कहा जाता है सावन का महीना अपने साथ कई त्यौहार लेकर आता है। ये अपने साथ सावन  की झड़ी के साथ-साथ त्यौहारों की भी झड़ी लेकर आता है। कल यानि 15 अगस्त पूर्णिमा के दिन श्रावण के महीने का तो समापन हो जाएगा। लेकिन त्यौहारों की झड़ी अभी लगी रहेगी। इस महीने की 24 अगस्त को श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। इस पर्व को श्री कृष्ण के जन्म दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन देश का माहौल बहुत ही अद्भुत होता ह। श्री कृष्ण के मंदिरों में उन्हें माक्खन खिलाने के लिए उनकी भक्तों की लंबी कतारे देखने को मिलती हैं। इसके अलावा सड़कों पर राधा-कृष्ण की झांकियां निकाली जाती हैं।जन्माष्टमी के आने से पहले आज हम आपको श्रीकृष्ण व राधा से जुड़ी एक कथा बताने जा रहे हैं। राध-कृष्ण के प्रेम की अनोखी गाथा सब जानते हैं। बल्कि कहा जाता था कि राधा-कृष्ण के केवल शरीर दो थे लेकिन उनकी आत्मा एक ही थी। एक-दूसरे से ज़रा सी भी दूरी इन्हें बर्दाश नहीं होती थी। लेकिन क्या आपको पता है कि एक बार श्री कृष्ण ने कुछ ऐसा कर दिया था कि राधा समेत सभी गोपियां उनसे नाराज़ हो गई थी। बल्कि राधा रानी ने उन्हें ये तक कह दिया था कि मुझ छूना मत।

आइए जानते हैं क्या था ये किस्सा-
कहा जाता है इस घटना के बाद श्री कृष्ण ने जो किया उसकी निशानी आज भी गोवर्धन पर्वत की तलहटी में कृष्ण कुंड के रूप में मौजूद है। माना जाता है राधा-कृष्ण का ये संवाद ही कुंड के निर्माण का मुख्य कारण था। राधा रानी द्वारा श्री कृष्ण को उनको स्पर्श करने से मना कर देने की वजह थी भगवान श्री कृष्ण द्वारा कंस के भेजे हुए असुर अरिष्टासुर का वध करना। शास्त्रों के अनुसार अरिष्टासुर बैल के रूप में व्रजवासियों को कष्ट देने आया था। मगर इस सब से अंजान राधा व सभी गोपियां बैल की हत्या करने के कारण श्री कृष्ण को गौ का हत्यारा मान रही थी।
 

जिसके बाद श्री कृष्ण ने राधा को खूब समझाने की कोशिश की उन्होंने बैल की मृत्यु नहीं बल्कि असुर का वध किया है। जब खूब समझाने के बाद भी राधा रानी नहीं मानी तो श्री कृष्ण ने जोर ज़मीन पर अपनी ऐड़ी पटकी, जिससे वहां जल की धारा बहने लगी।कहा जाता है इस जलधारा से एक कुंड बन गया। श्री कृष्ण ने सभी तीर्थों को गोवर्धन पर्वत की तलहटी में बने इस जलकुंड में आने को कहा। इनके आदेश पर सभी तीर्थ राधा कृष्ण के सामने उपस्थिति हो गए, और सभी कुंड में प्रवेश कर गए। जिसके बाद श्री कृष्ण ने इस कुंड में स्नान किया और कहा कि जो भी इस कुंड में स्नान करेगा उसे एक ही बार में सभी तीर्थों में स्नान करने का पुण्य प्राप्त होगा।

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