महारास प्रसंग के समय रास पंचाध्यायी के प्रथम श्लोक में श्री शुकदेव जी कहते हैं- “योगमायामुपाश्रिता” अर्थात योगमाया का ही आश्रय ग्रहण कर भगवान श्रीकृष्ण ने महारास की इच्छा की.

देश-दुनिया में आज धूमधाम से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जा रहा है. भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी योगेश्वर श्रीकृष्ण के प्राकट्य के साथ-साथ उनकी योग शक्ति योगमाया के प्राकट्य का भी दिन है. लीला पुरुषोत्तम की समस्त लीलाएं जन कल्याण के लिए होती हैं और आद्यशक्ति योगमाया उन लीलाओं का संपादन करती हैं. देवी योगमाया का अवतार श्री कृष्ण के अवतार के साथ ही होता है. देवकी के गर्भ में आने से पूर्व ही भगवान कृष्ण, योगमाया से कहते हैं- हे देवी जब मैं वसुदेव-देवकी के पुत्र के रूप में जन्म लूंगा, उस समय आप भी नंद-यशोदा की पुत्री के रूप में जन्म लेना.” कहा जाता है कि देवी योगमाया का जन्म, भगवान कृष्ण से पहले हुआ था. ऐसे में वे उनकी बड़ी बहन थीं.

इन नामों से जानी जाती हैं देवी योगमाया

महारास प्रसंग के समय रास पंचाध्यायी के प्रथम श्लोक में श्री शुकदेव जी कहते हैं- “योगमायामुपाश्रिता” अर्थात योगमाया का ही आश्रय ग्रहण कर भगवान श्रीकृष्ण ने महारास की इच्छा की. यही देवी योगमाया लोक में भद्रकाली, दुर्गा, वैष्णवी, कुमुदा, चंडिका, कृष्णा, वृंदा, विजया, माधवी, कन्या, माया, नारायणी, अंबिका, शारदा इत्यादि नामों से विख्यात हुईं. आज अनेक स्थानों पर इनकी पूजा की जाती है.

देवी भागवत महापुराण बाराह पुराण आदि ग्रंथों से यह स्पष्ट होता है कि एकानंशा अथवा महामाया अथवा योगमाया ही भगवान श्री कृष्ण की बहन हैं. यह योगमाया ही यादवों की कुल देवी के रूप में उनकी उपास्य रही हैं. मथुरा एवं आसपास के क्षेत्रों में खुदाई के दौरान मिली एकानंशा के साथ-साथ सप्तमातृका की मूर्तियों का मिलना ब्रज में शक्ति की साधना को सिद्ध करता है.

वृंदावन में योग माया मंदिर

वृंदावन में प्राचीन श्री गोविंद देव मंदिर के नीचे नींव में योगमाया अथवा पाताल देवी का मंदिर स्थित है. यह सिद्ध देवी हैं. इस मंदिर के द्वार केवल नवरात्रों में ही दो बार श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खुलते हैं. बाकी दिनों में मंदिर के सेवायत ही देवी की पूजा-अर्चना करते हैं. ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा में आने वाले गांव देवी आटस में भी प्राचीन योगमाया देवी का मंदिर है. यहां भी नवरात्रों में छठ मेले का आयोजन किया जाता है. योगमाया ब्रज के विभिन्न स्थलों पर अनेक नामों से पूजा-अर्चना होती है.

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