अशोक वाटिका में सीता माता तथा हनुमान संवादरामायण हनुमान विभीषण संवाद

श्री राम की आज्ञा का पालन करते हुए, हनुमान जी लंका पहुँचते हैं और अशोक वाटिका में सीता माता को ढूंढते हैं। वे माता सीता को अशोक वाटिका के एक गुप्त स्थान पर पाते हैं। सौ योजन की दुरी तय करने के बाद हनुमान जी लंका पहुंच जाते है।

लंका पहुँचने  के बाद हनुमान की पहली भेंट लंका के द्वार पर पहरेदार एक राक्षसी से होती है जोकि स्वयं लंका नगरी होती है। लंका में घुसने के लिए हनुमान जी अति सूक्ष्म रूप धारण करते हैं लेकिन उसके बाद भी वह राक्षसी हनुमान को देख लेती है। वह हनुमान जी को लंका में प्रवेश करने से रोकती है लेकिन हनुमान जी विराट रूप धारण करके अपने मुक्के के प्रहार द्वारा उसके नाक को तोड़ देते हैं। हनुमान जी के प्रहार से वह अधमरी हो जाती  हैं और उनका रास्ता छोड़ देती है। हनुमान जी दोबारा सूक्षम रूप धरकर नगर के फाटक के निचे से लंका में प्रवेश कर जाते हैं और रात्रि के समय हवाई मार्ग से उड़ते हुए लंका के राज महल में सीता माता की खोज करने लगते हैं। लंकापति रावण के कक्ष में हनुमान जी सूक्ष्म रूप धारण कर के जाते हैं जहां पर रावण की पत्नी का रानी मंदोदरी सो रही थी उन्हें देखकर हनुमान जी सोचने लगते है कही ये तो सीता माता नही। लेकिन फिर वह सोचते है की हरण करके लाई गयी सीता माता इस प्रकार महल में नहीं सो सकती। 

हनुमान-विभीषण Vibhishan संवाद | विभीषण-हनुमत मिलन 

कुछ देर बाद हनुमान जी को एक भवन नजर आता है जिस पर भगवान विष्णु के  सुदर्शन चक्र का निशान बना हुआ था तथा शंख का निशान बना हुआ था। हनुमान जी को आश्चर्य हुआ कि असुरों की नगरी लंका में ऐसा कौन है जिसके घर पर भगवान विष्णु के चिन्ह दिखाई पड़ रहे है। आश्चर्यचकित होकर हनुमान जी निचे उतरते हैं। वह एक ब्राह्मण का वेश धारण करके  चौखट पर अलख जगाते हैं। तब घर के अंदर से विभीषण (Vibhishan ) जी बाहर निकलते हैं जोकि  लंकापति रावण के छोटे भाई थे। बातचीत के दौरान पता चलता है कि विभीषण भगवान विष्णु और श्री राम के परम भक्त है । असुरो की नगरी  लंका में राम भक्त का परिचय पाकर हनुमान जी बहुत प्रसन्न होते हैं और अपना वास्तविक परिचय बताकर विभीषण जी से सीता माता के बारे में पूछते हैं। तब विभीषण Vibhishan हनुमान को बताते हैं कि सीता माता राज महल में नहीं बल्कि लंकापति रावण की अति प्रिय बगिया अशोक वाटिका में है। बहुत से राक्षस पहरेदार उनकी निगरानी करते रहते हैं। सीता माता का पता  पाकर हनुमान जी निश्चय करते हैं कि वह रात्रि के समय सीता माता से भेंट करने के लिए जाएंगे। 

