यहां शनिदेव की प्रतिमा के साथ ढय्या शनि की भी प्रतिमा स्थापित है

नवग्रह मंदिर भारत के मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है। क्षिप्रा नदी के त्रिवेणी घाट पर स्थित नवग्रह मंदिर नौ ग्रहों को समर्पित है। शनिवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन यहां बड़ी भारी भीड़ लगती है। हाल के वर्षों में इस मंदिर का धार्मिक महत्व बहुत बढ़ गया है। यहां पर मुख्य शनिदेव की प्रतिमा के साथ-साथ ढय्या शनि की भी प्रतिमा भी स्थापित है। बताया जाता है कि विक्रम संवत का इतिहास भी इस मंदिर से जुड़ा हुआ है।

नवग्रह मंदिर के बारे में बताया जाता है कि लगभग दो हजार साल पहले इस मंदिर की स्थापना राजा विक्रमादित्य ने की थी। कहा जाता है कि विक्रमादित्य ने इस को मंदिर के बनाने के बाद ही विक्रम संवत की शुरुआत की थी। करीब 2075 साल पुराना यह देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शनि महाराज की पूजा शिव स्वरूप में होती है। मंदिर की स्थापना महाराजा विक्रमादित्य ने की थी, उन्होंने ही विक्रम संवत (हिंदू पंचांग) शुरू किया था। अभी विक्रम संवत 2075 चल रहा है। यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामना के लिए शनिदेव पर तेल चढ़ाते हैं। कहा जाता है कि यहां साढ़ेसाती और ढय्या की शांति के लिए शनिदेव पर तेल चढ़ाया जाता है।

ऐसी मान्यता है कि नवग्रह मंदिर में जो भक्त सच्चे मन से शनिदेव की पूजा करता है, शनिदेव उसके सभी दुख दूर कर देते हैं।यह मंदिर नौ ग्रहों अर्थात् सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, राहु, केतु और शनि को समर्पित है। शनि अमावस्या के दिन यहां 5 क्विंटल से अधिक तेल शनिदेव पर चढ़ता है। बाद में इस तेल को निलाम किया जाता है।

नवग्रह मंदिर की वास्तुकला बहुत ही सुंदर है। मंदिर के सामने भव्य प्रवेश द्वार है। नवग्रह मंदिर के चारों तरफ उकेरे गए शिल्प नयनाभिराम हैं। नवग्रह मंदिर कई स्तंभों पर बना है। सभी स्तंभों पर देवी देवताओं को प्रदर्शित किया गया है। नवग्रह मंदिर में मुख्य शनिदेव की प्रतिमा के साथ-साथ ढय्या शनि की भी प्रतिमा भी स्थापित है। नवग्रह मंदिर में हर ग्रह का अपना गर्भ गृह है। नवग्रह की पूजा के लिए मंदिर में विशाल परिसर है, जहां श्रद्धालु ग्रहों की शांति के लिए पूजा-अर्चना करते हैं।

मंदिर खुलने का समय

05:00 AM – 07:00 PM

मंदिर का प्रसाद

नवग्रह मंदिर में गुड और तिल का भोग लगाया जाता है। श्रद्धालु शनिदेव पर सरसों का तेल भी चढ़ाते हैं।

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