देव दिवाली 2023 मुहूर्त (Dev Diwali 2023 Muhurat)

कार्तिक पूर्णिमा तिथि शुरू – 26 नवंबर 2023, दोपहर 03.53

कार्तिक पूर्णिमा तिथि समाप्त – 27 नवंबर 2023, दोपहर 02.45

प्रदोषकाल देव दीपावली मुहूर्त – शाम 05:08 – रात 07:47

अवधि – 02 घण्टे 39 मिनट्स

इस दिन प्रदोष काल में देव दीपावली मनाई जाती है. इस दिन वाराणसी में गंगा नदी के घाट और मंदिर दीयों की रोशनी से जगमग होते हैं. काशी में देव दिवाली की रौनक खास होती है.

देव दिवाली की कथा Dev Diwali ki katha

त्रिपुरासुर का वध

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया था। पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए तारकासुर के तीनों बेटे तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने कठोर तप कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमरत्व का वरदान मांगा। ब्रह्म देव ने उन्हें यह वरदान देने से इनकार कर दिया, लेकिन उन्हें एक अन्य वरदान दिया कि जब तीनों के सोने, चांदी और लोहे के तीन नगर अभिजित नक्षत्र में एक पंक्ति में होंगे और कोई क्रोधजित अत्यंत शांत होकर असंभव रथ पर सवार असंभव बाण से मारना चाहे, तब ही उनकी मृत्यु होगी।

इस वरदान से त्रिपुरासुर अत्यंत शक्तिशाली हो गए और उन्होंने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। देवता ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे त्रिपुरासुर के वध के लिए प्रार्थना की। ब्रह्मा जी ने देवताओं को बताया कि त्रिपुरासुर का वध केवल भगवान शिव ही कर सकते हैं।

भगवान शिव ने त्रिपुरासुर के वध का संकल्प लिया। उन्होंने सभी देवताओं से अपना आधा बल प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने एक असंभव रथ तैयार किया। इस रथ का रथनी सूर्य, चक्रचित्रकार चंद्रमा, सारथी ब्रह्मा जी, बाण भगवान विष्णु, धनुष मेरू पर्वत और डोर वासुकी नाग थे।

अभिजित नक्षत्र में एक पंक्ति में आने पर त्रिपुरासुर के तीन नगरों को भगवान शिव ने अपने बाण से भस्म कर दिया। इस प्रकार त्रिपुरासुर का वध हुआ और देवताओं को उनसे मुक्ति मिली।

त्रिपुरासुर के वध का महत्व

त्रिपुरासुर के वध का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह हिंदू धर्म में अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है। यह भी बताता है कि भगवान शिव हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

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त्रिपुरासुर के वध से जुड़े कुछ अन्य तथ्य

त्रिपुरासुर का वध कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। इस दिन को देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है।

त्रिपुरासुर के वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी के नाम से जाना जाता है।

त्रिपुरासुर के वध की कथा को शिवपुराण में विस्तार से वर्णित किया गया है।

काशी से देव दिवाली का संबंध

काशी से देव दिवाली का संबंध त्रिपुरासुर के वध से है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रिपुरासुर का वध कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। इस दिन को देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है।

त्रिपुरासुर के वध के बाद, सभी देवता भगवान शिव के आशीर्वाद के लिए काशी पहुंचे। उन्होंने गंगा नदी में स्नान किया और भगवान शिव की पूजा की। इसके बाद उन्होंने गंगा नदी के तट पर दिवे जलाए और खुशियां मनाईं।

इसी दिन से काशी में देव दीपावली मनाई जाने लगी। काशी को भगवान शिव की नगरी माना जाता है। इसलिए, देव दीपावली काशी में विशेष रूप से मनाई जाती है।

देव दीपावली के दिन, काशी के घाटों पर लाखों दिवे जलाए जाते हैं। यह दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है। इस दिन, गंगा नदी में महाआरती भी की जाती है।

देव दीपावली काशी के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहार है। यह त्योहार अच्छाई की बुराई पर विजय और भगवान शिव की कृपा का प्रतीक है।

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