भगवान श्रीकृष्ण  के चमत्कार और लीलाओं के बारे में कौन नहीं जानता है। वह भगवान विष्णु के अवतार थे, वह जो चाहे वो कर सकते थे। लेकिन एक ऐसा मौका भी आया था, जब श्रीकृष्ण को रणभूमि छोड़कर भागना पड़ा था, जिस वजह से उनका नाम रणछोड़ पड़ा गया।

अब आप सोच रहे होंगे कि वो तो भगवान थे, फिर उन्हें किसी से भागने की क्या जरूरत थी? आइए जानते है इसके पीछे छिपे रहस्यमयी कहानी को

भगवान श्री कृष्ण को रणछोड़ नाम कैसे पड़ा

दुनिया को अपनी बाल लीला से मंत्रमुग्ध करने वाले कान्हा को उनके भक्त मुरली मनोहर, कान्हा, कृष्ण मुरारी, नंद गोपाल, माखन चोर, देवकी नंदन, जैसे कई नामों से पुकारते हैं लेकिन श्रीकृष्ण के जीवन में एक समय ऐसा भी आया था जब उन्होंने अपने शत्रु से मुकाबला ना करके मैदान छोड़ने में ही अपनी भलाई समझी।

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यह घटना तब की है जब महाबली मगध राज जरासंध ने श्रीकृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा था। जरासंध ने कृष्ण के साथ युद्ध करने के लिए अपने साथ कालयवन नाम के राजा को भी मना लिया था। कालयवन ऋषि शेशिरायण का पुत्र था। जो जन्म से तो ब्राह्मण लेकिन कर्म से असुर था।

दरअसल, कालयवन को भगवान शंकर ने वरदान दिया था कि ना तो चंद्रवंशी और ना ही सूर्यवंशी उसका कभी कुछ बिगाड़ पाएँगे, उसे ना तो कोई हथियार खरोच सकता है और ना ही कोई उसे अपने बल से हरा सकता है।

भगवान शिव से मिले वरदान के बाद कालयवन ने खुद को अजेय समझ लिया था। जरासंध के कहने पर कालयवन ने बिना किसी शत्रुता के मथुरा पर आक्रमण कर दिया, भगवान श्रीकृष्ण जानते थे कि कालयवन को मारा नहीं जा सकता उनका सुदर्शन कालयवन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

जिसके बाद वह रणभूमि से भागकर एक गुफा में पहुँच गए जहाँ राक्षसों से युद्ध करके राजा मुचकुंद त्रेता युग से सोए हुए थे। राजा मुचकुंद दानवों को हराने के बाद बहुत थक गए थे, जिसके बदले देवराज इंद्र ने उन्हें विश्राम का आग्रह कर एक वरदान भी दिया, इंद्र ने कहा कि “जो भी इंसान तुम्हें नींद से जगाएगा वह जलकर खाक हो जाएगा।

श्रीकृष्ण जिस गुफा में जाकर छुपे हुए थे, उसमें पहले से ही इक्ष्वाकु नरेश मांधाता के पुत्र और दक्षिण कोसल के राजा मुचकुंद गहरी नींद में सोए हुए थे। दरअसल, उन्होंने असुरों से युद्ध कर देवताओं को जीत दिलाई थी। लगातार कई दिनों तक युद्ध करने की वजह से वह थक गए थे, इसलिए भगवान इंद्र ने उनसे सोने का आग्रह किया और उन्हें एक वरदान भी दिया, जिसके मुताबिक जो कोई भी उन्हें नींद से जगाएगा, वह जलकर भस्म हो जाएगा।

राजा मुचकुंद को मिले वरदान की बात श्रीकृष्ण को पता थी, इसलिए वो कालयवन को अपने पीछे-पीछे उस गुफा तक ले आए, जहां राजा मुचकुंद सोए हुए थे। श्रीकृष्ण ने कालयवन को भ्रमित करने के लिए अपना पीतांबर राजा मुचकुंद के ऊपर डाल दिया। राजा मुचकुंद को देख कर कालयवन को लगा कि वह श्रीकृष्ण ही हैं और उससे डर कर अंधेरी गुफा में छुप कर सो गए हैं। इसलिए उसने श्रीकृष्ण समझ कर राजा मुचकुंद को ही नींद से उठा दिया। अब राजा मुचकुंद जैसे ही नींद से उठे, कालयवन वहीं जल कर भस्म हो गया। असल में यह भगवान श्रीकृष्ण की ही एक लीला थी। उन्होंने महाभारत के युद्ध में गीता का उपदेश देते हुए कहा भी था कि सृष्टि में जो कुछ भी होता है, उन्ही की इच्छा से होता है, तो जाहिर है कालयवन का अंत भी उन्ही की इच्छा से हुआ था।  

श्रीकृष्ण ये बात भली-भांति जानते थे भगवान श्रीकृष्ण कालयवन को अपने पीछे भगाते-भगाते उस गुफा तक ले आए जहाँ राजा मुचकुंद सोए हुए थे। गुफा में भगवान श्रीकृष्ण ने राजा मुचकुंद के ऊपर अपना पीतांबर डाल दिया, कालयवन को लगा श्रीकृष्ण अंधेरी गुफा में सो गए हैं। 

कालयवन ने जैसे ही त्रेता युग से सोए हुए राजा मुचकुंद को लात मार कर उठाया, राजा मुचकुंद की नींद टूटते ही कालयवन जलकर खाक हो गया और इसी प्रकार रण छोड़ कर जाने पर श्रीकृष्ण का एक और नाम रणछोड़ पड़ गया।

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