प्रदोष-व्रत चन्द्रमौलेश्वर भगवान शिव की प्रसन्नता व आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। भगवान शिव को आशुतोष भी कहा गया है, जिसका आशय है-शीघ्र प्रसन्न होकर आशीष देने वाले। प्रदोष-व्रत को श्रद्धा व भक्तिपूर्वक करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आज हम वेबदुनिया के पाठकों को प्रदोष-व्रत की पूर्ण जानकारी देंगे। पूर्ण श्रद्धाभाव से किया गया व्रत निश्चय ही फलदायी होता है। हिन्दू धर्म में कई ऐसे व्रत हैं जिनके करने से व्यक्ति अपने जीवन में लाभ प्राप्त कर सकता है किन्तु प्रदोष-व्रत का सनातन धर्म में अति-महत्त्वपूर्ण स्थान है।

प्रदोष-व्रत कैसे करें

प्रदोष-व्रत प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को होता है। सभी पंचागों में प्रदोष-व्रत की तिथि का विशेष उल्लेख दिया गया होता है। दिन के अनुसार प्रदोष-व्रत के महत्त्व में और भी अधिक वृद्धि हो जाती है। जैसे सोमवार दिन होने वाला प्रदोष-व्रत सोम प्रदोष, मंगलवार के दिन होने वाला प्रदोष-व्रत भौम-प्रदोष के नाम से जाना जाता है। इन दिनों में आने वाला प्रदोष विशेष लाभदायी होता है। प्रदोष वाले दिन प्रात:काल स्नान करने के पश्चात भगवान शिव का षोडषोपचार पूजन करना चाहिए। दिन में केवल फलाहार ग्रहण कर प्रदोषकाल में भगवान शिव का अभिषेक पूजन कर व्रत का पारण करना चाहिए।

प्रदोषकाल क्या है

प्रदोष-व्रत में प्रदोषकाल का बहुत महत्व होता है। प्रदोष वाले दिन प्रदोषकाल में ही भगवान शिव की पूजन संपन्न होना आवश्यक है। शास्त्रानुसार प्रदोषकाल सूर्यास्त से 2 घड़ी (48 मिनट) तक रहता है। कुछ विद्वान मतांतर से इसे सूर्यास्त से 2 घड़ी पूर्व व सूर्यास्त से 2 घड़ी पश्चात् तक भी मान्यता देते हैं। किन्तु प्रामाणिक शास्त्र व व्रतादि ग्रंथों में प्रदोषकाल सूर्यास्त से 2 घड़ी (48 मिनिट) तक ही माना गया है।

पांच प्रदोषों का है विशेष महत्त्व

1. रवि प्रदोष- रविवार के दिन होने वाले प्रदोष को रवि-प्रदोष कहा जाता है। रवि-प्रदोष व्रत दीर्घायु व आरोग्य प्राप्ति के लिए किया जाता है। रवि-प्रदोष व्रत करने से साधक को आरोग्यता व अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। 

2. सोम प्रदोष- सोमवार के दिन होने वाले प्रदोष को सोम-प्रदोष कहा जाता है। सोम प्रदोष व्रत किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए किया जाता है। सोम-प्रदोष व्रत करने से साधक की अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है।

3. भौम प्रदोष- मंगलवार के दिन होने वाले प्रदोष को भौम-प्रदोष कहा जाता है। भौम-प्रदोष व्रत ऋण मुक्ति के लिए किया जाता है। भौम-प्रदोष व्रत करने से साधक ऋण एवं आर्थिक संकटों से मुक्ति प्राप्त करता है।

4. गुरु प्रदोष- गुरुवार के दिन होने वाले प्रदोष को गुरु-प्रदोष कहा जाता है। गुरु प्रदोष व्रत विशेषकर स्त्रियों के लिए होता है। गुरु प्रदोष व्रत दांपत्य सुख, पति सुख व सौभाग्य प्राप्ति के लिए किया जाता है।

5. शनि प्रदोष- शनिवार के दिन होने वाले प्रदोष को शनि-प्रदोष कहा जाता है। शनि प्रदोष व्रत संतान प्राप्ति एवं संतान की उन्नति व कल्याण के लिए किया जाता है। शनि-प्रदोष व्रत करने से साधक को संतान सुख की प्राप्ति होती है।

कब से प्रारंभ करें प्रदोष-व्रत

व्रतादि ग्रंथों में किसी भी व्रत को प्रारंभ करने की तिथि, मास, पक्ष व मुहूर्त का उल्लेख मिलता है। शास्त्रानुसार प्रदोष-व्रत किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से प्रारंभ किया जा सकता है। श्रावण व कार्तिक मास प्रदोष-व्रत को प्रारंभ करने के लिए अधिक श्रेष्ठ माने गए हैं। प्रदोष-व्रत का प्रारंभ  विधिवत् पूजन-अर्चन एवं संकल्प लेकर करना श्रेयस्कर रहता है। 

सीता नवमी

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