चातुर्मास से जुड़ी एक कथाभगवान विष्णु ने देवमाता अदिति और कश्यप ऋषि के घर एक ब्राह्मण बालक के रूप में जन्म लिया था. यह भगवान विष्णु का वामन अवतार था. य​​ह घटना उस समय की है, जब असुरों के राजा बलि ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया. स्वर्ग पर फिर से देवतों का अधिपत्य हो, इसके लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया

श्रीविष्णु के पास इस संसार के पालन का जिम्मा है और वो अपनी माया के माध्यम से इस संसार का संचालन करते हैं, लेकिन चार महीने के लिए श्रीविष्णु योग निंद्रा में चले जाते है।

सनातन धर्म में भगवान विष्णु को समस्त देवताओं का स्वामी माना गया है। देवासुर संग्राम में भी स्वयं भगवान विष्णु देवताओं की सहायता करते हैं ऐसा पुराणों में उल्लेख है। भागवत पुराण के अनुसार जितने भी दिव्य संत, साधु, मुनि इस धरती पर जन्म लेते हैं वो सब विष्णु के अवतार हैं। राम, कृष्ण, परशुराम ये सब भी विष्णु के ही अवतार कहे जाते हैं। श्री विष्णु क्षीर सागर में निवास करते हैं और लक्ष्मी उनकी सेवा में रहती हैं। भगवान कौस्तुक मणि को धारण करते हैं और सर्प पर शयन करते हैं। उनका वाहन गरुड़ और चार भुजाएं हैं।

भगवान विष्णु
भगवान विष्णु

श्री विष्णु के पास इस संसार के पालन का जिम्मा है और वो अपनी माया के माध्यम से इस संसार का संचालन करते हैं, लेकिन चार महीने के लिए श्रीविष्णु योग निंद्रा में चले जाते है। दरअसल धर्म ग्रन्थों की माने तो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक की अवधि को चार्तुमास कहा जाता है और इन चार महीनों में श्री विष्णु निंद्रा में चले जाते हैं।

आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है क्योंकि इसी दिन से देवताओं की रात शुरू होती है। इसके अलावा कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है और उसके बाद मांगलिक कार्य शुरू होते है। इन चार महीनों में जितने भी मांगलिक कार्य है वो सब निषेध होते हैं। भगवान विष्णु के निंद्रा में जाने के संदर्भ में दो मत है।

पौराणिक कथा- बालि संग पाताललोक में करते हैं निवास

एक मत यह है कि वे क्षीर सागर में ही निंद्रा में होते हैं और दूसरा मत यह है कि वो पाताललोक में बालि के यहां निवास करते हैं जिन्हे संकर्षण विष्णु कहा जाता है। दरअसल जब विष्णु ने वामन अवतार लिया तो बालि से उन्होंने तीन पग भूमि मांगी। दो पग में उन्होंने पूरा संसार मापकर तीसरा पग बालि के सिर पर रखकर उसे पाताल भेज दिया, लेकिन वरदान के रूप में बालि ने विष्णु को ही मांग लिया। वरदान के कारण स्वयं विष्णु जब पाताल में बालि के साथ चले गए तो सभी मंगल कार्य बंद हो गए। इसके बाद खुद लक्ष्मी ने बालि को राखी बांधकर भगवान विष्णु को मुक्त करने का वचन लिया। तभी से विष्णु चार महीने बालि के पास निवास करने लगे और उन चार महीनों को चार्तुमास कहा जाने लगा। माना जाता है कि इन चार महीनों में शिव स्वयं सृष्टि की देखभाल करते हैं।

श्री विष्णु मत्स्य अवतार पौराणिक कथा

भगवान विष्णु योगनिद्रा को दिए वचन का करते हैं पालन

एक दूसरी कथा के अनुसार योग माया जोकि सृष्टि का संचालन करती हैं, उन्होंने श्रीविष्णु से कहा कि आप मुझे भी अपने शरीर में स्थान दें। योग निंद्रा भगवान विष्णु के सृष्टि संचालन में उनकी सहायता करती हैं तो श्रीविष्णु उनसे मना नहीं कर पाए। श्रीविष्णु ने योग निंद्रा को आँखों में स्थान दे दिया और इसी मत के अनुसार इन चार महीनों में श्रीविष्णु रहते तो क्षीर सागर में ही है लेकिन वो योग निंद्रा में चले जाते है जिसके कारण कोई भी मांगलिक कार्य संभव नहीं है।

चातुर्मास का जैन धर्म में महत्व

इन चार महीनों का जैन और बौद्ध धर्म में भी बड़ा महत्व बताया गया है। अगर आप जैन मुनियों को देखें तो वो सारा वर्ष भ्रमण करते हैं, लेकिन इन चार महीनों में वो एक ही स्थान पर रहकर सभी नियमों का पालन करते हैं। पुराणों के अनुसार आषाढ़ में वामन पूजा, श्रावण में शिव पूजा, भाद्रपद में गणेश और श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। इन चार महीनों में धर्म, जप और तप का बड़ा महत्व कहा गया है। ये चार माह मनुष्य को भगवान की सेवा करने में, उनकी कथा सुनने में और उनकी भक्ति करने में बिताने चाहिए।

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