![](https://karmasu.in/wp-content/uploads/2022/03/image-2.jpeg)
अधिकमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी या कमला एकादशी कहते हैं। वैसे तो प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है, तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। अधिकमास में 2 एकादशियां होती हैं, जो पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से जानी जाती हैं। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है। इस एकादशी के व्रत का विधान विष्णु जी ने सर्वप्रथम नारदजी से कहा था। यह विधान अनेक पापों को नष्ट करने वाला तथा मुक्ति और भक्ति प्रदान करने वाला है।
यह सुंदर कथा महर्षि पुलस्त्य ने नारदजी से कही थी- एक बार कार्तवीर्य ने रावण को अपने बंदीगृह में बंद कर लिया। उसे महर्षि पुलस्त्य ने कार्तवीर्य से विनय करके छुड़ाया। इस घटना को सुनकर नारदजी ने महर्षि पुलस्त्य से पूछा- ‘हे महर्षि! इस मायावी रावण को, जिसने सभी देवताओं सहित इंद्र को जीत लिया था, कार्तवीर्य ने उसे किस प्रकार जीता? कृपा कर मुझे विस्तारपूर्वक बताए।’
![](https://karmasu.in/wp-content/uploads/2022/03/image-2.jpeg)
महर्षि पुलस्त्य ने कहा- ‘हे नारद! आप पहले कार्तवीर्य की उत्पत्ति की कथा सुनो- त्रेतायुग में महिष्मती नामक नगरी में कृतवीर्य नाम का एक राजा राज्य करता था। उस राजा की सौ स्त्रियां थीं, उनमें से किसी के भी राज्य का भार संभालने वाला योग्य पुत्र नहीं था। तब राजा ने सम्मानपूर्वक ब्राह्मणों को बुलाया और पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराए, किंतु सब व्यर्थ रहे। जिस प्रकार दुखी मनुष्य को भोग नीरस मालूम पड़ते हैं, उसी प्रकार राजा को भी अपना राज्य पुत्र बिना दुखमय प्रतीत होता था। अंत में वह तप के द्वारा ही सिद्धियों को प्राप्त जानकर तपस्या करने के लिए वन को चला गया। उसकी स्त्री (राजा हरिश्चंद्र की पुत्री प्रमदा) वस्त्रालंकारो को त्यागकर अपने पति के साथ गंधमादन पर्वत पर चली गई। उस स्थान पर इन लोगों ने दस हजार वर्ष तक तप किया, किंतु सिद्धि प्राप्त न हो सकी। राजा की देह मात्र हड्डियों का ढांचा मात्र ही रह गई। यह देख प्रमदा ने श्रद्धापूर्वक महासती अनसूया से पूछा- ‘मेरे स्वामी को तप करते हुए दस हजार वर्ष व्यतीत हो गए, किंतु अभी तक प्रभु प्रसन्न नहीं हुए हैं, जिससे मुझे पुत्र प्राप्त हो। इसका क्या कारण है?’
प्रमदा की बात सुनकर देवी अनसूया ने कहा- ‘अधिक (लौंद) मास जो कि छत्तीस माह बाद आता है, उसमें दो एकादशी होती हैं। इसमें शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पद्मिनी और कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम परम है। इनके जागरण और व्रत करने से ईश्वर तुम्हें अवश्य ही पुत्र देंगे।’
तत्पश्चात देवी अनसूया ने व्रत का विधान बताया। रानी प्रमदा ने देवी अनसूया की बतलाई विधि के अनुसार एकादशी का व्रत और रात्रि में जागरण किया। इससे भगवान विष्णु उस पर बहुत प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा। रानी प्रमदा ने कहा- ‘प्रभु आप यह वरदान मेरे पति को दीजिए।’
रानी प्रमदा का वचन सुन भगवान विष्णु ने कहा- ‘हे रानी प्रमदा! मल मास (लौंद) बहुत प्रिय है। उसमें भी एकादशी तिथि मुझे सबसे अधिक प्रिय है। इस एकादशी का व्रत तथा रात्रि जागरण तुमने विधानपूर्वक किया, इसलिए मैं तुम पर अति प्रसन्न हूं।’ इतना कहकर भगवान विष्णु ने राजा से कहा- ‘हे राजन! तुम अपना इच्छित वर मांगो, क्योंकि तुम्हारी स्त्री ने मुझे प्रसन्न किया है।’
भगवान की अमृत वाणी सुन राजा ने कहा- ‘हे प्रभु! आप मुझे सबसे उत्तम, सबके द्वारा पूजित तथा आपके अतिरिक्त देव, असुर, मनुष्य आदि से अजेय पुत्र दीजिए।’
राजा को इच्छित वर देकर प्रभु अंतर्धान हो गए। तदुपरांत दोनों अपने राज्य को वापस आ गए। इन्हीं के यहां समय आने पर कार्तवीर्य उत्पन्न हुए थे। यह भगवान श्रीहरि के अतिरिक्त सबसे अजेय थे। कार्तवीर्य ने रावण को जीत लिया था। यह सब पद्मिनी एकादशी के व्रत का प्रभाव था
![](https://karmasu.in/wp-content/uploads/2021/12/एक-समय-की-बात-है-एक-ब्राह्मण-दंपत्ति-की-कोई-संतान-नहीं-थी-जिस-कारण-वह-बेहद-दुःखी-थे।-1024x576.png)