भारत एक प्राचीनतम सभ्यता वाला सांस्कृतिक देश हैं। यह विश्व के उन गिने-चुने देशों में से एक है जहां हर वर्ग और समुदाय के लोग शांतिपूर्वक रहते हैं। यहां की भगौलिक स्थिति, जलवायु और विविध संस्कृति को देखने के लिए ही विश्व के कोने-कोने से पर्यटक पहुंचते हैं। भारत को आध्यात्म और साधना का केंद्र माना जाता है। यहां पर कई प्राचीन मंदिर हैं जिनका विशेष महत्व है। इनमें से कई मंदिर बेहद चमत्कारिक और रहस्यमयी हैं। देवी-देवताओं में आस्था रखने वाले लोग इसे भगवान की कृपा मानते हैं, भारत की प्राचीनतम मंदिरों की बनावट, विशेषता, महत्व और इतिहास आदि जानने के लिए ही पर्यटक बार-बार भारत की ओर रुख करते हैं। इनमें से कई मंदिर तो ऐसे भी हैं जो कई हजारों साल पुराने हैं और जिनके बारे में जानना पर्यटकों के लिए कौतुहल का विषय है। 

मां कामाख्या देवी मंदिर Maa Kamakhya Devi Temple

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव ने अपनी पत्नी सती के शव को अपने कंधे पर उठाकर तांडव किया था, तब

भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शव को 51 भागों में काट दिया था। इन 51 भागों में से सती के गर्भ का भाग असम के गुवाहाटी में स्थित नीलांचल पर्वत पर गिरा था। इस स्थान को कामाख्या शक्तिपीठ कहा जाता है। जहां-जहां माता सती के अंग गिरे थे वह जगह शक्तिपीठ कहलाती है। यहां पर कोई मूर्ति नहीं है मां सती के शरीर के अंग की पूजा की जाती है। कामाख्या मंदिर को शक्ति-साधना का केंद्र माना जाता है। यहां पर हर किसी की कामना पूरी होती है। इस वजह से इस मंदिर का नाम कामाख्या पड़ा है। यह मंदिर तीन भागों में बंटा है। इसके पहले हिस्से में हर किसी को जाने की इजाजत नहीं है। दूसरे हिस्से माता के दर्शन होते हैं। यहां पर एक पत्थर से हमेशा पानी निकलता रहता है। बताया जाता है कि इस पत्थर से महीने में एक बार खून की धारा बहती है। यह क्यों और कैसे होता है। इस बात का पता आज तक वैज्ञानिक भी नहीं लगा पाए।

Brahma Temple Story : क्यों है ब्रह्मा जी का पुरे भारत में एक मंदिर ?

ज्वालामुखी मंदिर Jwalamukhi Temple

ज्वालामुखी देवी मंदिर भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के कांगड़ा जिले में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर देवी सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर को “जोता वाली” के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, यहां पर माता सती की जीभ गिरी थी। मान्यताओं के मुताबिक, माता सती के जीभ के प्रतीक के तौर पर ज्वालामुखी मंदिर में धरती से ज्वाला निकलती है। यह ज्वाला नौ रंग की होती है। यहां नौ रंगों की निकलने वाली ज्वालाओं को देवी शक्ति का नौ रूप माना जाता है। यह ज्वाला महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विन्ध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका और अंजी देवी की रूप है। मंदिर में निकलने वाली ज्वालाएं कहां से निकलती हैं और इनका रंग कैसे परिवर्तित होता है। आज तक इस बात की कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। इस ज्वाला को मुस्लिम शासकों ने कई बार बुझाने की कोशिश की, लेकिन उनको सफलता नहीं मिली। 

करणी माता मंदिर Karni Mata Temple

करणी माता का मंदिर राजस्थान के बीकानेर जिले के देशनोक में स्थित है। यह चूहों वाली माता का मंदिर के नाम देशभर में

प्रसिद्ध है। करणी माता के मंदिर में अधिष्ठात्री देवी की पूजा की जाती है। अधिष्ठात्री देवी के मंदिर में चूहों का साम्राज्य है। यहां पर करीब 2500 हजार चूहे मौजूद हैं। यहां पर मौजूद चूहे अधिकतर काले रंग के हैं। इनमें कुछ सफेद और काफी दुर्लभ प्रजाति के हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जो लोग सफेद चूहा देख लेते हैं उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है। सबसे आश्चर्य करने वाली बात यह है कि चूहे किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं और मंदिर परिसर में दौड़ते रहते हैं। मंदिर में चूहों की संख्या इतनी है कि लोग पांव उठाकर नहीं चल पाते। इस मंदिर के बाहर चूहे नहीं दिखते हैं। 

मेहंदीपुर बाला जी मंदिर Mehndipur Bala Ji Temple

मेहंदीपुर बालाजी मंदिर भारत के राजस्थान राज्य के दौसा जिले में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है। मेहंदीपुर बालाजी धाम हनुमान जी के 10 प्रमुख सिद्धपीठों में शामिल है। जब भगवान राम ने लंका पर विजय प्राप्त की थी, तब भगवान हनुमान ने लंका में रहने वाले सभी भूत-प्रेतों को भगा दिया था। लेकिन कुछ भूत-प्रेत लंका छोड़कर राजस्थान के दौसा जिले में आ गए थे। इन भूत-प्रेतों ने दौसा के लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया था। तब भगवान हनुमान ने इन भूत-प्रेतों को काबू करने के लिए प्रेतराज सरकार और कोतवाल कप्तान को भेजा। प्रेतराज सरकार और कोतवाल कप्तान ने इन भूत-प्रेतों को काबू कर लिया और उन्हें मेहंदीपुर में रहने के लिए भेज दिया।

काल भैरव मंदिर Kaal Bhairav ​​Temple

मध्य प्रदेश के उज्जैन में भगवान काल भैरव का प्राचीन मंदिर स्थित है। यह मंदिर उज्जैन शहर से 8 किमी दूरी पर है। परंपराओं के मुताबिक, भगवान कालभैरव को भक्त सिर्फ शराब चढ़ाते हैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि शराब के प्याले को काल भैरव की प्रतिमा के मुख से जैसे ही लगाते हैं, तो वह एक पल में गायब हो जाता है। इस बात की भी जानकारी आज तक नहीं मिल पाई। 


 

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