1. कंस को भविष्यवाणी

कंस मथुरा नामक राज्य का राजा था। और वह बहुत लालची और क्रूर भी था। वह अत्याचारी भी था, इसलिए मथुरा की प्रजा उससे डरी रहती थी। कंस अपनी बहन देवकी से बहुत प्यार करता था। जब देवकी का विवाह हुआ, तो कंस ने अपने बहन और उसके पति वासुदेव के रथ का सारथी बनने का निर्णय किया। जब वह रथ हांक रहा था, तभी उसे आकाशवाणी सुनाई दी, “अरे मूर्ख, तेरी मौत के दिन पास आ रहे हैं!”

कंस यह सब सुनकर भौचक्का रह गया। आकाशवाणी दुबारा सुनाई दी, “देवकी का आठवां पुत्र तेरा वध करेगा।” कंस यह सुनते ही अपनी बहन को मारने के लिए उठा, लेकिन वासुदेव ने उसे रोका और वचन दिया कि वे अपनी सारी संतान पैदा होते ही उसे दे दीया करेगा। कंस मान गया लेकिन उसने दोनों को कारागार में डाल दिया। वासुदेव और देवकी की छह संतान को उसने पैदा होते ही मार डाला, लेकिन कृष्ण और बलराम को वासुदेव ने अपनी चतुराई से बचा लिया। कई सालों बाद भविष्यवाणी सच साबित हुई और कृष्ण जोकि देवकी का आठवां संतान था उसने कंस का वध कर दिया और मथुरा को कंस की गुलामी से आजाद कर दिया।

2. कृष्ण के जन्म की कहानी कृष्ण की कहानियां

कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया था। देवकी ने विष्णु की आराधना की, तो विष्णु ने उसे वचन दिया कि वह स्वयं उसके आठवें पुत्र के रूप में जन्म लेगा। इसके बाद श्रावण महा में तूफानी रात में विष्णु ने देवकी के पेट से जन्म लिया।

उस समय आश्चर्यजनक रूप से वासुदेव की हथकड़ियां और बेड़िया खुल गई। सैनिकों को नींद आ गई। तभी आकाशवाणी हुई, “अपने बच्चे को गोकुल में नंद के पास छोड़ आओ।”वासुदेव ने एक टोकरी में नवजात बच्चे को रखा और कारागार से निकल गया। रास्ते में भारी बारिश के बीच उन्होंने यमुना नदी पार की। वह अपने बच्चे को सुरक्षित यशोदा के पास छोड़ आए। आकाशवाणी सच निकली बड़े होकर देवकी की आठवीं संतान कृष्ण ही कंस के काल बने और सभी लोगों को उनके आतंक से मुक्त किया।

3. बलराम के जन्म की कहानी

कंस ने अपनी बहन देवकी और बहनोई वासुदेव को कारागार में डाल दिया और उनके होने वाली हर संतान को दुष्ट कंस मार देता था। क्योंकि आकाशवाणी के अनुसार देवकी की आठवीं संतान कंस का काल बनेगा परंतु दुष्ट कंस ने हर संतान को मारने लगा। जब देवकी और वासुदेव के छठे पुत्र को दुष्ट कंस ने मार डाला, तो देवकी बहुत दुखी हुई। उसने भगवान विष्णु से प्रार्थना की।एक रात भगवान विष्णु उसके सपने में आए और बोले कि नागराज शेषनाग उनके सातवे पुत्र के रूप मैं पैदा होंगे। विष्णु ने यह भी कहा कि कंस उस बच्चे को मार नहीं पाएगा। जब देवकी गर्भवती हुई तो आश्चर्यजनक रूप से उसके पेट से भ्रूण रोहिणी के गर्भ मैं चला गया। रोहिणी वासुदेव की दूसरी पत्नी थी। यह बच्चा बलराम के रूप में पैदा हुआ, जो कृष्ण का बड़ा भाई था।

4. कंस और पूतना की कहानी बच्चों के लिए कृष्ण के बालपन की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ

कंस जानता था कि आकाशवाणी के अनुसार देवकी का आठवां पुत्र उसे मार डालेगा। जब देवकी की आठवीं संतान ने जन्म लिया, तो कंस को पता चला कि वह आठवीं संतान एक लड़की है तो वह तुरंत देवकी के पास कारागार जा पहुंचा। कंस ने देवकी की गोद से संतान को छीन लिया। वह दरअसल देवी योगमाया थी। योगमाया कंस की मूर्खता पर हंसने लगी और बोली की उसको मारने वाला तो जन्म ले चुका है। और गोकुल में रह रहा है।

