह मछली गर्भवती हो गई।

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एक दिन पाताल के असुरराज अहिरावण के सेवकों ने खाने के लिए उस मछली को पकड़ लिया। लेकिन जब उसका पेट चीर रहे थे, तभी उसमें से वानर की आकृति का एक मनुष्य निकला, जो कि मैं था। सेवक बालक को अहिरावण के पास लेकर गए। अहिरावण ने मुझे पाताल पुरी का रक्षक नियुक्त कर दिया। वह मैं ही हूं, जो मकरध्वज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया। इसके बाद उन्होंने अपने पुत्र मकरध्वज को पाताल लोक का राजा नियुक्त कर दिया। हनुमान जी ने मकरध्वज को धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

हनुमान पुत्र मकरध्वज

हनुमान जी के एक पुत्र थे, जिनका नाम मकरध्वज था। मकरध्वज का जन्म एक मछली के गर्भ से हुआ था।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, जब हनुमान जी ने लंका पर चढ़ाई की थी, तब उन्हें मेघनाद ने पकड़ लिया था। मेघनाद ने हनुमान जी की पूंछ में आग लगा दी थी। हनुमान जी अपनी जलती हुई पूंछ की आग बुझाने के लिए समुद्र तट पर पहुंचे। आग बुझाते हुए उनके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी, जिसे एक बड़ी मछली ने पी लिया था। उसी एक बूंद की वजह से वह मछली गर्भवती हो गई।

जब मछली ने एक बच्चे को जन्म दिया, तो उसने उस बच्चे का नाम मकरध्वज रखा। मकरध्वज एक शक्तिशाली वानर था। उसने अपने पिता हनुमान जी की तरह ही भगवान राम की सेवा की।

मकरध्वज की कथा का एक और संस्करण

मकरध्वज की कथा का एक और संस्करण भी है। इस संस्करण के अनुसार, मकरध्वज हनुमान जी के पुत्र नहीं थे, बल्कि उनके शिष्य थे। मकरध्वज एक शक्तिशाली वानर थे, जिन्हें हनुमान जी ने अपने शिष्य के रूप में स्वीकार किया था।

कथा का विश्लेषण

हनुमान पुत्र मकरध्वज की कथा एक पौराणिक कथा है। इस कथा का कोई भी प्रमाण नहीं है। हालांकि, यह कथा हनुमान जी की भक्ति और शक्ति का एक प्रतीक है।

कथा का महत्व

हनुमान पुत्र मकरध्वज की कथा हिंदू धर्म में बहुत लोकप्रिय है। यह कथा हनुमान जी की भक्ति और शक्ति का एक प्रतीक है। यह कथा यह भी बताती है कि भगवान राम की भक्ति सभी को आशीर्वाद देती है, चाहे वह मनुष्य हो या पशु।

कथा का नैतिक

हनुमान पुत्र मकरध्वज की कथा से हमें यह नैतिक शिक्षा मिलती है कि हमें भगवान की भक्ति करनी चाहिए। भगवान की भक्ति से हमें सभी सुख और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।

कथा का अंत

मकरध्वज ने अपने पिता हनुमान जी की तरह ही भगवान राम की सेवा की। उसने रावण के साथ लड़ाई में भी हिस्सा लिया। मकरध्वज एक शक्तिशाली योद्धा था। उसने कई राक्षसों को मार डाला। अंत में, मकरध्वज ने रावण के पुत्र इंद्रजीत को भी मार डाला। इस तरह, मकरध्वज ने भगवान राम की मदद से रावण का वध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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