Dev Deepawali 2023: देव दीपावली पर तिथि भेद का यह पहला मामला नहीं है. इसके पहले रक्षाबंधन और होली पर भी तिथिभेद के कारण संशय की स्थिति बन चुकी है. गंगा के घाटों पर शाम की आरती करने वाली समितियों ने बैठक करके 27 नवंबर को देव दीपावली मनाने का फैसला किया. साथ ही काशी विद्वत परिषद के निर्णय को खारिज कर दिया.

Dev Deepawali 2023: वाराणसी के विश्व प्रसिद्ध देव दीपावली में शामिल होने के लिए न केवल काशी बल्कि देश दुनिया के कोने-कोने से आस्थावान और सैलानी पहुंचते हैं. लेकिन, इस बार देव दीपावली की तिथि ने एक नए विवाद को जन्म दे दिया है. एक तरफ काशी विद्वत परिषद तो दूसरी तरफ केंद्रीय उद्योग दीपावली महासमिति सहित गंगा आरती कराने वाली तमाम समितियां हो गई हैं. काशी विद्वत परिषद ने देव दीपावली की तिथि का ऐलान 26 नवंबर को किया है और इसे ही शास्त्रोक्त विधि से मनाने की नसीहत भी दी है. दूसरी ओर काशी के गंगा घाटों पर देव दीपावली कराने की जिम्मेदारी उठाने वाली तमाम गंगा आरती की समितियां और केंद्रीय देव दीपावली महासमिति ने बैठक करके 27 नवंबर को देव दीपावली मनाने की घोषणा की है और बताया है कि उदया तिथि के अनुसार ही 27 नवंबर को देव दीपावली मनाई जाएगी.

कब मनाई जाएगी देव दीपावली 26 नवंबर या 27 नवंबर? 

हिंदू तीज-त्योहारों को लेकर अक्सर तिथियों का मतभेद बड़ा सिरदर्द बन जाता है. लेकिन इस बार इससे भी एक कदम आगे जाकर काशी की विश्व प्रसिद्ध देव दीपावली मनाने को लेकर काशी विद्वत परिषद् के सामने गंगा आरती कराने वाली समितियों के सहित केंद्रीय देव दीपावली महासिमिति आ गई है. परिषद् के मुताबिक 26 नवंबर को देव दीपावली मनाया जाना चाहिए. वहीं समितियों के मुताबिक, बैठक करके यह फैसला ले लिया गया है कि वे 27 नवंबर को ही उदयातिथि के अनुसार देव दीपावली का पर्व मनाएंगे. काशी विद्वत परिषद्’ की ओर से एक पत्र जारी करते हुए बताया गया है कि स्वयं ब्रह्मा जी ने सृष्टि के अंतर वेदांग स्वरूप में काल गणना हेतु ज्योतिष शास्त्र एवं उस गणना के आधार पर शुभ काल के निदर्शन हेतु धर्मशास्त्र की रचना की. जिसके समन्वय से उपयुक्त काल का विवेचन किया जा सके. इसमें शास्त्र का आधार ही प्रमाण होता है अपनी तार्किक बुद्धि नहीं. परंतु वर्तमान समय में लोग शास्त्र और तार्किक शक्तियों के द्वारा अपनी सुविधा की दृष्टि से शुभ काल की व्याख्या करते हुए व्रत पर्व उत्सव आदि मनाने का निर्देश देने लगे हैं. जैसे उदया तिथि मान्य होगी, अस्तकालिक तिथि मान्य होगी, मध्यान्ह काल की तिथि मान्य होगी आदि. परंतु कार्य एवं व्रतादि के भेद से आचार्यों ने इन तिथियों को उदय, अस्त, मध्यरात्रि तथा मध्यदिन कालिक इत्यादि का अलग विवेचन किया है, जैसे- कृष्ण जन्माष्टमी में अर्धरात्रि कालिक, दीपावली में प्रदोष कालिक आदि. 