कंस बहुत क्रोधित हुआ। उसने उस दिन जन्में सभी बच्चों को मार डालने का आदेश दिया। उसके सिपाहियों ने बहुत प्रयास किया लेकिन कृष्ण को वह नहीं मार पाए। कंस ने जब राक्षसी पूतना को कृष्ण को मारने के लिए भेजा। उसने अपना विशाला दूध पिलाकर कृष्ण को मारने की योजना बनाई लेकिन बालक कृष्ण ने उस राक्षसी पूतना को ही मार दिया।

5.  कृष्ण का मक्खन प्रेम

कृष्ण जैसे जैसे बड़े होते गए, वैसे वैसे उनकी शैतानियां भी बढ़ती गई। दूध और मक्खन के उनके शोक की कहानियां घर-घर में फैल चुकी थी। जब ग्वालिने दूध की मटकिया लेकर निकलती तो कृष्ण और उनके साथी पत्थर मारकर मटकिया फोड़ देते थे। कृष्ण का दूध मक्खन का लालच देखकर मक्खन को मटकी में अच्छी तरह से बंद कर ऊपर छींके पर लटका देती थी, ताकि कृष्ण के हाथ पुस्तक ना पहुंच पाए।

एक दिन कृष्ण को सोता जानकर यशोदा पास के कुवे से पानी भरने चल दी। उनके जाते ही कृष्ण उठ बैठे और सिटी बजाकर उन्होंने अपने सारे साथियों को बुला लिया। सारे साथी एक के ऊपर एक खड़े होते गए और सबसे ऊपर चढ़कर किसने मटकी उतार ली। सारे साथी मिलकर मक्खन खाने लगे तभी, यशोदा वहां आ गई।

क्रोध में आकर उन्होंने छड़ी उठाई और उसके पीछे दौड़ी। सारे बालक भाग निकले, लेकिन कृष्ण पकड़े गए और उनकी अच्छी पिटाई हुई। आज भी हम कृष्ण के इस दही माखन के प्रेम के लिए कृष्ण जयंती पर बालक एक के ऊपर एक चढ़कर भाई या माखन की मटकी फोड़ते हैं और उन्हें याद करते हैं।

6. तृणावर्त और कृष्णा की कहानी श्री कृष्ण की बचपन की कहानी

एक दिन यशोदा अपने घर के कामकाज में व्यस्त थी, बालकृष्ण को उन्होंने आंगन में छोड़ दिया। तभी, कंस का सेवक असुर तृणावर्त तेज हवा के बवंडर के रूप में वहां प्रकट हुआ और कृष्ण को उड़ा ले गया।

 पूरे गोकुल नगर में धूल छा गई और तृणावर्त  आकाश में लगातार ऊंचाई पर बढ़ता गया। पूरे नगर में धूल का घना बादल छा गया। किसी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।

 यशोदा को चिंता हुई। उन्होंने कृष्ण को ढूंढने की कोशिश की। जब कृष्ण ही नहीं मिला तो वह जोर जोर से रोने लगी। तृणावर्त ने नन्हे बालक को अपने कंधों पर उठाने की कोशिश की, लेकिन कृष्ण ने अपने आप को 

इतना भारी कर लिया कि वह विवश होकर नीचे जमीन की ओर आने लगा। कृष्ण ने अपना आकार किसी पहाड़ की तरह बड़ा कर डाला और तृणावर्त  की गर्दन दबा ली। असुर कृष्ण की पकड़ से छूटने के लिए फड़फड़ाने लगा।  तभी कृष्ण ने उसे छोड़ दिया और वह धड़ाम से नीचे गिरा और वही मर गया।

7. कृष्ण के बचपन का अद्भुत दृश्य कृष्ण भगवान की लीला

बचपन में कृष्ण बहुत ही नटखट थे। उन्हें मक्खन खाना बहुत पसंद था। वह दूसरों के घरों से भी दूध और मक्खन चुरा लेते थे। नगर की अन्य महिलाएं यशोदा से उलहाना देने आती।

