एक ही दिन में अपने भाई कुंभकरण और अतिकाय, देवान्तक, नरान्तक, त्रिशिरा, निकुम्भ जैसे वीर पुत्रों की मृत्यु के बाद रावण शौक सागर में डूब जाता है।
रावण अपने भाई कुंभकरण और अपने कई वीर पुत्रों की मृत्यु से बहुत दुखी था। वह सोच रहा था कि वह इतने शक्तिशाली योद्धाओं को कैसे हरा सकता है। वह अपने राज्य लंका की दुर्दशा से भी चिंतित था।
रावण हैरान होता है कि अतिकाय जैसे महाबली योद्धा के साथ-साथ उसके इतने सारे पुत्रों का वध कोई कैसे कर सकता है।
रावण को समझ नहीं आ रहा था कि राम और लक्ष्मण Lakshman इतने शक्तिशाली कैसे हो सकते हैं। वह सोच रहा था कि क्या उसके पास ऐसा कोई अस्त्र है जिससे वह राम और लक्ष्मण को मार सकता है।
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जिन लंकापति रावण के नाम से देवता असुर, नाग, किन्नर, मानव, सभी कांपते थे। आज वही दो मानव और कुछ वानर उनके नगर में आकर उन पर ही भारी पड़ रहे हैं।
रावण को याद आया कि जब वह एक शक्तिशाली योद्धा था, तो उसके नाम से सभी कांपते थे। लेकिन अब वह राम और लक्ष्मण के सामने एक कमजोर योद्धा की तरह लग रहा था।
जिन्होंने लंका के अधिकतर सेनानियों को परास्त कर दिया है।
रावण को पता था कि अगर वह राम और लक्ष्मण ( Lakshman ) को नहीं हरा पाया, तो उसे अपने राज्य लंका को खोना पड़ेगा।
लेकिन तब रावण के नाना माल्यवान और उसका पुत्र इंद्रजीत उसे धीरज बंधाते हैं।
रावण के नाना माल्यवान ने उसे समझाया कि वह अभी भी एक शक्तिशाली योद्धा है। उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि इंद्रजीत राम और लक्ष्मण को हरा देगा।
रावण को हौसला देते हुए और प्रतिशोध की अग्नि में जलता हुआ मेघनाथ रावण को कहता है की मुझे युद्ध में जाने की आज्ञा दीजिए पिताजी ” मेरी भुजाएं अपने भाइयों और काका कुंभकरण के वध का प्रतिशोध लेने के लिए फड़क रही है।
कुम्भकरण- रावण संवाद श्रीराम द्वारा कुम्भकरण का वध Ramayan- Kumbhkaran Vadh Story in Hindi
इंद्रजीत भी अपने भाइयों और काका कुंभकरण की मृत्यु से बहुत दुखी था। वह राम और लक्ष्मण से बदला लेना चाहता था।
मैं अपने सबसे घातक अस्त्रों को लेकर युद्ध भूमि में जाऊंगा और इस युद्ध को आज ही समाप्त कर दूंगा। जिस लक्ष्मण ने मेरे भाइयों का वध किया उसको आज मौत की गोद में सुला कर ही आऊंगा।
इंद्रजीत अपने पिता से युद्ध में जाने की आज्ञा मांगता है। वह वादा करता है कि वह राम और लक्ष्मण को हरा देगा।
इंद्रजीत रावण को अति प्रिय था इसलिए रावण स्वयं युद्ध में जाने की बात कहता है।
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रावण इंद्रजीत से बहुत प्यार करता था। वह नहीं चाहता था कि इंद्रजीत युद्ध में जाए और मारा जाए।
लेकिन उसके नाना माल्यवान जी रावण को परामर्श देते हैं कि जब तक सेना में एक भी योद्धा जीवित हो तब तक स्वयं राजा का युद्ध में जाना उचित नहीं होता।
माल्यवान ने रावण को समझाया कि जब तक सेना में एक भी योद्धा जीवित है, तब तक राजा का युद्ध में जाना उचित नहीं है।
