भगवान श्री कृष्ण बचपन में बहुत शरारती थे। कभी गोपियों की मटकी फाेड़ दिया करते थे, तो कभी बछड़ों को गायों का पूरा दूध पिला देते थे। गोकुल की गोपियां चाहकर भी प्यारे-से श्री कृष्ण को डांट नहीं पाती थीं, क्योंकि वो इतने नटखट थे कि उनकी शरारतों को देखकर उन्हें दुलारने का मन करता था। कान्हा की ऐसी ही लीलाओं में से माखन चारी की थी।

यह तो सभी का मालूम है कन्हैया को मक्खन कितना पसंद था। माता यशोदा कृष्ण को जो मक्खन देती थीं, उससे उनका मन नहीं भरता था। इसलिए, मैया जहां भी मक्खन रखती कृष्ण चुपके से गांव के बच्चों के साथ आकर सारा मक्खन खा जाते थे।

ऐसा कई दिनों तक चलता रहा। जब मैया को कुछ समझ नहीं आया कि माखन कौन चुरा रहा है, तो उन्होंने एक दिन चुपके से मक्खन से भरे छोटे-छोटे घड़ों को रस्सी के सहारे ऊपर टांग दिया, लेकिन श्री कृष्ण की नजरों से क्या छुप सकता है, उन्हाेंने माता को मक्खन रखते हुए देख लिया।

अब समस्या यह थी कि मक्खन तक कैसे पहुंचा जाए। काफी सोचने के बाद उन्होंने सभी दोस्तों को इकट्ठा किया और बोले की सभी एक घेरा बनाओ और उसके ऊपर चढ़कर मक्खन निकाला जाएगा। इस तरह से वह उनके सारे दोस्त पूरा माखन चट कर गए।

इसके बाद मैया ने सोचा कि आज तो मैं पता करके ही रहूंगी कि आखिर मक्खन को कौन चुराकर ले जाता है। मक्खन को मटकी में रखकर ऊपर टांग दिया और छुपकर देखने लगीं। कुछ ही देर में कान्हा अपने दोस्तों के साथ वहां पहुंच गए। यह देखकर मैया को पूरी बात समझ में आ गई और जब सभी माखन चुराने लगे, तो तभी माता यशोदा पहुंच गईं। माता को देखते ही सभी बच्चे वहां से भाग गए, लेकिन श्री कृष्ण मटकी की रस्सी पकड़ कर झूल रहे थे।

माता ने आकर उन्हें नीचे उतारा और प्यार से डांटते हुए कहा कि अच्छा तो तुम हो वो माखन चोर, जिसने मुझे बहुत परेशान किया है। कृष्ण माता को देखकर हंसने लगे और बोले “मैया मैं नहीं माखन खायो।” इस पर माता बोली कि अपनी मैया से ही छूठ बोलते हो कृष्णा।

कन्हैया की भोली-सी सूरत देखकर और उसकी प्यारी-सी बात सुकर माता ने कृष्ण को अपने गले लगा लिया और बोलने लगीं मेरा प्यारा नटखट माखन चोर। बस तभी से श्री कृष्ण को प्यार से माखन चोर कहकर बुलाया जाने लगा।

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