व्यास जी ने अर्जुन से कहा :—– पूर्वकाल की बात है,तीन वलवान् असुरों ने आकाश में अपने नगर बना रक्खे थे । वे नगर विमान के रूप में आकाश में विचरा करते थे । उन तीन नगरों में एक लोहे का, दूसरा चाँदी का और तीसरा सोने का बना था । जो सोने का बना था , उसका स्वामी था कमलाक्ष । चाँदी के बने हुए पुर में तारकाक्ष रहता था । तथा लोहे के नगर में विद्युन्माली रहता था । इन्द्र ने उन पुरों का भेदन करने के लिए अपने सभी अस्त्रों का प्रयोग किया पर वे सफल नही हुए ।तब सभी देवता भगवान शंकर की शरण में गये । वहाँ पहुँच कर उन्होंने कहा:——– भगवन ! इन त्रिपुर निवासी दैत्यों को ब्रह्मा जी ने वरदान दे रक्खा है, उसके घमन्ड में फूलकर ये भयंकर दैत्य तीनों लोकों को कष्ट पहुँचा रहे हैं। महादेव! आप के शिवा दूसरा कोई इनका ऩाश करने में समर्थ नही है ,आप ही इन देवद्रोहियों का वध कीजिए ।
देवताओं के ऐसा कहने पर भगवान शंकर ने उनका हित साधन के लिए तथास्तु कहा और :——— एक दिव्य रथ तथा अस्त्रों का निर्माण किया :—–
दिव्य रथ का निर्माण :—-
१- रथ की धवाजा बने:–गन्धमादन तथा विन्ध्याचल पर्वत ।
२- ऱथ बनी :-समुद्र और वनों सहित सम्पूर्ण पृथ्वी ।
३- नागराज शेष रथ की धुरी के स्थान पर रक्खा गया ।
४- पहिया बने :- चन्द्रमा और सूर्य ।
५- एलपत्र के पुत्र को और पुष्पदन्त को जुए की कीलें बनाया ।
६- मलयाचल को जुआ बनाया ।
७- तक्षकनाग को बनाया जुआ बाँधने की रस्सी ।
८- घोडे की बागडोर बने सम्पूर्ण प्राणी ।
९- चारों वेद बने :- रथ के चार घोडे ।
१०- लगाम बने :– उपवेद ।
११- गायत्री और सावित्री बनीं :– पगहा
१२:- ॐकार को बनाया :– चाबुक ।
१३- ब्रह्मा जी बनें :- सारिथ
१४- गाण्डीव धनुष बना :- मन्दराचल ।
१५- प्रत्यन्चा बने :- वासुकिनाग ।
१६- बाण बने ‘- भगवान विष्णु ।
१७- बाण का फल बने :- अग्नि देव
१८- बाण की पाँख बने :- वायुदेव ।
१९:- बाण की पूँछ बने :- वैवस्वत यम ।
२०- बाण के फल की धार बनी :– बिजली
२१- मेरू को प्रधान ध्वजा बनाया ।
इस प्रकार सर्वदेवमय दिव्य रथ तैयार कर भगवान शंकर उसपे आरूढ हुए । भगवन शंकर उस रथ में एक हजार वर्ष तक रहे । जब तीनों पुर आकाश में एकत्रित हुए तब शिवजी ने तीन गाँठ और तीन फल वाले बाण से उन तीनों पुरों को भेद डाला । -हे ! अर्जुन यह घटना कार्तिक,शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को घटी थी।
इस दिन भगवान शंकर की आराधना करने से मानव विश्वविजयी हो जाता है। तथा शिवजी हर तरह के सुख- साधन प्रदान करते हैं। इस लिए -हे ! अर्जुन तुम शिवजी की आराधना करो तुम्हारा कल्याण हो। भगवान शंकर ही रूद्र,शिव,अग्नि,सर्वज्ञ , इन्द्र,वायु और अश्वनीकुमार हैं। वे ही बिजली और मेघ है। सूर्य, चंद्रमा,वरूण,काल,,,मृत्यु, यम, रात, दिवस, मास, पक्ष, ॠतु, संवत्सर, सन्ध्या, धाता, विधाता, विश्वात्मा और विश्वकर्मा भी वे ही हैं।
वे निराकार होकर भी सम्पूर्ण देवताओं के आकार धारण करते हैं। वे एक, अनेक, सौ, हजार और लाख हैं। -हे ! अर्जुन शिवजी की महिमा मैं एक हजार वर्ष तक कहता रहूँ, तो भी उनके गुणों का पार नही पा सकता । कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को जो भी प्राणी महाभारत की पूजा भगवान शिव की आराधना करके करता है वह समस्त सुखों का अधिकारी हो जाता है । शिव जी ने व्यास जी को वरदान दिया था।
आप के लिखे इस ग्रंथ में मेरा विजयेश्वर नाम से निवास होगा। जो भी महाभारत ग्रन्थ का रसास्वादन करेगा,करायेगा उसकी मनोकामना पूरी होगी ।