अतः हमें ऋषि और धर्मशास्त्रों के वचनों का अवलोकन करते हुए प्रमाण वचनों का आश्रय लेकर के ही किसी व्रत पर्व आदि का आयोजन करना चाहिए. अन्यथा उसके विपरीत परिणाम भी दृष्टिगत होने लगते हैं. इस संदर्भ में हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि कभी-कभी एक ही तिथि में अनेक व्रत पर्व भी वर्णित होते हैं जो की काल भेद से कुछ मध्यान्ह व्यापिनी कुछ प्रदोष व्यापिनी तो कुछ उदयातिथी में मनाए जाते हैं.

इसी तरह से कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को भी अनेक व्रत पर्व उत्सवों का वर्णन आचार्य ने किया है जैसे स्नान दान की पूर्णिमा, दक्षसावर्णि मान्वादि (कुतुपाद्यघटी व्यापिनी), महाकार्तिकी (भूतविद्धा), धात्री पूजा (परविद्धा), व्रत की पूर्णिमा, केश बंधन गौरी व्रत (परविद्धा), वृषोत्सर्ग (सायंकाल व्यापिनी), त्रिपुरोत्सव (सायंकाल व्यापिनी), देवदीपावली (सायंकाल व्यापिनी) आदि. इस प्रसंग में कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाने वाली देवदीपावाली अर्थात् त्रिपुरोत्सव अति विशिष्ट है और काशी में इसको बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. यह त्रिपुरोत्सव भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर के वध के उपलक्ष्य देवताओं द्वारा दीप जलाकर उत्सव मनाने पर्व है. इसके संबंध में धर्म शास्त्र के ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख प्राप्त है.

देव दीपावाली मंत्र

अत्रैव त्रिपुरोत्सव उक्तो भविष्य- पौर्णमास्यां तु सन्ध्यायां कर्तव्यस्त्रिपुर उत्सवः . दद्यादनेन मत्रेण सुदीपांश्च सुरालये . कीटाः पतङ्गा मशकाश्च वृक्षा जले स्थले ये विचरन्ति जीवाः . दृष्ट्वा प्रदीप नहि जन्मभागिनस्ते मुक्तरूपा हि भवन्ति तत्र .’ इति . अत्र पौर्णमासी संध्याकालव्यापिनी ग्राह्या पूर्वोक्तभविष्यवाक्ये सध्यायामित्युक्तेः .

अतः पूर्णिमा की स्थिति एवं सूक्ष्म मान को आधार बनाकर काशी विद्वत परिषद के ज्योतिष प्रकोष्ठ की बैठक में वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रो. रामचन्द्र पाण्डेय की अध्यक्षता में सर्वसम्मति ने यह निर्णय लिया गया कि देव दीपावली 26 नवंबर 2023 को ही मनाई जाएगी. विभिन्न शास्त्र प्रमाणों के आधार पर प्रो. विनय कुमार पाण्डेय ने सब के समक्ष उपस्थापित किया जिस पर सर्वसम्मति से सहमति बनी.

