शिव ने लिया वृषभ अवतार और किया संहारदेवताओं और मनुष्‍यों की गुहार पर भोलेनाथ ने वृषभ यानी कि बैल अवतार धारण किया और पाताल लोक पहुंच गए। इसके बाद उन्‍होंने एक-एक करके भगवान विष्‍णु के सभी पुत्रों का संहार कर दिया। इस तरह उन्‍होंने तीनों लोकों को विष्‍णु के दानवीय पुत्रों के आतंक से बचाया।

हिंदू धर्म में गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए बेहद खास माना जाता है. कहते हैं सच्चे मन से उनकी पूजा करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं भगवान विष्णु जरूर पूरा करते हैं. हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार गुरुवार को भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से जीवन के सभी संकटों से छुटकारा मिलता है. भगवान विष्णु जगत के पालनहार कहलाते हैं. मान्यता है कि गुरुवार के दिन अगर भक्त विष्णु जी की विधिवत पूजा करते हैं और गुरुवार के उपायों को आजमाते हैं तो उनके जीवन में किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं रहती है. शिव पुराण में एक कथा यह मिलती है कि तीनों लोकों को दानवों से बचाने के लिए भोलेनाथ ने भगवान विष्‍णु के पुत्रों का संहार किया था. आइए जानते हैं ये संपूर्ण कथा.

शिवपुराण के अनुसार अमृत मंथन के दौरान समुद्र से निकले अमृत को धारण करने के लिए देवताओं और दानवों के बीच भीषण युद्ध हुआ. इसपर विराम लगाने के लिए भगवान विष्‍णु मोहिनी का रूप लेक पहुंचें. दानवों ने जब मोहिनी का इतना सुंदर रूप देखा तो वह उस पर मोहित हो उठे. मोहिनी का रूप बनाए हुए भगवान विष्‍णु ने दानवों को छल से अमृत का पान करने से रोक लिया. इससे दुखी होकर दानव फिर से देवताओं के साथ युद्ध करने लगे लेकिन उनकी एक न चली. अपनी हार देखते हुए देवता पाताल लोक की ओर चले गए. श्री विष्‍णु ने वहां भी उनका पीछा किया.

भगवान विष्णु जब दानवों के पीछे पाताल लोक पहुंचें तो उन्‍होंने देखा कि उनकी कैद में कुछ अप्‍सराएं थीं. वह सभी शिव भक्‍त थीं. भगवान विष्‍णु ने उन्‍हें दानवों से मुक्‍त कराया. उनके अनुपम मनमोहक छवि को देखकर सभी अप्‍सराएं मोहित हो गईं. अप्‍सराओं ने भगवान शिव की अनन्‍य भक्ति की. साथ ही वरदान में विष्‍णु जी को पति रूप में मांगा. भोलेनाथ ने माया रची और भगवान विष्‍णु को उनका पति बना दिया. कथा के अनुसार विवाह के बाद कुछ दिनों तक भगवान विष्णु पाताल लोक में ही रुके. इसके बाद उन अप्‍सराओं से विष्‍णु के पुत्रों का जन्‍म हुआ लेकिन सभी में दानवीय अवगुण थे. धीरे-धीरे उन पुत्रों ने तीनों लोकों में आतंक मचाना शुरू कर दिया. देवता-मनुष्‍य सभी परेशान होकर भोलेनाथ की शरण में पहुंचे.

देवताओं और मनुष्‍यों की गुहार पर भोलेनाथ ने वृषभ यानी कि बैल अवतार धारण किया और पाताल लोक पहुंच गए. इसके बाद उन्‍होंने एक-एक करके भगवान विष्‍णु के सभी पुत्रों का संहार कर दिया. इस तरह उन्‍होंने तीनों लोकों को विष्‍णु के दानवीय पुत्रों के आतंक से बचाया. शिवपुराण की कथा के अनुसार जैसे ही भगवान विष्‍णु को वृषभ द्वारा अपने पुत्रों के संहार की खबर मिली तो वह अत्‍यंत क्रोधित हो गए. क्रोध में ही वह वृषभ से लड़ने पहुंच गए लेकिन दोनों ही देवता थे तो लड़ाई का अंत नहीं हो रहा था. तब अप्‍सराओं ने भगवान शिव से विष्‍णु जी को उनके वरदान से मुक्‍त करने की प्रार्थना की. जैसे ही भगवान विष्णु अपने वास्‍तविक रूप में आए तो उन्‍हें संपूर्ण घटनाक्रम का बोध हुआ. इसके बाद उन्‍होंने शिव जी से अपने लोक जाने की आज्ञा मांगी और वापस विष्‍णुलोक लौट गए.

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