![](https://karmasu.in/wp-content/uploads/2021/10/दुर्गा-सप्तशती-पाठ-विधि-1.png)
हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत करती हैं, इस दिन को करवाचौथ कहते हैं। रात में चांद का दीदार करने और चलनी से पति का चेहरा देखने के बाद महिलाएं यह व्रत तोड़ती हैं। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन यह व्रत किया जाता है और इस साल यह तिथि 24 अक्टूबर रविवार को पड़ रही है। माना जा रहा है कि करवा चौथ पर इस बार 5 साल बाद यह शुभ योग बन रहा है कि करवा चौथ के व्रत की पूजा रोहिणी नक्षत्र में की जाएगी। इसके अलावा रविवार को यह व्रत होने से भी इस सूर्यदेव का शुभ प्रभाव भी इस व्रत पर पड़ेगा।
करवा चौथ व्रत का महत्व
कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि में मनाए जाने वाले करवा चौथ पर्व के दिन स्त्रियां अपने पति की मंगल आयु एवं अखंड सुहाग की प्राप्ति के लिए व्रत करती हैं। यह पति-पत्नी के अखंड प्रेम और त्याग की चेतना का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं दिन भर के व्रत के बाद ईश्वर से पति की मंगलकामना चाहती हैं। इस दिन चंद्रमा के साथ-साथ शिव-पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की भी पूजा होती है। शिव और पार्वती की पूजा का अर्थ ही है- पार्वती जैसी शक्ति और साधना हासिल करना और पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना। आज के समय में करवा चौथ स्त्री-शक्ति का प्रतीक-पर्व है।
करवा चौथ व्रत सामग्री
जैसा कि आपको पता है कि करवा चौथ व्रत सुहाग से संबंधित है। ऐसे में आपको करवा चौथ व्रत को ध्यान में रखते हुए अपनी ड्रेस का चयन कर लें। नई खरीदनी है, तो उसे खरीद लें क्योंकि अब गिनती के दिन बचे हैं।
1. करवा चौथ व्रत में पूजा के लिए आपको मिट्टी का एक करवा और उसका ढक्कन चाहिए।
2. मां गौरी या चौथ माता एवं गणेश जी की मूर्ति बनाने के लिए काली या पीली मिट्ठी चाहिए।
3. पानी के लिए एक लोटा
4. गंगाजल
5. गाय का कच्चा दूध, दही एवं देसी घी
6. अगरबत्ती, रूई और एक दीपक
7. अक्षत, फूल, चंदन, रोली, हल्दी और कुमकुम
8. मिठाई, शहद, चीनी और उसका बूरा
9. बैठने के लिए आसन
10. इत्र, मिश्री, पान एवं खड़ी सुपारी
11. पूजा के लिए पंचामृत
12. अर्घ्य के समय छलनी
13. भोग के लिए फल एवं हलवा-पूड़ी
14. सुहाग सामग्री: महावर, मेहंदी, बिंदी, सिंदूर, चूड़ी, कंघा, बिछुआ, चुनरी आदि।
15. दक्षिणा के लिए पैसे।
करवा चौथ व्रत विधि
इस दिन स्नान आदि के बाद करवा चौथ व्रत एवं चौथ माता की पूजा का संकल्प करते हैं। फिर अखंड सौभाग्य के लिए निर्जला व्रत रखा जाता है। पूजा के लिए 16 श्रृंगार करते हैं। फिर पूजा के मुहूर्त में चौथ माता या मां गौरी और गणेश जी की विधि विधान से पूजा करते हैं। पूजा के समय उनको गंगाजल, नैवेद्य, धूप-दीप, अक्षत्, रोली, फूल, पंचामृत आदि अर्पित करते हैं। दोनों को श्रद्धापूर्वक फल एवं हलवा-पूड़ी का भोग लगाते हैं। इसके बाद चंद्रमा के उदय होने पर अर्घ्य देते हैं और उसके बाद पति के हाथों जल ग्रहण करके व्रत का पारण करते हैं।