अगले ही दिन हनुमान जी रात्रि के समय सूक्ष्म रूप धारण करके लंका की अशोक वाटिका में पहुंच जाते हैं और एक पेड़ के ऊपर छुप कर देखने लगते हैं। तभी उन्हें लंका के राजा के आने की उद्घोषणा सुनाई देती हैं। लंका का राजा रावण अशोक वाटिका में आता है और अशोक वाटिका के बीचो बीच  एक पेड़ के नीचे साधारण वस्त्रों में बैठी एक स्त्री नजर आती है जिसके पास जाकर लंका का राजा रावण विवाह का प्रस्ताव रखता है। रावण की बातों से हनुमान जी को यह ज्ञात हो जाता है कि वह स्त्री ही सीता माता है, जिससे रावण विवाह का प्रस्ताव स्वीकारने के लिए कह रहा है। हनुमान जी कुछ समय तक रावण के जाने की प्रतीक्षा करते हैं तथा रावण क जाने के बाद हनुमान जी पेड़ पर बैठे बैठे ही  श्री राम और सीता विवाह की कहानी कथा के रूप में गाने लगते हैं। लेकिन सीता जी को लगता है कि यह उनका कोई भ्रम है इसलिए वह इस पर अधिक ध्यान नहीं देती । तब हनुमान जी श्रीराम द्वारा निशानी के तौर पर दी गई मुद्रिका नीचे गिरा देते हैं जिसे देखकर सीता जी को यह आभास होता है कि वाकई में कोई श्रीराम का दूत उनका संदेशा लेकर आया है। क्योंकि यह वही मुद्रिका थी जो सीता जी ने स्वयं श्री राम को खेवट को देने के लिए दी थी। 

सीता माता से पहली भेंट | हनुमान तथा माता सीता का संवाद  

तब माता सीता पूछने लगते हैं कि कौन है जो उनके पति श्री राम का संदेश लेकर आया है कृपया करके मेरे सामने आइए। तब हनुमानजी पेड़ से कूदकर नीचे आते हैं तथा सीता माता को प्रणाम करके कहते हैं की हे माता, मैं प्रभु श्री राम का दूत हूं। अपने

सामने एक छोटे आकर के वानर को देखकर सीता जी को यह लगता है कि यह रावण की कोई चाल है क्योंकि अगर श्रीराम का कोई दूत होता तो वह मनुष्य रूप में होता। हनुमान जी के वानर रुप में होने के कारण सीता माता को भ्रम हो रहा था। तब हनुमान  श्रीराम द्वारा दी गई मुद्रिका की बात उनको बताते है जोकि केवल श्रीराम और सीता जी को पता थी। हनुमान के इस कथन से सीता जी को हनुमान पर विश्वास हो जाता है की वह वास्तव में ही श्रीराम के कोई दूत है। फिर वह हनुमान से अपने पति श्री राम और लक्ष्मण के कुशलतापूर्वक होने के बारे में पूछती है और कहती है कि वे कब मुझे इस रावण की कैद से मुक्त कराने के लिए आएंगे ,क्या वह मुझे भूल गए हैं। हनुमान जी  उन्हें धीरज बांधते हुए कहते हैं कि श्री राम को आपके ठिकाने का पता नहीं ना इसलिए अब तक इतना विलंब हुआ है। यदि श्रीराम को पता होता तो वह कब कि आपको यहां से मुक्त करा कर ले गए होते। तब हनुमान जी सीता माता को अपने साथ चलने के लिए कहते हैं लेकिन देवी सीता अपने पत्नी धर्म के पालन हेतु पर पुरुष के साथ स्वेच्छा से जाने के लिए मना कर देती है। तब वह हनुमान को अपनी चूड़ा मणि निशानी के तौर पर देती है और कहती है की श्रीराम ने मुझे यह विवाह के समय दी थी। हनुमान की जाने से पहले सीता जी से यह अनुरोध करते है की उन्हें बहुत भूख लगी है और अशोक वाटिका में बहुत फल लगे है इसलिए यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं ये फल खाकर अपनी भूख मिटा लूं। तो सीता माता हनुमान को आज्ञा देती है और हनुमान जी वाटिका के फल तोड़कर खाने लगते है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Open chat
सहायता
Scan the code
KARMASU.IN
नमो नमः मित्र
हम आपकी किस प्रकार सहायता कर सकते है