हजारों साल पहले की बात है। नजारेथ नामक शहर में मरियम नाम की एक जवान महिला रहती थी। उन दिनों मरियम का यूसुफ नाम के एक आदमी से प्रेम था। एक रात जब मरियम सो रही थी, तो ईश्वर ने उसके सपने में गेब्रियल नाम के एक स्वर्गदूत को भेजा। उसने मरियम को बताया कि वह जल्द ही एक पवित्र आत्मा वाले पुत्र को जन्म देगी, जिसका नाम उसे यीशु रखना होगा।
जब यह बात मरियम ने अपने साथी यूसुफ को बताई, तो बदनामी के डर से इस खबर को सुनते ही यूसुफ ने मरियम से अलग होने का फैसला कर लिया। यह जानकर ईश्वर का वही स्वर्गदूत यूसुफ को उसके सपनों में मिला और उसे बताया कि मरियम एक पवित्र आत्मा को जन्म देगी। इसलिए, उसे मरियम से शादी करनी चाहिए और उसके साथ रहना चाहिए।
उस स्वर्गदूत की बात सुनकर यूसुफ ने ऐसा ही किया। उन दिनों नजारेथ शहर पर रोमन साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। जब मरियम गर्भावती हुई, तो उन्हीं दिनों रोमन राज्य में जनगणना चल रही थी। राज्य के नियमों के अनुसार यूसुफ और उसकी पत्नी मरियम भी जनगणना में अपना नाम लिखवाने के लिए येरूशलम के बैतलहम नगर चले गए। हालांकि, बैतलहम में उन्हें रहने के लिए कोई स्थान नहीं मिला, जिस वजह से वे दोनों एक गौशाले में रूक गए।
बैतलहम के उसी गौशाले में ही मरियम ने उस पवित्र आत्मा वाले पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम यीशु रखा। जब उस गौशाले में अपने जानवरों की देखभाल करने के लिए एक चरवाहा आया, तो ईश्वर के दूतों ने उसे बताया कि उसका उद्धार करने वाला बैतलहम में आज पैदा हुआ है। पहले तो उसने इस बात पर यकीन नहीं किया, लेकिन जब उसने गौशाला में मरियम, यूसुफ और यीशु को देखा तो वह हैरान रह गया।
वहीं, यीशु के जन्म के समय आसमान में एक तेज चमकता हुआ सितारा भी दिखाई दिया था। उसे देखकर एक दूर के शहर में रहने वाले तीन ज्योतिषी भी यीशु के जन्म की खबर को समझ गए थे। वो तीनों उस सितारे का पीछा करते हुए उस गौशाले तक आ गए थे।
वहां पहुंचकर उन्होंने प्रभु यीशु को प्रणाम किया। उन्होंने यीशु के परिवार को उपहार दिया और यीशु की पूजा भी की। उन तीनों ज्योतिषियों को यह पता था कि उस राज्य का राजा अच्छा नहीं है। उसे जब इसका पता चलेगा, तो वह यीशु को मार डालेगा। इसलिए, किसी ने भी राजा को यीशु के जन्म के बारे में नहीं बताया।
कुछ दिनों के बाद यूसुफ के सपने में एक परी आई, जिसने बताया की राजा हरोदेस यीशु को मारने की योजना बना रहे हैं। इसलिए, वह अपनी पत्नी मरियम व पुत्र यीशु के साथ मिस्र चला गया।
वहीं, जब दुष्ट राजा हरोदेस को यीशु की कोई जानकारी नहीं मिली, तो उसने बैतलहम के सभी छोटे बच्चों को मारने का आदेश दे दिया। हालांकि, इस दौरान उस दुष्ट राजा की मृत्यु हो गई। इसके बाद यीशु ने अपने परिवार के साथ मिस्र को छोड़ दिया और तीनों ने इजराइल की यात्रा की। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन नजारेथ में गुजारा।
कहानी से सीख
ईसा मसीह की कहानी हमें यह सीख देती है कि बुराई की कभी जीत नहीं होती है। बुरे लोगों का विनाश करने के लिए ईश्वर हमेशा किसी न किसी रूप में धरती पर आते हैं।