मां लक्ष्मी सुख, समृद्धि और धन की देवी है। जब लक्ष्मी माता का व्रत किया जाता है तो लक्ष्मी माता की कहानी सुनकर व्रत पूर्ण किया जाता है। लक्ष्मी माता के व्रत को ‘वैभव लक्ष्मी व्रत’ भी कहा जाता है। वैभव लक्ष्मी व्रत शुक्रवार के दिन रखा जाता है। इस व्रत को स्त्री या पुरुष कोई भी कर सकता है लक्ष्मी माता का व्रत रखने से सुख समृद्धि और धन की प्राप्ति होती हैं।
दिवाली वाले दिन माता लक्ष्मी का व्रत किया जाता है और लक्ष्मी माता की कहानी सुनी जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करने आती है। जो भी मां लक्ष्मी के सच्चे मन से आराधना करती है मां लक्ष्मी उस पर अपनी कृपा बरसाती हैं। दिवाली वाले दिन कई लोग व्रत रखते हैं और शाम के समय विधि विधान से व्रत खोलते हैं और लक्ष्मी माता की कहानी सुनी जाती है। तो आइए जानते हैं लक्ष्मी माता की पावन कथा
लक्ष्मी माता की कहानी
एक गांव में एक साहूकार रहता था। साहूकार के एक बेटी थी । वह हर रोज पीपल सींचने जाती थी । पीपल के वृक्ष में से लक्ष्मी जी प्रकट होती थी और चली जातीं । एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से कहा – तू मेरी सहेली बन जा । तब लड़की ने कहा कि मैं अपने पिता से पूछकर कल आऊंगी ।
साहूकार की बेटी ने घर जाकर अपने पिता को सारी बात कह दी । तब उसके पिताजी बोले वह तो लक्ष्मी जी हैं । अपने को और क्या चाहिए तू लक्ष्मी जी की सहेली बन जा । दूसरे दिन वह लड़की फिर गईं । तब लक्ष्मी जी पीपल के पेड़ से निकल कर आई और कहा सहेली बन जा तो लड़की ने कहा , बन जाऊंगी और दोनों सहेली बन गई ।
लक्ष्मी जी ने उसको खाने का न्यौता दिया । घर आकर लड़की ने मां – बाप को कहा कि मेरी सहेली ने मुझे खाने का न्योता दिया है । तब बाप ने कहा कि सहेली के जीमने जाइयो पर घर को संभाल कर जाना । तब वह लक्ष्मी जी के यहां जीमने गई तो लक्ष्मी जी ने उसे शाल दुशाला ओढ़ने के लिए दिया , रुपये दिये , सोने की चौकी , सोने की थाली में छत्तीस प्रकार का भोजन(व्यंजन) करा दिया ।
जीम कर जब वह जाने लगी तो लक्ष्मी जी ने पल्ला पकड़ लिया और कहा कि में भी तेरे घर जीमने आऊंगी । तो उसने कहा आ जाइयो । वह घर जाकर चुपचाप बैठ गई । तब बाप ने पूछा कि बेटी सहेली के यहां जीमकर आ गईं ? और तू उदास क्यों बैठी है ? तो उसने कहा पिताजी मेरे को लक्ष्मी जी ने इतना दिया अनेक प्रकार के भोजन कराए परन्तु मैं कैसे जिमाऊंगी ?
अपने घर में तो कुछ भी नहीं है । तब उसके पिता ने कहा कि गोबर मिट्टी से चौका लगाकर घर की सफाई कर ले । चार मुख वाला दीया जलाकर लक्ष्मी जी का नाम लेकर रसोई में बैठ जाना। लड़की सफाई करके लड्डू लेकर बैठ गई । उसी समय एक रानी नहा रही थी । उसका नौलखा हार चील उठा कर ले गई और उसके घर वह नौलखा हार डाल गई और उसका लड्डु ले गई।
बाद में वह हार को तोड़कर बाजार में गई और सामान लाने लगी तो सुनार ने पूछा कि क्या चाहिए ? तब उसने कहा कि सोने की चौकी , सोने का थाल , शाल दुशाला दे दें , मोहर दें और सामग्री दें । छत्तीस प्रकार का भोजन हो जाए इतना सामान दें । सारी चीजें लेकर बहुत तैयारी करी और रसोई बनाई तब गणेश जी से कहा कि लक्ष्मी जी को बुलाओ ।
आगे – आगे गणेशजी और पीछे – पीछे लक्ष्मी जी आई । उसने फिर चौकी डाल दी और कहा , सहेली चौकी पर बैठ जा । जब लक्ष्मी जी ने कहा सहेली चौकी पर तो राजा रानी के भी नहीं बैठी , किसी के भी नहीं बैठी तो उसने कहा कि मेरे यहां तो बैठना पड़ेगा । फिर लक्ष्मीजी चौकी पर बैठ गई । तब उसने बहुत खातिर की । जैसे लक्ष्मी ने करी थी , वैसे ही उसने करी ।
लक्ष्मी जी उस पर खुश हो गईं । घर में खूब रुपया एवं लक्ष्मी हो गई । साहूकार की बेटी ने कहा , मैं अभी आ रही हूँ । तुम यहीं बैठी रहना और वह चली गई । लक्ष्मी जी गई नहीं और चौकी पर बैठी रहीं । उसको बहुत दौलत दी । हे लक्ष्मी जी जैसा तुमने साहूकार की बेटी को दिया वैसा सबको देना । कहते सुनते , हुंकारा भरते अपने सारे परिवार को दियो । पीहर में देना , ससुराल में देना । बेटे पोते को देना । है लक्ष्मी माता ! सबका कष्ट दूर करना , दरिद्रता दूर करना , सबकी मनोकामना पूर्ण करना ।