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शिवपुराण एक प्रमुख हिंदू धार्मिक ग्रंथ है जो भगवान शिव के बारे में विस्तृत ज्ञान प्रदान करता है। यह पुराण भगवान शिव की विभिन्न अवतार, उनके लीलाएं, तप, विवाह, और उनके भक्तों के अनुभवों को समेटता है। इसमें भगवान शिव की महिमा का वर्णन भी किया गया है।

शिवपुराण में भगवान शिव को महादेव, महाकाल, रुद्र, नीलकंठ, भैरव, इत्यादि के नामों से संदर्भित किया गया है। यहां कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं और महिमा की कुछ उदाहरण दिए जा सकते हैं:

  1. अर्धनारीश्वर रूप: भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप उनकी महिमा का एक प्रमुख आदान-प्रदान है, जिसमें वे अर्ध-पुरुष और अर्ध-स्त्री के रूप में प्रकट होते हैं, जो सृष्टि के समर्थक का संकेत करता है।
  2. त्रिशूल धारी: भगवान शिव को त्रिशूल धारी के रूप में भी प्रस्तुत किया गया है, जो उनकी शक्ति, साहस और न्याय का प्रतीक है।
  3. नगेन्द्र ध्वजी: भगवान शिव का नगेन्द्र ध्वजी रूप, जिसमें वे सर्पों का राजा होते हैं, उनकी अपार शक्ति और संयम का प्रतीक है।
  4. अनादि और अनंत: भगवान शिव को अनादि (अविनाशी) और अनंत (बिना सीमा) कहा जाता है, जो उनकी अद्वितीय और अविनाशी महिमा को दर्शाता है।

ये थे कुछ मुख्य तथ्य जो शिवपुराण में भगवान शिव की महिमा को वर्णित करते हैं। यह पुराण उनकी अनंत शक्ति, अनुग्रह, और समर्पण की कथाएं भी समेटता है।

ऐसे करें मूर्ति का निर्माण?

आधुनिक काल में मूर्ति बनाने के तरीकों में बहुत से बदलाव आ चुके हैं. लोग साचों का इस्तेमाल कर मूर्तियों का निर्माण करते हैं. आमतौर पर लोग बाजार से खरीदकर मूर्ति लाते हैं और उसे ही अपने घर के मंदिर में स्थापित कर पूजा करते हैं. लेकिन शिवपुराण के अनुसार यह बताया गया है कि मिट्टी की बनाई हुई प्रतिमा से सभी लोगों की मनोकामना पूरी होती है. शिवपुराण के अनुसार मूर्ति को बनाने के लिए किसी नदी, तालाब, कुआं या जल के भीतर की मिट्टी लाकर उसमें सुगंधित द्रव्य मिलाकर शुद्ध करें. उसके बाद मिट्टी में दूध मिलाकर हाथों से सुंदर मूर्ति का निर्माण करें और पद्मासन द्वारा मूर्ति का आदर सहित पूजन करें.

मूर्ति और शिवलिंग का पूजन

शिवपुराण के अनुसार गणेश जी, भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान सूर्य, भगवान विष्णु और शिवलिंग की हमेशा पूजा करनी चाहिए. मन्नत पूरी करने के लिए सोलह उपचारों से पूजा करना फलदायक होता है. किसी व्यक्ति के द्वारा स्थापित शिवलिंग पर नैवेद्य से शिवलिंग का पूजन करना चाहिए. देवताओं के द्वारा स्थापित शिवलिंग पर नैवेद्य अर्पित करना चाहिए और यदि शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ है, तब उसका पूजन पांच सेर नैवेद्य से करें. इस प्रकार पूजन करने से मनचाहा फल मिलता है. साथ ही यह भी कहा गया है कि इस तरह सहस्र यानि हजार बार पूजा करने से व्यक्ति को सतलोक की प्राप्ति होती है.

शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग का महत्व

भगवान शिव को मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है. योनि और लिंग दोनों ही शिव समाहित है. इसलिए भगवान शिव जगत का जन्म निरूपण हैं. यही कारण है कि व्यक्ति को जन्म की निवृत्ति के लिए पूजन के अलग नियमों का पालन करना होता है. साथ ही सारा जगत बिंदु- नाद स्वरुप है. बिंदु शक्ति और नाद स्वयं शिव है. इसलिए पूरा जगत ही शिव और शक्ति का ही स्वरूप है और इस ही जगत का कारण बताया जाता है. बिंदु देव है और नाद भगवान शिव हैं, इनका मिला जुला रूप ही शिवलिंग कहलाता है. देवी उमा जगत की माता है और भगवान शिव जगत के पिता है जो उनकी सेवा करता है उस पर उनकी कृपा बढ़ती रहती है.

शिवलिंग अभिषेक और प्रकार

जीवन और मृत्यु के बंधन से मुक्त होने के लिए श्रद्धापूर्वक शिवलिंग का पूजन करना चाहिए. गाय के दूध, दही और घी को शहद और शक्कर के साथ मिलाकर पंचामृत तैयार करें और उन्हें अलग-अलग भी रखें. पंचामृत को शिवलिंग पर अर्पित करें. दूध और अनाज मिलाकर नैवेद्य तैयार कर प्रणव मंत्र का जाप करते हुए उसे भगवान शिव को अर्पित करें.

प्रणव को ध्वनि लिंग स्वयंभू लिंग और नाद स्वरूप होने के कारण नाद लिंग और बिंदु स्वरूप होने के कारण बिंदु लिंग के रूप में जाना जाता है. अचल रूप में शिवलिंग को मकर स्वरूप माना जाता है. पूजा की दीक्षा देने वाले गुरु आचार्य विग्रह आकार का प्रतीक होने से आकार लिंग के भी छह भेद हैं.

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