हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) रखा जाता है. ये व्रत महादेव को समर्पित है और उन्हें अत्यंत प्रिय है. कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय जब महादेव ने संसार को बचाने के लिए विषपान किया था, उस दिन त्रयोदशी (Trayodashi) तिथि थी. तब सभी देवताओं ने उनका आभार व्य​क्त करने के लिए प्रदोष काल में उनका पूजन किया था. इससे महादेव अत्यंत प्रसन्न हुए थे और तभी से महादेव को समर्पित ये व्रत रखा जाने लगा. इस व्रत में आज भी महादेव की पूजा प्रदोष काल (Pradosh Kaal) में ही की जाती है. दिन के हिसाब से प्रदोष का महत्व भी बदल जाता है. आज 15 जनवरी को साल 2022 का पहला प्रदोष व्रत रखा जा रहा है. इस मौके पर पूजा करते समय आप आज शनि प्रदोष की ये कथा जरूर पढ़ें.

शनि प्रदोष व्रत कथा (Shani Pradosh Vrat Katha)

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पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय में एक नगर में प्रसिद्ध व्यापारी रहता था. वो काफी संपन्न था और हमेशा दूसरों की मदद किया करता था. उसके दरवाजे पर जो भी मदद मांगने आ जाता, उसे वो खाली हाथ कभी नहीं लौटाता था. अपने परोपकारी स्वभाव की वजह से समाज में उसकी अच्छी खासी प्रतिष्ठा थी. लोग उसका काफी सम्मान करते थे.

उनके घर में बस कमी थी तो संतान की, इस कारण वो व्यापारी और उसकी पत्नी काफी दुखी रहते थे. उन्होंने इसके लिए हर प्रकार के प्रयास किए, लेकिन उनको संतान प्राप्त नहीं हो सकी. एक बार दुखी मन से वो पति और पत्नी तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े.

नगर के बाहर पहुंचने पर उन्हें एक पेड़ के नीचे बैठे साधु दिखे. साधु ध्यान की अवस्था में थे. वे दोनों साधु के पास गए और उनके सामने हाथ जोड़कर बैठ गए. जब साधु का ध्यान खत्म हुआ तो उन्होंने दोनों को देखा और उनसे कहा कि तुम्हारा जो भी दुख है, वो मैं अच्छी तरह से जानता हूं.

मुझे मालूम है कि तुम अपने कुल को आगे बढ़ाने के लिए एक संतान चाहते हो. इसके लिए तुम दोनों को महादेव की आराधना करनी चाहिए और शनि प्रदोष व्रत विधि विधान से करना चाहिए. शिव कृपा से ही तुम्हें संतान प्राप्त होगी. इसके बाद साधु ने उन्हें शनि प्रदोष की व्रत विधि भी बताई.

इसके बाद व्यापारी और उसकी पत्नी ने उस साधु को प्रणाम किया और तीर्थयात्रा पर चले गए. तीर्थयात्रा से लौटकर आने के बाद उन्होंने शनि प्रदोष का व्रत साधु के बताए अनुसार विधि से किया. कुछ समय तक व्रत करने के बाद एक दिन व्यापारी की पत्नी गर्भवती हो गई और उसने पुत्र रत्न को जन्म दिया. इस प्रकार शनि प्रदोष व्रत करने से उनके जीवन का खालीपन भर गया और परिवार में खुशियां आ गईं. माना जाता है कि जो भी नि:संतान दंपति इस व्रत को पूरी श्रद्धा से करता है, उसे संतान सुख जरूर मिलता है.

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