1 दिन मैदान में खेलते हुए कृष्ण ने चुपके से मिट्टी खाली। उनके साथियों ने यह बात या माता यशोदा को बता दी।  कृष्ण जब घर आए तो यशोदा माता ने उनके कान खींचे और बहुत डांट लगाई।

 कृष्ण ने तुरंत बहाना बना दिया और बोले कि  सुबह उनका साथियों से झगड़ा हो गया था और इसीलिए बदला लेने के लिए उन्होंने झूठी शिकायत की थी। कृष्ण  ने मुंह बनाते हुए यह भी कह दिया कि अपने ही बेटे पर भरोसा ना करना सही नहीं है। 

कृष्ण ने मां की आज्ञा मानते हुए अपना मुंह खोल दिया। यशोदा माता ने कृष्ण के मुंह में झांका तो वे स्तब्ध रह गई। उन्हें कृष्णा के मुंह में, पहाड़, समुंद्र, गृह, अग्नि, चंद्रमा, नक्षत्र समेत समूचा जगत दिख रहा था। यशोदा माता हैरान रह गई और सोचने लगी कि वे कोई स्वप्न तो नहीं देख रही है।

माता यशोदा उसी समय अचेत होकर गिर पड़ी। जब उन्हें होश आया तो समझ में आया कि वह सब कुछ वास्तविक है।  उनके सामने  सर्व शक्तिमान ईश्वर पूरे अप्रतिम सौंदर्य के साथ उनके सामने खड़े थे।  वे विष्णु के अवतार कृष्ण ही थे। यशोदा ने नन्हे बालक को जड़ से अपनी गोद में ले लिया और उसे जले से लगा लिया।

8. कृष्ण और बकासुर की कहानी

कृष्ण के मामा कंस को पता चल गया था कि कृष्ण गोकुल नगरी में है। उसे डर था कि आगे चलकर कृष्ण ही उसका वध ना कर दे। कंस कृष्ण को मारना चाहता था और हमेशा उसके लिए  कुचक्र रचता रहता था।1 दिन  कंस ने बकासुर नाम के अतुल को अपने पास बुलाया और उसे कृष्ण  को मार कर आने का आदेश दिया।

बकासुर ने कृष्ण को डराने के लिए विशाल पक्षी का रूप धारण किया। एक दिन जब कृष्ण गोकुल के जंगलों में अपने तथा सखियों के साथ खेल रहे थे तभी उन्हें एक विशाल  दैत्य कार पक्षी उन पर झपट्टता दिखा।

कृष्ण भगवान देखते ही समझ गए कि वह पक्षी और कोई नहीं बल्कि कंस का भेजा हुआ ही एक असूर है। जैसे ही पक्षी पास में आया वीर भगवान कृष्ण ने उसकी विशाल चोंच पकड़ ली और फुर्ती से उसके अंदर घुस गए। 

चोंच के अंदर जाकर कृष्ण ने इतनी अधिक हलचल मचाई  कि बकासुर की चौंच ही टूट गई। बेचैन होकर बकासुर गिर पड़ा और कुछ ही देर में मर गया। कृष्ण के साथियों ने खूब खुशियां मनाई।

9. कृष्णा और कालिया की कहानी कृष्ण भगवान की रामायण

एक बार यमुना नदी में रहने के लिए एक विशाल काला नाग आ गया। उसने अपने विष से नदी के सारे पानी को विषैला कर दिया। वृंदावन के लोग  उस नाग से बहुत भयभीत रहने लगे। एक दिन कृष्ण ने कालिया को सबक सिखाने का निश्चय किया। कालिया को मारने के लिए कृष्ण यमुना में कूद पड़े। कालिया क्रोध में आकर कृष्णा पर झपटा। कृष्णा तुरंत उसके फन के ऊपर चढ़ गए। कृष्णा को गिराने के लिए कालिया ने बहुत कुंडलियां मारी लेकिन सफल नहीं हो सका। उसने कृष्णा को पानी में डूबाने की भी कोशिश की लेकिन कृष्णा पानी में बिना सांस लिए ही बने रहे। 

कृष्णा ने अब कालिया के फन पर कूदना शुरू कर दिया। नाग घबराकर विश उबलने लगा। कृष्णा ने फन पर धमाचौकड़ी जारी रखी और कुछ ही देर में कालिया का सारा विश बाहर निकल गया। अब कालिया कृष्णा से शमा मांगने लगा।