इंद्रजीत एक परम शक्तिशाली होता है, उसे युद्ध में जाने की आज्ञा दीजिए वह निश्चित ही आपको निराश नहीं करेगा।
माल्यवान ने रावण को आश्वस्त किया कि इंद्रजीत एक परम शक्तिशाली योद्धा है। वह निश्चित ही राम और लक्ष्मण को हरा देगा।
रावण अपने नाना माल्यवान जी का परामर्श मान लेता है और अपनी विशाल सेना के साथ अपने पुत्र इंद्रजीत को युद्ध में जाने की आज्ञा देता है।
रावण अपने नाना माल्यवान के परामर्श को मानता है और इंद्रजीत को युद्ध में जाने की आज्ञा देता है।
इंद्रजीत का युद्ध भूमि में प्रवेश indrjeet ka yuddh me prabesh
लंका की बची हुई सेना लेकर इंद्रजीत युद्ध भूमि में आता है और आते ही अपने धनुष की प्रत्यंचा की डंकार बजाता है। उसके धनुष की प्रत्यंचा की डंकार से आसमान में बिजली कड़कने लगती है।
इंद्रजीत अपने शक्तिशाली रूप और कौशल से सभी को प्रभावित करता है। वह अपने धनुष की प्रत्यंचा की डंकार से ही आसमान में बिजली कड़कने लगता है। इससे स्पष्ट होता है कि वह एक बहुत ही शक्तिशाली योद्धा है।
इंद्रजीत लक्ष्मण को ललकारने लगता है और कहता है कि मेरे भाई अतिकाय का वध करने वाला लक्ष्मण कहां है? आज मैं अपने सभी भाइयों की मृत्यु का प्रतिशोध लेकर रहूंगा।
इंद्रजीत अपने भाई अतिकाय की मृत्यु से बहुत दुखी है। वह लक्ष्मण से बदला लेने के लिए उत्सुक है।
लेकिन तभी सुग्रीव इंद्रजीत को रोक लेता है और उससे युद्ध करने के को कहता है लेकिन इंद्रजीत सुग्रीव का उपवास करते हुए उसे बड़ी सरलता से दूर फेंक देते हैं।
सुग्रीव इंद्रजीत का सामना करने के लिए आगे आता है, लेकिन इंद्रजीत उसे बड़ी आसानी से पराजित कर देता है। इससे स्पष्ट होता है कि इंद्रजीत एक बहुत ही शक्तिशाली योद्धा है।
उसके बाद बजरंगबली हनुमान भी इंद्रजीत से युद्ध करने के लिए सामने आते हैं लेकिन इंद्रजीत उस समय उन पर भी भारी पड़ने लगते।
हनुमान भी इंद्रजीत का सामना करने के लिए आगे आते हैं, लेकिन इंद्रजीत उन्हें भी पराजित करने की स्थिति में आ जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि इंद्रजीत एक बहुत ही शक्तिशाली योद्धा है।
तब हुंकार भरते हुए इंद्रजीत कहता है कि क्या तुम्हारे लक्ष्मण में साहस नहीं है, मुझ से युद्ध करने का। कहां है लक्ष्मण?, क्या वह मेरे सामने आने से डरता है? यदि मृत्यु से इतना ही डर लगता है तो दोनों भाई मुंह में तिनका दबाकर मेरे सामने आत्मसमर्पण कर दो।
इंद्रजीत लक्ष्मण Lakshman को ललकारता है और उन्हें डराने की कोशिश करता है। वह जानता है कि लक्ष्मण एक शक्तिशाली योद्धा है, इसलिए वह उन्हें डराकर युद्ध से पीछे हटाना चाहता है।
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इंद्रजीत की यह ललकार सुनकर लक्ष्मण भी आवेश में आकर श्री राम से युद्ध में जाने की आज्ञा मांगते हैं।
लक्ष्मण इंद्रजीत की ललकार से आवेश में आ जाते हैं। वह इंद्रजीत से बदला लेने के लिए युद्ध में जाने का फैसला करते हैं।
