हिंदू धर्म में नवरात्रि के दौरान साधना और उपासना करने के सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। ऐसी मान्यता है की सामान्य दिनों में किसी भी साधना में सिद्धि हासिल करने के लिए कम से कम 40 दिनों की आवश्यकता होती है। वहीं, नवरात्रि में नौ दिन ही अनुष्ठान में सफलता हासिल करने के लिए पर्याप्त होते हैं। बता दें कि साल भर में चार मास चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ इन चार मासों में नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। लेकिन, इनमें से चैत्र और शारदीय नवरात्रि प्रमुख होते हैं। इस बार 2 अप्रैल से चैत्र या बासंतिक नवरात्र शुरू हो रहे हैं। तो आइए जानते हैं नवरात्रि की पूजा विधि और इन नौ दिनों किन मंत्रों का जप करने से आपको लाभ होगा।

शैलपुत्री

शैलपुत्री मां दुर्गा का प्रथम स्वरुप हैं। मान्यता है कि शक्ति की प्रथम उत्पत्ति शैलपुत्री के रूप में ही हुई थी। नवरात्रि के पहले दिन इनकी ही पूजा करनी चाहिए। मां के सामने धूप, दीप जलाएं और देसी घी का दीपक जलाकर मां की आरती उतारें। इसके बाद शैलपुत्री माता की कथा, दुर्गा स्तुति या दुर्गा चालीसा का पाठ करें। इस दिन मां को गाय के घी से बनी सफेद चीजों का भोग लगाएं। इसके बाद शाम के समय मां की आरती कर उनका ध्यान करें।
मंत्र- ऊं शैलपुत्र्यै नम:।

ब्रह्मचारिणी

नवरात्रि के दूसरे दिन मां भगवती के द्वितीय रूप ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा की जाती है। सुबह पूजा के समय अपने हाथों में एक फूल लेकर देवी का ध्यान करें।इसके बाद उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं, फिर फूल, कुमकुम, सिंदूर अर्पित करें। बता दें की देवी को सफेद और सुगंधित फूल प्रिय हैं। इसके अलावा आप कमल का फूल भी चढ़ा सकते हैं।
मंत्र – ऊँ ब्रह्मचारिण्यै नम:
दूसरा मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

चंद्रघंटा
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा के रूप की पूजा की जाती है। सबसे पहले देवी के गंगा जल से स्नान कराएं। इसके बाद धूप-दीप, रोली , फूल और फल अर्पित करें। इसके बाद मां का ध्यान करें और मन में ऊं चंद्रघण्टायै नम: का जप करते रहें।

मंत्र-
 पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता.
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

कूष्मांडा

इन दिन रोज की तरह सबसे पहले कलश की पूजा कर माता कूष्मांडा को नमन करें। इसके बाद मां को जल और पुष्प अर्पित करें। बता दें कि इस दिन पूजा में बैठने के लिए हरे रंग के आसन का इस्तेमाल करें। इस दिन मां को कद्दू के हलवे का भोग लगाएं।

मंत्र- ऊं कूष्माण्डायै नम:
दूसरा मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

स्कंदमाता
नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। इस दिन सबसे पहले स्कंदमाता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगाजल से शुद्धिकरण करें। चौकी पर मिट्टी, तांबे या फिर चांदी के घड़े में जल भरकर उस पर कलश रखें और देवी का ध्यान करें। स्कंदमाता की उपासना करने से मनुष्य की सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती है। माता स्कंदमाता को केला प्रिय है। इस दिन मां को केले का भोग जरुर लगाएं।

मंत्र- या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दूसरा मंत्र- ऊं स्कंदमात्र्यै नम: ।।

कात्यायनी

नवरात्र के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस दिन पूजा करते समय लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें। इसके बाद कात्यायनी देवी की प्रतिमा स्थापित करें और फिर गंगाजल से उसकी शुद्धी करें। इसके बाद मां के सामने घी का दीपक जलाएं और पुष्प भी चढ़ाएं। इसके असाला मां को पीले रंग के फूलों के साथ कच्ची हल्दी की गांठ भी चढ़ाएं।

मंत्र – या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
दूसरा मंत्र – ऊं स्कन्दमात्र्यै नम:

कालरात्रि

सातवें दिन कालरात्रि की आराधना करना चाहिए। मां की प्रतिमा की स्थापना करने के बाद मां को कुमकुम, लाल पुष्प, रोली आदि चढ़ाएं। इसके बाद मां को नींबूओं की माला पहने और उनके सामने दीपक जलाकर उनका पूजन करें। मां के मंत्रों का जाप करें या सप्तशती का पाठ करें। मां कालरात्रि को लाल रंग के फूल अर्पित करें। माता कालरात्रि को गुड़ या उससे बनी चीजों का भोग लगाना चाहिए।

या देवी सर्वभू‍तेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
ॐ कालरात्र्यै नम:

महागौरी
नवरात्र के आठवें दिन महागौरी की पूजा करना चाहिए। इस दिन सबसे पहले लकड़ी की चौकी या मंदिर में महागौरी की प्रतिमा की स्थापना करें। इसके बाद चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर महागौरी यंत्र की स्थापना करें। मां महागौरी की पूजा करते समय पीले ये सफेद रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं। महागौरी को हलवा और चने का भोग लगाना चाहिए।

मंत्र- श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
दूसरा मंत्र – ऊं महागौयैं नम:

सिद्धिदात्री

मां जगदंबा का ये रूप पूर्ण स्वरूप है। पहले दिन जो पूजा अर्चना शैलपुत्री के रूप में की गई थी वह सिद्धिदात्री के रुप पर आकर पूर्ण हो जाती है। इस दिन सबसे पहले कलश की पूजा और पूजा स्थल पर सभी देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। इसके बाद माता के मंत्रो का जाप कर उनकी पूजा करनी चाहिए। मां सिद्धिदात्री को मौसमी फल, पूड़ी, खीर, नारियल, चना, और हलवा का भोग लगाना चाहिए।

मंत्र- या देवी सर्वभू‍तेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
दूसरा मंत्र- ऊं सिद्धिदात्र्यै नम:।

नोट : यह तमाम जानकारी जनरुचि को ध्यान में रखकर दी जा रहा है, ज्योतिष और धर्म के उपाय और सलाहों को आपनी आस्था और विश्वास पर आजमाएं। कंटेट का उद्देश्य मात्र आपको बेहतर सलाह देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।

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