गुड़ी पड़वा, जिसे हिन्दू नववर्ष या उगादि के नाम से भी जाना जाता है, चैत्र मास के शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है. यह दिन कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जाता है:

  • नववर्ष का प्रारंभ: गुड़ी पड़वा को हिन्दू नववर्ष का आरम्भ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था।
  • विजय पताका का प्रतीक: ‘गुड़ी’ का अर्थ ‘विजय पताका’ होता है। इस दिन घर के द्वार पर विजय पताका फहराई जाती है, जो सुख-समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है.
  • चैत्र नवरात्रि का आरंभ: गुड़ी पड़वा के दिन से ही चैत्र नवरात्रि की शुरुआत भी हो जाती है.
  • मराठी नववर्ष: महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा को खास उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस दिन लोग घरों की साफ-सफाई करते हैं, रंगोली बनाते हैं और गुड़ी सजाते हैं. पूरन पोली और श्रीखंड जैसे विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं.
  • नीम के पत्तों का महत्व: गुड़ी पड़वा के दिन नीम के पत्तों का सेवन भी किया जाता है. माना जाता है कि नीम के पत्ते स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं.

गुड़ी पड़वा शुभ मुहूर्त | Gudi Padwa Shubh Muhurat

गुड़ी पड़वा के मौके पर चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 8 अप्रैल को रात 11 बजकर 50 मिनट पर शुरू होगी और 9 अप्रैल को रात 8 बजकर 30 मिनट पर खत्म होगी. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, गुड़ी पड़वा का त्योहार 09 अप्रैल दिन मंगलवार को मनाया जाएगा.

गुड़ी पड़वा की पौराणिक कथा (Gudi Padwa Pauranik Katha)

गुड़ी पड़वा मनाने से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेता युग में दक्षिण भारत में राजा बालि का शासन हुआ करता था. भगवान राम जब माता सीता को रावण से मुक्त कराने के लिए लंका की ओर जा रहे थे. तब दक्षिण में उनकी मुलाकात बालि के भाई सुग्रीव से हुई. सुग्रीव ने भगावन राम को बालि के कुशासन और आतंक के बारे में सारी बातें बताई. तब भगवान राम ने बालि का वध कर उसके आतंक से सुग्रीव को मुक्त कराया.

ऐसी मान्यता है कि जिस दिन भगवान राम ने बालि का वध किया था, वह दिन चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का दिन था. इसलिए हर साल इस दिन को दक्षिण में गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है और विजय पताका फहराई जाती है. आज भी गुड़ी पड़वा पर पताका लगाने की परंपरा कायम है. जिसे लोग कई वर्षों से मनाते चले आ रहा हैं.

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