माता का तीसरा स्वरूपनवरात्र के तीसरे दिन मां दुर्गा के तृतीय स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। इस दिन मां चंद्रघंटा को दूध का भोग चढ़ाएं और उसे जरूरतमंद को दान कर देना चाहिए। ऐसा करने से धन-वैभव और ऐशवर्य की प्राप्ति होती है।
नवरात्रि की तृतीय देवी चन्द्रघंटा मणिपुर चक्र पर विराज कर मानव सृष्टि से भय का उन्मूलन कर साहस और ऊर्जा का संचार करती है। यह शक्ति तृतीय चक्र पर विराज कर ब्रह्माण्ड से दसों प्राणों को संतुलित करती है और महाआकर्षण प्रदान करती है। मानव शरीर में चन्द्रघण्टा के जागृत न होने से कैंसर, मधुमेह, उच्चरक्तचाप और ख़राब पाचन की समस्या का जन्म होता है।
माता चंद्रघंटा को अपने अंदर जागृत करने के लिए इस ध्यान मंत्र का नियमित जप करना चाहिए।
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
हमारे मणिपुर चक्र अर्थात् नाभि चक्र पर विराजने वाली वाली ऊर्जा चंद्रघंटा जीवन के ढेरों सुगंधों और ब्रम्हाण्डिय ध्वनियों के संग अपने हाथों में धारण किए हुए कमल के रूप में कीचड़ में भी पवित्रता व स्निग्धता तथा अनेक लक्ष्य के साथ भी एकजुटता की द्योतक हैं।
यह भय से मुक्त करके अभय प्रदान करती है। नवरात्रि के तीसरे दिन पूजित चंद्रघण्टा के ललाट पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र स्थापित है इसलिए इस शक्ति को चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। मणिपुर चक्र देह में चक्र व्यवस्था का तृतीय चक्र है। जो नाभि के पीछे केंद्रित है। यह देह का आग्नेय केंद्र या मार्तण्ड केंद्र भी कहलाता है क्योंकि इसका आधार तत्व रोहिताश्व अर्थात् अग्नि है। देह में चंद्रघण्टा के प्रतिपादन कर मणिपुर चक्र के बोध से स्वाधिष्ठान चक्र की निषेधात्मक प्रवृत्तियां उड़न छू हो जाती हैं।
चंद्रघण्टा के स्पंदन से मनुष्य में स्पष्ट और उचित निर्णय की क्षमता पूर्ण चमक व धमक के साथ प्रकट होती है और व्यक्ति में बौद्धिक क्षमता का विकास, स्वयं पर विश्वास व ज्ञान के प्रकाश का संचार होता है। इसके फलस्वरूप व्यक्ति में उत्तम गुणों के साथ अंतर्मन में आनंद का अप्रतिम संचार होने लगता है और मानव किसी महामानव सा अपना ही नहीं सबका बेड़ा पार करने की क्षमता से ओत-प्रोत हो जाता है। यह चक्र स्फूर्ति का केन्द्र है। चंद्रघण्टा के अंतर्मन में जागृत होते ही जीवन से भय का नाश होने लगता है।अगर देह में चंद्रघंटा जागृत न हों तो अग्नाशय और पाचक तंत्र की प्रक्रिया प्रभावित होती है और पाचन बिगड़ जाता है, परिसंचारी रोग, मधुमेह और रक्तचाप में असंतुलन जैसे कई विकार तकलीफ देने लगते हैं। नाभि चक्र के बाधित होने से ही व्यक्ति को भय और अवसाद का अनुभव होता है। भयभीत होने पर नाभि के आसपास हलचल और गुड़गुड़ को आप स्पष्ट रूप से महसूस कर सकते हैं। नाभि चक्र का प्रतीक रंग पीला प्रतिनिधि मेष यानी मेढ़ा और प्रतीक चिह्न शीर्ष बिंदु वाला त्रिभुज है। दस पंखुडिय़ों वाला यह चक्र दस प्राणों को यथा प्राण, व्यान, अपान, समान, उदान, कूर्म, क्रीकल, शेषनाग, देवदत्त व धनंजय को प्रतिबिम्बित करती है। इसका मंत्र है रं। चंद्रघण्टा के जागृत होने से व्यक्ति अनिद्रा और चिंता से निर्मुक्त होकर आनंद, ज्ञान, बौद्धिकता, साफ़गोई और अपने सटीक फ़ैसले से जग जीत लेता है।