10. यशोदा ने कृष्ण को बांधा | कृष्ण भगवान की सम्पूर्ण जीवन गाथा

1 दिन बालक कृष्ण रसोई से मक्खन चुराते हुए पकड़े गए। यशोदा मैया ने चुपके से पीछे से आकर उन्हें पकड़ लिया। कृष्ण हाथ छुड़ाकर भाग गए। यशोदा उनके पीछे-पीछे दौड़ी। कृष्ण काफी देर तक भागते रहे। जब यशोदा मैया थक गई तो कृष्ण रुक गए।रस्सी छोटी पड़ गई तो उन्होंने ओखली की रस्सी से उन्हें बांध दिया। तभी अचानक जोर की आवाज हुई। सब ने निकल कर देखा तो पाया कि कृष्णा ने भारी ओखली खींच ली थी और जब वह दो पेड़ों के बीच में पड़ गई तो उन्होंने इतना बल लगाया कि वह पेड़ भी गिर गए। यह पेड़ धन के देवता कुबेर के पुत्र थे, जिन्हें श्राप मिला हुआ था। उन पेड़ों को गिरा कर कृष्ण ने उन्हें श्राप से मुक्त करा दिया था।

11. फल बेचने वाला कृष्ण की कहानियां

1 दिन बालक कृष्ण ने एक फल बेचने वाले की आवाज सुनी, ” फल ले लो! ताजा फल ले लो! उन दिनों सामान खरीदने के लिए रुपए पैसों के बजाय अनाज या अन्य सामान का लेनदेन ही होता था। कृष्णा ने अपने माता पिता को इसी तरह से खरीदारी करते देखा था। पके फलों से लदी गाड़ी देखकर कृष्णा अपने घर अनाज लेने के लिए भागे। अपनी छोटी-छोटी मुठिया में अनाज लेकर वे फल वाले के पास गए। उनकी छोटी सी मुठियों में बहुत थोड़े से दाने समा पा रहे थे।

फल वाले को उनकी मासूमियत बहुत अच्छी लगी। उसने उन थोड़े से दानों के बदले ही कृष्ण को कई फल दे दिए। इसके बाद जब फल वाला जाने लगा तो उसने देखा कि उसकी गाड़ी में फलों की जगह बहुमूल्य रत्न आभूषण पड़े हैं। बहन तुरंत समझ गया कि उस पर भगवान ने कृपया की है।

12.  कृष्ण और गोपियां

कृष्णा और बलराम बचपन में बहुत नटखट थे पूर्णविराम कृष्ण को बांसुरी बजाना पसंद था जबकि बलराम को गायों से बहुत प्यार था। युवा गोपियों को बांसुरी की धुन बहुत अच्छी लगती थी और जब कृष्ण और बलराम गाय चराने जाते थे, तो वे उनके पास खिंची चली आती थी। 1 दिन गोपिया पास की नदी में नहाने गई।

कृष्ण और उनके साथियों ने उनके साथ चाल चली। वे सब गोपियों के पीछे पीछे गए और पेड़ों के पीछे छुप गए। जब गोपियां कपड़े उतार कर नहाने के लिए नदी में उतर गई तो कृष्ण और उनके साथियों ने गोपियों के कपड़े छिपा दिए। गोपियां मनुहार करती रही और अपने कपड़े वापस मांगती रही। गोपियों को बहुत परेशान करने के बाद कृष्ण ने उनके कपड़े वापस किए।

13. ब्रह्मा ने ली कृष्णा की परीक्षा

नन्हे कृष्णा के बड़े बड़े कारनामे देख कर ब्रह्मा चकित थे। उन्होंने कृष्णा की परीक्षा लेने का निश्चय किया। एक दिन जब कृष्णा अपने सखाओ के साथ जानवर चराने गए थे, तो उन्होंने पाया कि एक एक करके उनके सारे सखा और जानवर अदृश्य हो गए हैं।

इस तरह से पूरा मैदान खाली होता देख कृष्णा चकित रह गए। वे समझ गए कि यह ब्रह्मा की ही करामात है। कृष्णा किसी भी हालत में अपने सखाओ और जानवरों के बिना घर नहीं लौटना चाहते थे। ब्रह्मा के सामने अपनी शक्ति दिखाने के लिए कृष्ण ने अपना अनेक रूपों में विस्तार करना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में पूरा मैदान फिर से उनके  सखाओ से भर गया।