तब विभीषण जी लक्ष्मण जी को सावधान करते हुए सतर्क रहने के लिए कहते हैं, की भैया लक्ष्मण, इंदरजीत एक मायावी तथा विकट योद्धा है। वह हर प्रकार की असुर विद्या में कुशल है। उससे युद्ध करने के लिए आपको अपनी पूरी शक्ति से युद्ध करना होगा। इंद्रजीत युद्ध जीतने के लिए हर तरीके का प्रयोग करता है चाहे उसे छल भी करना पड़े।
विभीषण लक्ष्मण को इंद्रजीत के प्रति सावधान करते हैं। वह उन्हें बताते हैं कि इंद्रजीत एक मायावी योद्धा है और वह हर तरीके का प्रयोग कर सकता है।
विभीषण का परामर्श सुनकर लक्ष्मण जी रणभूमि में इंद्रजीत के सामने आ जाते हैं।
लक्ष्मण विभीषण के परामर्श को मानते हैं और इंद्रजीत के सामने युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं।
लक्ष्मण और मेघनाद का युद्ध। लक्ष्मण और इंद्रजीत का युद्ध Lakshman or Meghnad
तब दोनों योद्धाओं में घमासान युद्ध छिड़ जाता है। लक्ष्मण जी अपने घातक बाणों द्वारा इंद्रजीत पर प्रहार करते हैं लेकिन इंद्रजीत भी धनुर्विद्या में और अस्त्रों के ज्ञान में पूर्णतया कुशल था। इसलिए वह लक्ष्मण Lakshman के सभी बाणों को काट देता है। लक्ष्मण और इंद्रजीत दोनों में परस्पर युद्ध चलता रहता है। बहुत समय तक जब इंद्रजीत (Meghnad ) लक्ष्मण से जीत नहीं पा रहा था । तब वह अपनी मायावी विद्या का प्रयोग करके युद्ध करने लगता है और अपने रथ से अदृश्य होकर आसमान में विचरने लगता है। उसे युद्ध करते समय लक्ष्मण जी विचलित हो जाते हैं और वह समझते हैं कि मेघनाथ युद्ध से गायब होकर कहीं भाग गया है। तब लक्ष्मण जी श्री राम के पास वापस चले जाते हैं। लेकिन तभी मेघनाथ जोर-जोर से हंसने लगता है उसकी हंसी आसमान में गूंज रही थे लेकिन मेघनाद तब भी दिखाई नहीं दे रहा था।
Shree ram श्रीराम – लक्ष्मण Lakshman को नागपाश में बांधना
इंद्रजीत द्वारा अदृश्य होकर युद्ध करने के कारण श्री राम लक्ष्मण की सहायता के लिए युद्ध भूमि में चले आते हैं।
तभी अचानक अदृश्य रहते हुए इंद्रजीत अपने धनुष से नागपाश अस्त्र का संधान करके श्रीराम और लक्ष्मण पर छोड़ देता है।
नागपाश के प्रहार से श्री राम और लक्ष्मण दोनों नागपाश से उत्पन्न जहरीले नागों में बंध जाते हैं और मूर्छित हो जाते हैं
इंद्रजीत जानता था कि नागपाश अस्त्र दवारा किसी का भी अंत किया जा सकता है और नागपाश से मुक्त होना असंभव है।
इसलिए श्री राम लक्ष्मण को नागपाश में बांध कर इंद्रजीत सोचता है कि अब वह युद्ध जीत चुका है इसलिए वह अपनी सेना को युद्ध से वापिस जाकर जीत का उत्सव मनाने का आदेश देता है और उस दिन का युद्ध वहीं समाप्त हो जाता है।
इंद्रजीत Meghnad दवारा श्री राम लक्ष्मण Lakshman को नागपाश में बांधने की खबर सुनकर रावण हर्षोल्लास से भर जाता है और अपने पुत्र इंद्रजीत का अभिनंदन करता है।
रावण को भी लगता है कि आज वह युद्ध को जीत चुका है अब कुछ ही समय में नागपाश में श्री राम और लक्ष्मण अपना दम तोड़ देंगे और यह युद्ध यहीं पर समाप्त हो जाएगा।
लेकिन, हनुमान जी श्री राम और लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त कराने के लिए आते हैं और वे सफल भी होते हैं।
इस प्रकार, इंद्रजीत की चाल विफल हो जाती है और श्री राम और लक्ष्मण युद्ध को जीत जाते हैं।