पूजा-उपासना तो जैसे भारतवासियों की सांसों में बसा हुआ है. शायद की ऐसा कोई दिन गुजरता होगा, जब कोई खास पूजा का संयोग न बनता हो. सप्ताह के हर दिन के अनुसार भी विशेष पूजा का विधान है. शुक्रवार को लक्ष्मी देवी का व्रत रखा जाता है. इसे ‘वैभव लक्ष्मी व्रत’ भी कहा जाता है.

पूजा-उपासना तो जैसे भारतवासियों की सांसों में बसा हुआ है. शायद की ऐसा कोई दिन गुजरता होगा, जब कोई खास पूजा का संयोग न बनता हो. सप्ताह के हर दिन के अनुसार भी विशेष पूजा का विधान है. शुक्रवार को लक्ष्मी देवी का व्रत रखा जाता है. इसे ‘वैभव लक्ष्मी व्रत’ भी कहा जाता है.

वैभव लक्ष्मी व्रत की कथा

किसी शहर में अनेक लोग रहते थे. सभी अपने-अपने कामों में लगे रहते थे. किसी को किसी की परवाह नहीं थी. भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव, दया-माया, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गए. शहर में बुराइयां बढ़ गई थीं. शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी-डकैती वगैरह बहुत से गुनाह शहर में होते थे. इनके बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे.

ऐसे ही लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी. शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोषी स्वभाव वाली थी. उनका पति भी विवेकी और सुशील था. शीला और उसका पति कभी किसी की बुराई नहीं करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे. शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे.

देखते ही देखते समय बदल गया. शीला का पति बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा. अब वह जल्द से जल्द करोड़पति बनने के ख्वाब देखने लगा. इसलिए वह गलत रास्ते पर चल पड़ा फलस्वरूप वह रोडपति बन गया. यानी रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी उसकी हालत हो गई थी. शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा वगैरह बुरी आदतों में शीला का पति भी फंस गया. दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई. इस प्रकार उसने अपना सब कुछ रेस-जुए में गंवा दिया.

शीला को पति के बर्ताव से बहुत दुःख हुआ, किन्तु वह भगवान पर भरोसा कर सबकुछ सहने लगी. वह अपना अधिकांश समय प्रभु भक्ति में बिताने लगी. अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी. शीला ने द्वार खोला तो देखा कि एक माँजी खड़ी थी. उसके चेहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था. उनकी आँखों में से मानो अमृत बह रहा था. उसका भव्य चेहरा करुणा और प्यार से छलक रहा था. उसको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई. शीला के रोम-रोम में आनंद छा गया. शीला उस माँजी को आदर के साथ घर में ले आई. घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था. अतः शीला ने सकुचाकर एक फटी हुई चद्दर पर उसको बिठाया.

मांजी बोलीं- क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं? हर शुक्रवार को लक्ष्मी जी के मंदिर में भजन-कीर्तन के समय मैं भी वहां आती हूं.’ इसके बावजूद शीला कुछ समझ नहीं पा रही थी. फिर मांजी बोलीं- ‘तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आईं अतः मैं तुम्हें देखने चली आई.’

मांजी के अति प्रेमभरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया. उसकी आंखों में आंसू आ गए और वह बिलख-बिलखकर रोने लगी. मांजी ने कहा- ‘बेटी! सुख और दुःख तो धूप और छाँव जैसे होते हैं. धैर्य रखो बेटी! मुझे तेरी सारी परेशानी बता.

क्या आप जानते हैं माता लक्ष्मी की उत्पत्ति की कहानी

मांजी के व्यवहार से शीला को काफी संबल मिला और सुख की आस में उसने मांजी को अपनी सारी कहानी कह सुनाई.

कहानी सुनकर माँजी ने कहा- ‘कर्म की गति न्यारी होती है. हर इंसान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते हैं. इसलिए तू चिंता मत कर. अब तू कर्म भुगत चुकी है. अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आएँगे. तू तो माँ लक्ष्मी जी की भक्त है. माँ लक्ष्मी जी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं. वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं. इसलिए तू धैर्य रखकर माँ लक्ष्मी जी का व्रत कर. इससे सब कुछ ठीक हो जाएगा.’

शीला के पूछने पर मांजी ने उसे व्रत की सारी विधि भी बताई. मांजी ने कहा- ‘बेटी! मां लक्ष्मीजी का व्रत बहुत सरल है. उसे ‘वरदलक्ष्मी व्रत’ या ‘वैभव लक्ष्मी व्रत’ कहा जाता है. यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है. वह सुख-संपत्ति और यश प्राप्त करता है.’

शीला यह सुनकर आनंदित हो गई. शीला ने संकल्प करके आँखें खोली तो सामने कोई न था. वह विस्मित हो गई कि मांजी कहां गईं? शीला को तत्काल यह समझते देर न लगी कि मांजी और कोई नहीं साक्षात्‌ लक्ष्मीजी ही थीं.

