महाभारत युद्ध में भीम ने दुर्योधन के छोटे भाई दु:शासन का वध किया था। इसके बाद भीम ने छाती फाड़कर उसका खून भी पीया था। ये बात तो सभी जानते हैं, लेकिन इस घटना से जुड़ी कुछ बातें ऐसी भी हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम आपको महाभारत से जुड़ी कुछ ऐसी ही रोचक बातें बता रहे हैं-

भीम के दांतों से आगे नहीं गया दु:शासन का खून
महाभारत के अनुसार, युद्ध समाप्त होने के बाद पांडव जब धृतराष्ट्र व गांधारी से मिलने गए। गांधारी दुर्योधन के अन्याय पूर्वक किए गए वध से बहुत गुस्से में थीं। भीम ने गांधारी को समझाया कि- यदि मैं अधर्मपूर्वक दुर्योधन को नहीं मारता तो वह मेरा वध कर देता। गांधारी ने कहा कि- तुमने दु:शासन का खून पिया, क्या वह सही था? तब भीम ने कहा कि- जब दु:शासन ने द्रौपदी के बाल पकड़ थे, उसी समय मैंने ऐसी प्रतिज्ञा की थी। यदि मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं करता तो क्षत्रिय धर्म का पालन नहीं कर पाता। लेकिन दु:शासन का खून मेरे दांतों से आगे नहीं गया।

काले हो गए थे युधिष्ठिर के नाखून
भीम के बाद युधिष्ठिर गांधारी से बात करने के लिए आगे आए। गांधारी उस सिय में क्रोध में थीं। जैसे ही गांधारी की नजर पट्टी से होकर युधिष्ठिर के पैरों के नाखूनों पर पड़ी, वह काले हो गए। यह देख अर्जुन श्रीकृष्ण के पीछे छिप गए और नकुल, सहदेव भी इधर-उधर हो गए। थोड़ी देर बाद जब गांधारी का क्रोध शांत हो गया, तब पांडवों ने उनसे आशीर्वाद लिया।

भीम की हत्या करना चाहते थे धृतराष्ट्र
गांधारी से मिलने के बाद पांडव धृतराष्ट्र से मिलने गए। दुर्योधन की मृत्यु को याद कर धृतराष्ट्र भीम का वध करना चाहते थे। श्रीकृष्ण ये बात ताड़ गए और उन्होंने धृतराष्ट्र से गले मिलने के लिए भीम की लोहे की प्रतिमा आगे कर दी। धृतराष्ट्र ने उस लोहे की प्रतिमा को ही भीम समझकर अपनी भुजाओं के बल से तोड़ डाला। उन्हें लगा कि भीम की मृत्यु हो चुकी है। यह सोच कर वे दु:खी हुए। जब श्रीकृष्ण ने देखा कि धृतराष्ट्र का क्रोध शांत हो गया है, तो उन्होंने कहा कि भीम जीवित है। आपने भीम की प्रतिमा को नष्ट किया है। यह जानकर धृतराष्ट्र को संतोष हुआ।

भीम कहते थे धृतराष्ट्र को भला-बुरा
युधिष्ठिर के राजा बनने के बाद अर्जुन, नकुल, सहदेव, द्रौपदी हमेशा धृतराष्ट्र व गांधारी की सेवा में लगे रहते थे, लेकिन भीम हमेशा धृतराष्ट्र को भला-बुरा कहता रहता था। इस प्रकार धृतराष्ट्र, गांधारी को पांडवों के साथ रहते-रहते 15 साल गुजर गए। एक दिन भीम ने धृतराष्ट्र व गांधारी के सामने कुछ ऐसी बातें कह दी, जिसे सुनकर उन्हें बहुत दुख हुआ। तब धृतराष्ट्र ने वानप्रस्थ आश्रम (वन में रहना) में जाने का निर्णय लिया। गांधारी ने भी धृतराष्ट्र के साथ वन जाने में सहमति दे दी। धृतराष्ट्र व गांधारी के साथ विदुर, संजय व कुंती भी वन चली गईं।

ऐसे हुई विदुरजी की मृत्यु
धृतराष्ट्र, गांधारी, कुंती व विदुर वन में रहते हुए कठोर तप कर रहे थे। तब एक दिन युधिष्ठिर सभी पांडवों के साथ उनसे मिलने पहुंचे। धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती के साथ जब युधिष्ठिर ने विदुर को नहीं देखा तो धृतराष्ट्र से उनके बारे में पूछा। धृतराष्ट्र ने बताया कि वे कठोर तप कर रहे हैं। तभी विदुर उसी ओर आते हुए दिखाई दिए, लेकिन आश्रम में इतने सारे लोगों को देखकर विदुरजी पुन: लौट गए। युधिष्ठिर उनसे मिलने के लिए पीछे-पीछे दौड़े। तब वन में एक पेड़ के नीचे उन्हें विदुरजी खड़े हुए दिखाई दिए। उसी समय विदुरजी के शरीर से प्राण निकले और युधिष्ठिर में समा गए। (क्योंकि महात्मा विदुर व युधिष्ठिर धर्मराज (यमराज) के अंश से पैदा हुए थे।)

एक रात के लिए जीवित हुए थे सभी योद्धा
जब युधिष्ठिर धृतराष्ट्र से मिलने वन में गए, उसी समय आश्रम में महर्षि भी वेदव्यास आ गए। उन्होंने कहा कि- युद्ध में मारे गए जितने भी वीर हैं, उन्हें आज रात तुम सभी देख पाओगे। महर्षि सभी को गंगा तट पर ले गए। रात होने पर महर्षि वेदव्यास ने सभी मृत योद्धाओं का आवाहन किया। थोड़ी ही देर में भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, दुर्योधन, दु:शासन, अभिमन्यु, घटोत्कच, द्रौपदी के पांचों पुत्र, आदि वीर जल से बाहर निकल आए। अपने मृत परिजनों को देख सभी के मन में हर्ष छा गया। सुबह होने पर वे पुन: अपने लोक में लौट गए। इस प्रकार वह अद्भुत रात समाप्त हुई।

कैसे हुई धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती की मृत्यु?
महाभारत के अनुसार, युद्ध के बाद धृतराष्ट्र व गांधारी पांडवों के साथ 15 साल तक रहे। इसके बाद वे कुंती, विदुर व संजय के साथ वन में तपस्या करने चले गए। एक दिन जब वे गंगा स्नान कर आश्रम आ रहे थे, तभी वन में भयंकर आग लग गई। दुर्बलता के कारण धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती भागने में असमर्थ थे। इसलिए उन्होंने उसी अग्नि में प्राण त्यागने का विचार किया और वहीं एकाग्रचित्त होकर बैठ गए। इस प्रकार धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती ने अपने प्राणों का त्याग कर दिया।

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