Sugreev Bali Fight सुग्रीव-बाली का युद्ध

रामायण के अनुसार, Sugreev सुग्रीव और बाली दो वानर राजा थे जो कि किष्किंधा के शासक थे। Sugreev Bali सुग्रीव बाली के छोटे भाई थे, लेकिन बाली ने अपने बल और पराक्रम के बल पर सुग्रीव को राज्य से निकाल दिया था। सुग्रीव को वन में भागना पड़ा और वह अपने मित्रों के साथ रह रहा था।

एक दिन, सुग्रीव के पास श्री राम और लक्ष्मण आते हैं। श्री राम माता सीता की खोज में थे और उन्हें सुग्रीव के बारे में पता चला था। सुग्रीव श्री राम से मदद मांगता है और श्री राम उसे वादा करते हैं कि वे उसे उसका राज्य वापस दिलाएंगे।

श्री राम और लक्ष्मण सुग्रीव के साथ किष्किंधा जाते हैं। सुग्रीव बाली को युद्ध के लिए ललकारता है। बाली सुग्रीव को युद्ध के लिए तैयार देखकर प्रसन्न होता है। दोनों भाई युद्ध के मैदान में उतरते हैं और एक-दूसरे पर प्रहार करने लगते हैं।

बाली अत्यंत बलशाली था और सुग्रीव उससे हार जाता है। सुग्रीव भाग जाता है और बाली उसे पराजित मान लेता है।

श्री राम जानते हैं कि बाली को सीधे तौर पर मारना संभव नहीं है, क्योंकि बाली को ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त था कि जो भी उसके सामने युद्ध करे, उसकी आधी शक्ति बाली को प्राप्त हो जाएगी। इसलिए श्री राम बाली को छिपकर मारने की योजना बनाते हैं।

श्री राम सुग्रीव को फिर से बाली से युद्ध करने के लिए कहते हैं। इस बार सुग्रीव के गले में एक माला डाली जाती है ताकि श्री राम उसे पहचान सकें। सुग्रीव और बाली फिर से युद्ध के मैदान में उतरते हैं।

बाली सुग्रीव पर प्रहार करता है, लेकिन सुग्रीव बच जाता है। सुग्रीव भी बाली पर प्रहार करता है। इस बार श्री राम बाली के पीछे से निकलकर उस पर बाण चलाते हैं। बाली बाण लगने से घायल हो जाता है और गिर जाता है।

बाली मरने से पहले श्री राम से पूछता है कि उन्होंने उसे छिपकर क्यों मारा। श्री राम बाली को उसकी गलतियों का एहसास कराते हैं और उसे बताते हैं कि उन्होंने उसके साथ न्याय किया है।

बाली की मृत्यु के बाद सुग्रीव किष्किंधा का राजा बनता है। वह श्री राम और लक्ष्मण का आभार मानता है और उन्हें अपना मित्र बनाता है।

युद्ध का परिणाम

सुग्रीव-बाली का युद्ध रामायण की एक महत्वपूर्ण घटना है। इस युद्ध के परिणामस्वरूप सुग्रीव को उसका राज्य वापस मिलता है और बाली का वध होता है।

इस युद्ध से यह भी पता चलता है कि कर्म का नियम सदा ही लागू रहता है। बाली ने अपने भाई सुग्रीव के साथ अधर्म किया था और उसके लिए उसे मृत्यु का दंड मिला।

युद्ध का महत्व

सुग्रीव-बाली का युद्ध कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह युद्ध न्याय, कर्म और अधर्म के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक है। यह युद्ध हमें यह भी सिखाता है कि यदि हम अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं और अधर्म का विरोध करते हैं, तो हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

श्रीराम के द्वारा बाली का वध 

कुछ ही समय बाद सुग्रीव बाली के दरबार पर जाकर उसे फिर से ललकारने लगता है। सुग्रीव की ललकार सुनकर वाली आग बबूला होकर निकलता है और बोलता है आज तुझे मेरे हाथों से कोई नहीं बचा सकता। दोनों में फिर से युद्ध शुरू हो जाता है। जैसा कि विदित है कि बाली बलाबल में सुग्रीव से कहीं अधिक था इसलिए वह फिर सुग्रीव पर भारी पड़ने लगता है। जब बाली अपने गधा के प्रहार से सुग्रीव का अंत करने ही वाला था कि श्री राम अपना बाण बाली  पर चला देते हैं। बाण लगते हैं बाली वहीं पर गिर जाता है और चिल्लाने लगता है कि मेरे साथ छल  हुआ है। कौन है वह कायर जिसने छुपकर यह पाप किया है मेरे सामने आए। तब श्री राम लक्ष्मण वाली के सामने जाते हैं जिन्हें देखकर बाली उनसे शिकायत करता है कि तुमने छुपकर मुझ पर बाण चलाया हैं तुमने मेरे साथ अन्याय किया है। तब बाली को समझाते हुए श्री राम कहते हैं कि तुमने अपने छोटे भाई को अपने राज्य से निकालकर और उसकी पत्नी को अपने अधीन करके  सबसे बड़ा महा पाप किया है क्योंकि छोटे भाई की पत्नी पुत्री के समान होती है और आज तुम हमें धर्माधर्म का पाठ पढ़ा रहे हो। सुग्रीव मेरा मित्र है और अपने मित्र की रक्षा के लिए यदि मुझे पाप कर्म करके नरक भी भोगना पड़े तो मैं इसके लिए तैयार हूं। बहुत समय तक समझाने के बाद बाली को श्रीराम की महिमा समझ में आ जाती है और वह अपने पुत्र अंगद को श्रीराम की सेवा में समर्पित करके प्राण त्याग देता है। 

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