सारे जानवर भी दोबारा प्रकट हो गए। कुछ गाय रंभा ने लगी और कुछ घास चरने में लग गई। सब कुछ पहले जैसा ही लगने लगा। अब चकित रहने की बारी ब्रह्मा की थी। उन्होंने कृष्ण की अपारशक्ति को महसूस कर लिया था। उन्होंने स्वर्ग से उनके ऊपर पुष्प वर्षा कर दी।

14. उंगली पर पहाड़ राधा कृष्ण की कहानी

वृंदावन के लोग बारिश के देवता इंद्र की पूजा करते थे। इंद्र बहुत घमंडी था। कृष्ण ने उसे सबक सिखाने का निश्चय किया। उन्होंने लोगों से कह दिया कि इंद्र के बजाय वे लोग गोवर्धन पर्वत और उस पर स्थित जंगल की पूजा करें क्योंकि उनसे उनकी आजीविका चलती है।

वृंदावन के लोगों ने कृष्ण की बात मान ली और इंद्र की पूजा करना छोड़ दिया। इंद्र बहुत क्रोधित हुआ। उसने वृंदावन वासियों को दंड देने का निश्चय किया। उसने बादलों को बुलाया और वृंदावन के ऊपर लगातार बारिश करने का आदेश दीया।

भारी बारिश से लोग डर गए। उन्हें लगने लगा कि बाढ़ से उनका गांव डूब जाएगा और सारे लोग मारे जाएंगे। कृष्ण ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली समूचे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। वे 7 दिन और 7 रात तक गोवर्धन पर्वत को छाते की तरह उठाए रहे और वृंदावन वृंदावन वासी उसके नीचे सुरक्षित बने रहे।

अंत में इंद्र को अपनी गलती महसूस हुई और वह लज्जित भी हुआ। उसने बादलों को वापस बुला लिया और बारिश रोक दी। इंद्र ने कृष्णा से क्षमा भी मांगी।

15. चरवाहा कृष्णा

बचपन बचपन में कृष्णा और उनके बड़े भाई बलराम अपनी गायों को चराने जाया करते थे। जब गाय घास चर रही होती थी तब कृष्णा अपनी बांसुरी से मीठी धुन बजाया करते थे या अपने साथियों के साथ खेला करते थे। एक दिन जब वे और उनके सखा खेल रहे थे तभी कृष्ण ने अपनी गायों के बीच एक नई गाय देखी।

उन्होंने यह बात बलराम को बताई। कृष्ण ने कहा कि यह गाय कुछ अलग तरह की है। बलराम और कृष्ण दोनों चुपके से उस गाय के पास पहुंचे। कृष्ण ने गाय की पूंछ पकड़ी और उसे उठाकर पास की झील में फेंक दिया।

झील में गिरते ही बाय बाय दैत्य में बदल गई और मर गई। कृष्ण ने अपने सखाओ को बताया कि दैत्य उनकी गायों को मारने के लिए गाय के रूप में आया था। सारे सखाओ ने दैत्य के मारे जाने पर खुशी मनाई और कृष्ण की खूब तारीफ की।

16. कृष्णा और अक्रूर कृष्ण की कहानियां

कृष्ण के करतब की कहानियां चारों ओर दूर-दूर तक फैलने लगी थी। कंस को भी लगने लगा था कि कृष्ण ही देवकी का आठवां पुत्र है जो उसका वध करेगा। वह कृष्ण की हत्या करना चाहता था। एक दिन नारद मुनि कान के पास आए और उन्होंने कृष्ण और बलराम के बारे में उसे बताया। कंस ने कृष्ण को मथुरा लाने की योजना बनाई। उसने अपने मंत्री अक्रूर को भेज कर कृष्ण को यग के लिए मथुरा बुलवाया।

दुर्भाग्य सेकंड को यह पता नहीं था कि अक्रूर स्वयं कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे। जब अक्रूर गोकुल पहुंचे तो कृष्ण के दर्शन कर उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई। अक्रूर कृष्ण के चरणों में गिर पड़े। रोते-रोते अक्रूर ने कृष्ण को कंस के षड्यंत्र के बारे में बताया। कृष्ण उनकी बात सुनकर हंस पड़े। उन्होंने मथुरा जाने का निश्चय किया।

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