ज्येष्ठ मास की अमावस्या के बाद चंद्र देवता के दर्शन का सौभाग्य कब प्राप्त होगा और क्या है इसकी पूजा विधि, मंत्र और धार्मिक महत्व, विस्तार से जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.

सनातन परंपरा में किसी भी मास की अमावस्या के बाद होने वाले चंद्र दर्शन का बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व माना गया है. यही कारण है कि जीवन में शुभता और सौभाग्य की कामना लिए लोग इस दिन का बहुत बेसब्री से इंतजार करते हैं. ज्योतिष में जिस चंद्रमा को मन का कारक माना गया है, उसका दर्शन महीने की 20 तारीख को होगा. चंद्र दर्शन करना किस समय बहुत ज्यादा शुभ रहता है? चंद्र दर्शन की पूजा विधि और मंत्र क्या है? आइए इन सभी बातों के साथ चंद्र देवता की पूजा का पुण्य लाभ दिलाने वाला महाउपाय को विस्तार से जानते हैं.

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चंद्र दर्शन की पूजा विधि

हिंदू मान्यता के अनुसार चंद्र दर्शन करने के लिए व्यक्ति को शाम के समय तन और मन से पवित्र होकर इस पूजा को करना चाहिए. यदि संभव हो तो चंद्र दर्शन करते समय व्यक्ति को सफेद कपड़े पहनना चाहिए. चंद्र दर्शन की पूजा में सबसे पहले दूध और उसके बाद शुद्ध जल चंद्र देवता को अर्पित करें. इसके बाद उन्हें खीर का भोग लगाकर धूप-दीप दिखाएं और चंद्र देवता के मंत्र ‘ॐ सों सोमाय नम:’ अथवा ‘ॐ श्रीं श्रीं चन्द्रमसे नम:’का जप करें. मान्यता है कि यह पूजा और मंत्र जप पति और पत्नी दोनों साथ मिलकर करें तो वैवाहिक जीवन सुखमय बना रहता है. इसी तरह चंद्र दर्शन से व्यक्ति मन से जुड़ी चिंताएं दूर होती है और घर-परिवार में सुख-सौभाग्य बना रहता है.

चंद्र दर्शन का महत्व

चंद्र ग्रह को ज्ञान, बुद्धि और मन का स्वामी ग्रह माना जाता है. चंद्र दर्शन के दिन चंद्रमा के दर्शन से विशेष लाभ मिलते हैं. लोग भगवान की कृपा पाने के लिए कठोर व्रत और तपस्या करते हैं. चंद्र दर्शन और पूजा से भक्तों को सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होती है. जीवन से नकारात्मकता को कम करने के लिए चंद्र यंत्र की पूजा करनी चाहिए. ऐसा करने से लाभ मिलता है. इस दिन ब्रह्मणों को दान करने से भी लाभ मिलता है.

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