दूसरे दिन शुक्रवार था. सबेरे स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर शीला ने मांजी द्वारा बताई विधि से पूरे मन से व्रत किया. आखिरी में प्रसाद वितरण हुआ. यह प्रसाद पहले पति को खिलाया. प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया. उस दिन उसने शीला को मारा नहीं, सताया भी नहीं. शीला को बहुत आनंद हुआ. उनके मन में ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ के लिए श्रद्धा बढ़ गई.

शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ किया. इक्कीसवें शुक्रवार को माँजी के कहे मुताबिक उद्यापन विधि कर के सात स्त्रियों को ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की सात पुस्तकें उपहार में दीं. फिर माताजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छबि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगीं- ‘हे मां धनलक्ष्मी! मैंने आपका ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है. हे मां! मेरी हर विपत्ति दूर करो. हमारा सबका कल्याण करो. जिसे संतान न हो, उसे संतान देना. सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना. कुंआरी लड़की को मनभावन पति देना. जो आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उनकी सब विपत्ति दूर करना. सभी को सुखी करना. हे माँ! आपकी महिमा अपार है.’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छबि को प्रणाम किया.

व्रत के प्रभाव से शीला का पति अच्छा आदमी बन गया और कड़ी मेहनत करके व्यवसाय करने लगा. उसने तुरंत शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए. घर में धन की बाढ़ सी आ गई. घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई. ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियां भी विधिपूर्वक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने लगीं.

कैसे करें लक्ष्मी पूजन की तैयारी 

सबसे पहले चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां रखें उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। 

लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। 

पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें। 

कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। 

नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।

दो बड़े दीपक रखें। एक घी का, दूसरा तेल का। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। एक दीपक गणेशजी के पास रखें।

मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। 

कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। 

गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।

इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। 

सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। 

थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें- 1. ग्यारह दीपक, 2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान, 3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।

अब विधि-विधान से पूजन करें।  

इन थालियों के सामने यजमान बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।

चौकी 

(1) लक्ष्मी, (2) गणेश, (3-4) मिट्टी के दो बड़े दीपक, (5) कलश, जिस पर नारियल रखें, वरुण (6) नवग्रह, (7) षोडशमातृकाएं, (8) कोई प्रतीक, (9) बहीखाता, (10) कलम और दवात, (11) नकदी की संदूकची, (12) थालियां, 1, 2, 3, (13) जल का पात्र, (14) यजमान, (15) पुजारी, (16) परिवार के सदस्य, (17) आगंतुक।

महालक्ष्मी पूजन की सरल विधि 

समस्त सामग्री एकत्र करने के बाद और सारी तैयारी पूरी होने के बाद कैसे करें महालक्ष्मी की पूजा, जानें यहां 

सबसे पहले पवित्रीकरण करें।

आप हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में मंत्र पढ़ें। 

इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।

ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।

यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥

पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः

कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥

अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-

ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।

त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥

पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः

अब आचमन करें

पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-

ॐ केशवाय नमः

और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-

ॐ नारायणाय नमः

फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-

ॐ वासुदेवाय नमः

फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें। पुनः तिलक लगाने के बाद प्राणायाम व अंग न्यास आदि करें। आचमन करने से विद्या तत्व, आत्म तत्व और बुद्धि तत्व का शोधन हो जाता है तथा तिलक व अंग न्यास से मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है।

आचमन आदि के बाद आंखें बंद करके मन को स्थिर कीजिए और तीन बार गहरी सांस लीजिए। यानी प्राणायाम कीजिए क्योंकि भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह आवश्यक है। फिर पूजा के प्रारंभ में स्वस्तिवाचन किया जाता है। उसके लिए हाथ में पुष्प, अक्षत और थोड़ा जल लेकर स्वतिनः इंद्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता परमात्मा को प्रणाम किया जाता है। फिर पूजा का संकल्प किया जाता है। संकल्प हर एक पूजा में प्रमुख होता है।

संकल्प – आप हाथ में अक्षत लें, पुष्प और जल ले लीजिए। कुछ द्रव्य भी ले लीजिए। द्रव्य का अर्थ है कुछ धन। ये सब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों। सबसे पहले गणेशजी व गौरी का पूजन कीजिए। उसके बाद वरुण पूजा यानी कलश पूजन करनी चाहिए।

हाथ में थोड़ा सा जल ले लीजिए और आह्वान व पूजन मंत्र बोलिए और पूजा सामग्री चढ़ाइए। फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है। हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प ले लीजिए। सोलह माताओं को नमस्कार कर लीजिए और पूजा सामग्री चढ़ा दीजिए।

सोलह माताओं की पूजा के बाद रक्षाबंधन होता है। रक्षाबंधन विधि में मौली लेकर भगवान गणपति पर चढ़ाइए और फिर अपने हाथ में बंधवा लीजिए और तिलक लगा लीजिए। अब आनंदचित्त से निर्भय होकर महालक्ष्मी की पूजा प्रारंभ कीजिए। जो भी मंत्र,माला, पाठ और स्तोत्र पढ़ना है वह आप कर सकते हैं। 

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