वहीं काशी विद्वत परिषद् की घोषणा के बाद गंगा आरती कराने वाली समितियों और कन्द्रीय देव दीपावली महासिमिति ने बैठक की. काशी के गंगा घाटों एवं अनेक देव मंदिरों, कुण्डों, तालाबों में मनाए जाने वाले विश्व विख्यात देव दीपावली महोत्सव आयोजन करने के संदर्भ में एक बैठक का आयोजन पंडित किशोरी रमण दूबे (बाबू महाराज) की अध्यक्षता में गंगा सेवा निधि के कार्यालय में किया गया. जिसमें सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि इस वर्ष पंचांग भेद के कारण 26 एवं 27, नवंबर को अलग-अलग दिन पंचांगों में कार्तिक पूर्णिमा देव दीपावली का जिक्र है. लेकिन, देव दीपावली की तिथि को लेकर एक बार पहले काशी नरेश महाराज डॉ विभूति नारायण सिंह जी के समय में एवं गंगा सेवा निधि के संस्थापक स्मृति शेष पंडित सत्येंद्र मिश्रा {मुनन्न महाराज} जी के समय में आई थी. उन दोनों महानुभावों ने विषय विशेष के विद्वानों से परामर्श करने के बाद उदया तिथि की पूर्णिमा जिस दिन पड़ती है, उसी दिन देव दीपावली मनाई गई थी, जिस दिन प्रात: काल स्नान दान की पूर्णिमा है. उसी दिन सायं काल दीपदान की परंपरा घाटों एवं कुंडों – तालाबों पर है जिस वर्ष भी 2 दिन कार्तिक पूर्णिमा पड़ी है उसी दिन उदया तिथि की ही पूर्णिमा वाले दिन ही देव दीपावली महोत्सव के आयोजन की परंपरा सुदृढ़ रही है. 

यहां यह भी अवगत कराना जरूरी है कि उदया तिथि में दूर-दूर से काशी में कार्तिक पूर्णिमा स्नान करने वाले श्रद्धालुओं का गंगा स्नान भी प्रातः काल होता है और सायं काल में भगवती मां गंगा का दीपदान किया जाता है. शरद पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक आकाशदीप जलाने की भी परंपरा है. उसका भी समापन उदया तिथि की पूर्णिमा को ही होता है. इस प्रकार से इस परंपरा को दृष्टिगत रखते हुए सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि इस वर्ष भी काशी में देव दीपावली महोत्सव एवं श्री गंगा जी की महाआरती का आयोजन 27 नवंबर 2023 दिन सोमवार को आयोजित किया जाएगा. 27 नवम्बर को ही सनातन संस्कृति के महापुरुष गुरु नानक देव जी की भी जयंती है

Dev Deepawali 2023 Date: हिंदू धर्म में देव दीपावली का बहुत महत्व है। देव दीपावली हर साल पवित्र शहर वाराणसी में मनाया जाने वाला एक मशहूर उत्सव है। देव दीपावली जिसे देव दिवाली भी कहा जाता है, राक्षस त्रिपुरासुर (त्रिपुरासुर) पर भगवान शिव की जीत के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है। इसलिए देव दीपावली को त्रिपुरोत्सव या त्रिपुरारी पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है जो कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।

देव दीपावली पर जलाते हैं दीये- देव दीपावली के दिन लोग गंगा में पवित्र डुबकी लगाते हैं और शाम को मिट्टी के दीपक या दीये जलाते हैं। न केवल गंगा के घाट बल्कि बनारस के सभी मंदिर भी लाखों दीयों से जगमगाते हैं।

क्या कहता है द्रिक पंचांग: द्रिक पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 26 नवंबर को दोपहर 03 बजकर 53 मिनट पर प्रारंभ होगी और 27 नवंबर को दोपहर 02 बजकर 45 मिनट पर समाप्त होगी। द्रिक पंचांग के अनुसार, देव दीपावली 26 नवंबर 2023, रविवार को मनाई जाएगी।

Dev Deepawali 2023 kab hai देव दीपावली 2023 शुभ मुहूर्त: द्रिक पंचांग के अनुसार, प्रदोष काल देव दीपावली मुहूर्त 26 नवंबर को शाम 05 बजकर 08 मिनट से शाम 07 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। पूजन की अवधि 02 घंटे 39 मिनट की है।

पिछले साल विशेष परिस्थितियों ंमें मनी थी देव दीपावली: पिछले वर्ष ग्रहण के कारण विशेष परिस्थितियों में चतुर्दशी उपरान्त देव दीपावली मनाई गई थी। उसके पीछे तर्क था कि ग्रहण काल में सूतक काल लगने से भोग-प्रसाद, दीप-तेल अपवित्र हो जाएंगे।

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