आपने अक्सर साधु-संत और ऋषि मुनि के पैरों में लकड़ी के खड़ाऊ पहने देखा होगा इनका चलन कई लाखो साल पहले से चला आ रहा है। आज भी कई साधू संत इन्हे ही इस्तेमाल करते है लेकिन अब इनका प्रचलन कम हो गया है, लेकिन आपको बता दे कि इसके पीछे कई धर्मिक और वैज्ञानिक तथ्य जुड़े है। इसको धारण करने से हमारे शरीर में कई तरीके के बदलाव और कई तरीके के फायदे होते है जिन्हे ऋषि मुनियो ने कई बरसो पहले जान लिया था। शायद कई बार आप इन्हे देखकर सोचा भी होगा या देखते हुए आपके मन में यही विचार भी आया होगा कि ये क्यों पहने जाते है क्या है इसके लाभ। वैसे देखा जाए जो इसके पहनने के पीछे हमारे पूर्वजों की सोच पूर्णत: वैज्ञानिक थी, आइये जानते है कैसे, आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है। तो आइए जानते हैं कि क्या है वो वैज्ञानिक कारण।

गुरुत्वाकर्षण का जो सिद्धांत वैज्ञानिकों ने बाद में प्रतिपादित किया उसे हमारे ऋषि-मुनियों ने काफी पहले ही समझ लिया था। उस सिद्धांत के अनुसार शरीर में प्रवाहित हो रही विद्युत तरंगे गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं। यह प्रक्रिया अगर निरंतर चले तो शरीर की जैविक शक्ति (वाइटल्टी फोर्स) समाप्त हो जाती है। इसी जैविक शक्ति को बचाने के लिए हमारे पूर्वजों ने पैरों में खड़ाऊ पहनने की प्रथा प्रारंभ की ताकि शरीर की विद्युत तंरगों का पृथ्वी की अवशोषण शक्ति के साथ संपर्क न हो सके। इसी सिद्धांत के आधार पर खड़ाऊ पहनी जाने लगी।साथ ही साथ धार्मिक मान्यता अनुसार उस समय चमड़े का जूता कई धार्मिक, सामाजिक कारणों से समाज के एक बड़े वर्ग को मान्य न था और कपड़े के जूते का प्रयोग हर कहीं सफल नहीं हो पाया। इसलिए खड़ाऊ का ही इस्तेमाल करना पड़ता था। लकड़ी के खड़ाऊ पहनने से किसी भी धार्मिक या सामाजिक लोगों को कोई आपत्ति नहीं थी, इसलिए इसका अधिक प्रचलन था। यही खड़ाऊ बाद में जाकर साधु-संत की पहचान बन गए कालांतर में यही खड़ाऊ ऋषि-मुनियों के स्वरूप के साथ जुड़  गए ।

खड़ाऊ के सिद्धांत का एक और सरलीकृत स्वरूप हमारे जीवन का अंग बना वह है पाटा। डाइनिंग टेबल ने हमारे भारतीय समाज में बहुत बाद में स्थान पाया है। पहले भोजन लकड़ी की चौकी पर रखकर तथा लकड़ी के पाटे पर बैठकर ग्रहण किया जाता था। भोजन करते समय हमारे शरीर में सबसे अधिक रासायनिक क्रियाएं होती हैं। इन परिस्थिति में शारीरिक ऊर्जा के संरक्षण का सबसे उत्तम उपाय है चौकियों पर बैठकर भोजन करना चाहिये ।

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