हिंदू धर्म में बहुत सारी देवताओं और असुरों के युद्ध की कथाएं प्रचलित हैं। मगर, सबसे ज्यादा जिस कथा के बारे में लोग जानते हैं वह है ‘समुद्र मंथन’। समुद्र मंथन पहला ऐसा काम था जिसे देवताओं और असुरों ने मिलकर किया था। इससे पहले असुरों को देवताओं से हमेश लड़ते हुए ही देखा गया था। अधिकांश लोगों को यही पता है कि समुद्र मंथन पृथ्वी के निर्माण के लिए हुआ था। मगर, विष्णु पुराण में समुद्र मंथन की कुछ और ही कथा छुपी हुई है। समुद्र मंथन का कारण था देवी लक्ष्मी की खोज। जी हां, देवी लक्ष्मी के क्षीर सागर में विलुप होने के बाद जब उनकी तलाश की गई तब हुआ था समुद्र मंथन। आइए जानते हैं इस दिव्य घटना के बारे में। 

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कथा के अनुसार जब बृह्मा जी ने भगवान विष्णु से पृथ्वी के निर्माण के विषय में बात की तब एक बार फिर भगवान विषणु और देवी लक्ष्मी को एक दूसरे से बिछड़ना पड़ा। उस वक्त देवी लक्ष्मी नाराज हो कर क्षीर सागर की गहराइयों में समाहित हो गई। वहीं भगवान विषणु पृथ्वी लोक को बसाने के बारे में विचार करने लगे। तब पृथ्वी के लगभग पूरे हिस्से में पानी ही पानी था

ऐसे में उसे बसाने के लिए बहुत सारी वस्तुओं की जरूरत थी। यह वस्तुएं क्षीर सागर में छुपे हुए थे। तब भगवान विष्णु ने तय किया कि वह समुद्र का मंथन कराएंगे। मगर, इस मंथन के लिए न तो देवता गण तैयार थे और नहीं वह इसे अकेले कर पाने में समर्थ थे। वहीं दूसरी तरफ देवी लक्ष्मी के रुष्ट होने से पूरे बृह्मांड में सभी देवता और असुर श्रीहीन हो गए थे। सभी चाहते थे कि देवी लक्ष्मी वापिस आ जाएं। 

भगवान विष्णु ने तब देवताओं को श्री का लोभ और असुरों को अमृत का लोभ दे कर समुद्र मंथन के लिए तैयार किया था। इसके बावजूद समुद्र को मथना आसान नहीं था। तब भगवान विष्णु ने अपनी माया से मंदार पर्वत को समुद्र के बीचो बीच ला खड़ा किया। इसके बाद मंदार पर्वत से समुद्र को मथने के लिए एक मजबूत रस्सी की जरूरत थी। तब भगवान विष्णु ने भगवान शिव से उनके गले में वास करने वाले नाग वासुकी को समुद्र मंथन के लिए देने के लिए आग्रह किया। इसके बाद बारी आई कि वासुकी के मुंह का हिस्सा कौन पकड़गा और पूछ का हिस्सा कौन पकड़ेगा। वासुकी के मुंह से जैहरीली हवा निकलती थी मगर वह हिस्सा मजबूत था। वहीं पूंछ का हिस्सा कमजोर था। तब असुरों ने तय किया कि वह मजबूत भाग को पकड़ेंगे। हालाकि यह भगवान विषणु की एक चाल थी। 

इसके बाद बारी आई कि मंदार पर्वत के भार को कौन उठाएगा। तब भगवान विष्णु ने कछुए का रूप धारण किया और अपनी पीठ पर मंदार पर्वत को रख लिया। तब कई वर्षों तक समुद्र मंथन का काम चलता रहा। तब जाकर सबसे पहले मंथन से हलाहल निकला। इसे भगवान शिव ने पी लिया। तब ही से उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा। इसके बाद कामधेनू गाय, उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी,  कौस्तुभमणि हीरा, कल्पवृष पेड़ और ऐसे 13 रत्न निकले। सबसे आखिर में देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन से निकलीं। जैसे ही देवी लक्षमी समुद्र से बाहर आईं सभी देवताओं के गहने और धन वापिस आ गया।

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