अश्वत्थामा को जिसने देखा हो जाता है पागल

महाभारत के अश्वत्थामा को पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के दौरान हुई  एक चूक भारी पड़ी और भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें युगों-युगों तक भटकने का श्राप दे दिया. ऐसा कहा जाता है कि पिछले लगभग 5 हजार वर्षों से अश्वत्थामा भटक रहे हैं. मध्यप्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20 किमी दूर असीरगढ़ का किला है. कहा जाता है कि इस किले में स्थित शिव मंदिर में अश्वत्थामा आज भी पूजा करने आते हैं. स्थानीय निवासी अश्वत्थामा से जुड़ी कई कहानियां सुनाते हैं. वे बताते हैं कि अश्वत्थामा को जिसने भी देखा, उसकी मानसिक स्थिति हमेशा के लिए खराब हो गई.

इस मंदिर में जीवित अवस्था में है शिवलिंग

मतंगेश्वर महादेव नामक ये शिव मंदिर खजुराहो में है. कहा जाता है कि ये दुनिया का एकमात्र ऐसा शिवलिंग है जो लगातार बढ़ता जा रहा है. यही नहीं इस मंदिर के शिवलिंग की ख़ासियत है कि ये जितना धरती के ऊपर है उतना ही ये जमीन में धंसा हुआ है. इसके साथ ही शिवलिंग की ऊंचाई हर साल एक इंच बढ़ती जा रही है. कहते हैं इंसान की तरह शिवलिंग का आकार भी बढ़ता चला जा रहा है, जिस वजह से इसे जीवित शिवलिंग कहा जाता है. इसके पीछे के रहस्य को आज तक कोई वैज्ञानिक भी नहीं समझ पाया है. आपको बता दें कि शिवलिंग की ऊंचाई 9 फ़ीट है. 

रोहिणी व्रत की पूरी

यहां जलता है पानी से दीया

आप जब भी मंदिरों में जाते होंगे तो घी या तेल का दिया जरूर जलाते होंगे. मध्य प्रदेश के गड़ियाघाट माताजी का माताजी का मंदिर ऐसा है जहां दिया घी या तेल से नहीं जलता है बल्कि पानी से जलता है. यह मंदिर काली सिंध नदी के किनारे आगर-मालवा के नलखेड़ा गांव से करीब 15 किलोमीटर गाड़िया गांव में है. मंदिर में पिछले 5 सालों से घी तेल के बदले पानी से दीपक जलाए जा रहे हैं. पुजारी बताते हैं कि, पहले तेल का दीपक जला करता था, लेकिन करीब पांच साल पहले माता ने सपने में अपना दर्शन देकर पानी से दीपक जलाने के लिए कहा. जिसके बाद सुबह उठकर पास बह रही कालीसिंध नदी से पानी भरा और उसे दीए में डाला. जैसे ज्योत जलाई, दीपक जलने लगा. तभी से मंदिर का दिया कालीसिंध नदी के पानी से जलाया जाता है. इतना ही नहीं जब दीपक में पानी डाला जाता है, तो वह चिपचिपा हो जाता और दीपक जल उठता है. दीपक को लेकर पुजारी ने बताया कि पानी से जलने वाला ये दीपक बारिश के मौसम में नहीं जलता है. क्योंकि बारिश  के मौसम में कालीसिंध नदी का जलस्तर लेवल बढ़ने की वजह मंदिर पानी में डूब जाता है, जिससे यहां पूजा उस समय नहीं हो पाती. ये दिया फिर सितंबर-अक्टूबर में आने वाली शारदीय नवरात्रि के पहले दिन दोबारा ज्योत जला दी जाती है, फिर ये दिया अगले साल बारीश के मौसम तक जलती रहती है. यहां तेल के बजाए पानी से जोत जलाए जाने का दावा किए जाने के बाद लोगों ने उत्सुकतावश यहां आना शुरु किया। इस तरह मंदिर का गुणगान आस-पास के जगहों के साथ काफी दूर-दूर तक होने लगा। धीरे-धीरे मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ती गई और आज दूर से यहां माता की चमत्कारी जोत का दर्शन करने के लिए आते हैं। नवरात्रों में तो यहां भारी संख्या में दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर की बढ़ती प्रसिद्धि इस बात की प्रतीक है कि आज भी लोग ईश्वरीय शक्ति में पूरा विश्वास रखते हैं। कहा जाता है कि देवी के इस मंदिर के दर्शन से मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं।

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