शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
वास्तु शास्त्र के अलावा हमारे हिंदू धर्म में भी पेड़-पौधों को बहुत महत्व प्रदान है। यही कारण है कि इनकी विधि वत पूजा का विधान है। इन्हीं में से एक है पीपल का पेड़ जिसे ब्रह्मा जी का रूप माना जाता है। पौराणिक व धार्मिक मतों के अनुसार पीपल पर जल चढ़ाने से व इनकी पूजा करने से कई तरह के लाभ प्राप्त होते हैं। परंतु क्या आप जानते हैं इसकी पूजा करने समय दिन वार का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है। दरअसल शास्त्रों में पीपल के वृक्ष से जुड़ी एक कथा वर्णित है, जिसमें बताया गया है कि सप्ताह का एक ऐसा भी दिन होता है जिस दौरान पीपल के वृक्ष की पूजा करना फलदायी नहीं कष्टकारी साबित होता है। तो अगर आप जानना चाहते हैं कि कौन सा है वो दिन व क्या इसके पीछे की पौराणिक कथा तो आगे की जानकारी को ध्यान से पढ़िए। पीपल के वृक्ष बारे में एक कथा प्रचलित है कि, एक बार माता लक्ष्मी और उनकी छोटी बहन दरिद्रा श्री विष्णु के पास गई और उनसे बोली, हमें कहीं तो रहने का स्थान दो। तब भगवान विष्णु ने उन्हें पीपल के वृक्ष पर वास करने को कहा। इसलिए पीपल पर जल चढ़ाने से धन-संपदा की परेशानी दूर हो जाती है।
तो वहीं रविवार को पीपल की पूजा नहीं की जाती क्योंकि जब विष्णु भगवान ने माता लक्ष्मी से विवाह करना चाहा तो लक्ष्मी माता ने मना कर दिया था क्योंकि उनकी बहन दरिद्रा का विवाह नहीं हुआ था। दरिद्रा के विवाह के उपरांत ही वह श्री हरी विष्णु से विवाह कर सकती थी। उन्होंने दरिद्रा से पूछा,” वो कैसा वर पाना चाहती हैं।”तो वह बोली कि,” वह ऐसा पति चाहती हैं जो कभी पूजा-पाठ न करे और उसे ऐसे स्थान पर रखे जहां कोई भी पूजा-पाठ न करता हो। तब श्री विष्णु ने उनके लिए ऋषि नामक वर चुना और दोनों विवाह सूत्र में बंध गए।
अब दरिद्रा की शर्तानुसार उन दोनों को ऐसे स्थान पर वास करना था जहां कोई भी धर्म कार्य न होता हो। ऋषि उसके लिए उसका मन भावन स्थान ढूंढने निकल पड़े लेकिन उन्हें कहीं पर भी ऐसा स्थान नही मिला। दरिद्रा उनकी प्रतीक्षा में विलाप करने लगी और यहाँ श्री विष्णु ने दोबारा लक्ष्मी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो लक्ष्मी जी बोली,” जब तक मेरी बहन की गृहस्थी नहीं बसती मैं विवाह नहीं करूंगी। धरा पर ऐसा कोई स्थान नहीं है।
जहां कोई धर्म कार्य न होता हो। उन्होंने अपने निवास स्थान पीपल को रविवार के लिए दरिद्रा व उसके पति को दे दिया। इसलिए हर रविवार पीपल के नीचे देवताओं का वास न होकर दरिद्रा का वास होता है। यही वजह है कि इस दिन पीपल की पूजा वर्जित मानी जाती है। इसी लोक विश्वास के आधार पर लोग पीपल के वृक्ष को काटने से आज भी डरते हैं, लेकिन साथ में यह भी बताया गया है कि यदि पीपल के वृक्ष को काटना-छांटना बहुत ही आवश्यक हो तो उसे रविवार को ही काटा-छांटा जा सकता है।