आज मैं आपको माता महा लक्ष्मी के एक ऐसे स्तोत्र के बारे में बताने जा रहा हूँ जोकि अपने आप में अद्भुत है और जिसको केवल रोज एक बार पढ़ लेने से माता लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न हो जाती है. इस स्तोत्र का नाम है महालक्ष्मी अष्टकम..

जैसा की नाम से ही स्पष्ट है कि यह स्तोत्र मात्र आठ छंद का है और यह स्तोत्र अत्यंत शक्तिशाली है जिससे सुनकर माता महा लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न हो जाती है. इसके पीछे एक कथा है-

एक बार माता लक्ष्मी विष्णुलोक से रूठकर, पुष्कर में एक सरोवर के अन्दर एक कमल के फूल की नाल के अन्दर जाकर बैठ गयी. माता लक्ष्मी के रूठ जाने से और वहां से चले जाने से, पूरे देवलोक के साथ साथ समस्त संसार की कान्ति क्षय होने लगी. समस्त देवतागण परेशान हो गए. किसी भी देवता को माता लक्ष्मी का पता नहीं मिल रहा था. तब देवराज इन्द्र ने माता महालक्ष्मी को दूंढ़ निकाला और उस कमल के पुष्प के सामने खड़े होकर माता महा लक्ष्मी की स्तुति की और माता को प्रसन्न करने के लिए महालक्ष्मी अष्टकम नामक स्तोत्र की रचना की जिसे सुनकर माता अत्यंत प्रसन्न हुई और प्रकट हो गयी और दोबारा विष्णुलोक चली गयी.

इस भगवान् इन्द्र द्वारा रचित महालक्ष्मी अष्टकम की इतनी महिमा है कि जो व्यक्ति इस स्तोत्र का नित्य एक बार भी पाठ कर ले वहां माता लक्ष्मी का वास सदैव बना रहता है.

महालक्ष्मी अष्टकम

नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते.‌

शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते..१.

नमस्ते गरुडारुढ़े कोलासुर भयंकरी.

सर्वपापहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते..२.

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी.

सर्वदुखहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते..३.

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवी भुक्ति मुक्ति प्रदायिनी.

मन्त्रपूते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते..४.

आद्यंतरहिते देवी आदिशक्ति महेश्वरी.

योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तुते..५.

स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे.

महापापहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते..६.

पद्मासनस्थिते देवी परब्रह्मस्वरूपिणी.

परमेशी जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोस्तुते..७.

श्वेताम्बरधरे देवी नानालंकारभूषिते.

जगतस्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोस्तुते..८.

महालक्ष्मय्ष्ट्कम स्तोत्रं यः पठेदक्ति मान्नरः.

सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा..९.

एककाले पठेन्नित्यम महापापविनाशनम.

द्विकालं यः पठेन्नित्यम धनधान्यसमन्वितः..१०.

त्रिकालं यः पठेन्नित्यम महाशत्रुविनाशनम.

महालक्ष्मीर्भवेंनित्यम प्रसन्ना वरदा शुभा..११.

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