लक्ष्मी माता का दिन माता लक्ष्मी  की पूजा के लिए समर्पित है. आज लोग माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कई प्रकार के उपाय करते हैं. जिन पर माता लक्ष्मी की कृपा हो जाती है, वह धन धान्य से परिपूर्ण हो जाता है. हर कोई उनका आशीर्वाद प्राप्त कर लेना चाहता है. कोई नहीं चाहता कि माता लक्ष्मी उससे नाराज हो जाएं. हालांकि एक बार भगवान विष्णु  माता लक्ष्मी से नाराज हो गए थे और उनको श्राप दे दिया था. आखिर ऐसा क्यों हुआ? पढ़ें यह पौराणिक कथा.

पौराणिक कथाओं में जिक्र मिलता है कि एक बार श्री हर‍ि धरती पर भ्रमण के लिए जा रहे थे। तभी देवी लक्ष्‍मी ने उनके साथ चलने की अनुमति मांगी। कई बार कहने पर भगवान विष्‍णु ने कहा कि वह साथ चल सकती हैं लेकिन उन्‍हें एक शर्त माननी होगी। उन्‍होंने कहा कि धरती पर कैसी भी स्थिति आए लेकिन उन्‍हें उत्‍तर द‍िशा की ओर नहीं देखना है। देवी लक्ष्‍मी भी भगवान की शर्त मान लेती हैं और साथ चल देती हैं।

इस तरह खुद को रोक न सके भगवान और रो पड़े

कथा मिलती है कि जब श्री विष्‍णु और माता लक्ष्‍मी पर भ्रमण कर रहे थे। तभी देवी की नजर उत्‍तर द‍िशा की ओर पड़ी। उस ओर इतनी हरियाली थी कि वह खुद को रोक न सकीं और सामने द‍िख रहे बगीचे में चली गईं। इसके बाद उन्‍होंने उस बाग से एक पुष्‍प तोड़ लिया और भगवान विष्‍णु के पास वापस आईं। उन्‍हें देखते ही श्री हरि रो पड़े। तभी माता लक्ष्‍मी को उनकी शर्त याद आई। तब भगवान विष्‍णु ने कहा कि बिना किसी से पूछे उसकी किसी भी वस्‍तु को छूना अपराध है।

जब माता लक्ष्मी को मिला श्राप

एक समय की बात है माता लक्ष्मी एक सुंदर अश्व को देखने में इतनी ध्यानमग्न थीं, कि उन्होंने भगवान विष्णु की बातों पर ध्यान नहीं दिया. इससे क्रोधित होकर भगवान विष्णु ने उनको पृथ्वी लोक पर अश्वी बनने का श्राप दे दिया. इससे माता लक्ष्मी दुखी हो गईं, तो भगवान विष्णु ने कहा कि आपको कुछ समय के लिए अश्व की योनी में रहना होगा. फिर आपको एक पुत्र होगा. उसके बाद ही उस योनी से मुक्ति मिलेगी

जब समय आया तो माता लक्ष्मी पृथ्वी पर अश्व की योनी में जीवन व्यतीत करने लगीं. उन्होंने काफी समय तक भगवान शिव की आराधना की. अपने तप से उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न किया. भगवान शिव ने कहा कि आपके पति भगवान विष्णु इस पूरे संसार के पालनहार हैं. एक स्त्री का पति ही उसका भगवान होता है. आपको केवल भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए.

इस पर माता लक्ष्मी ने कहा कि आप में और श्रीहरि में कोई भेद नहीं हैं. बस दोनों का स्वरूप अलग अलग है. आप यह दुख दूर कीजिए ताकि वह अश्व की योनी से मुक्त हों. इस पर प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनको आशीष दिया और भगवान विष्णु को पृथ्वी लोक पर जाने के बारे में अवगत कराने का वचन दिया.

कुछ समय बाद भगवान विष्णु ने अश्व रुप में अवतार लिया और माता लक्ष्मी के साथ अश्व योनी में समय व्यतीत किया. माता लक्ष्मी ने कुछ समय बाद एकवीर नामक पुत्र को जन्म दिया. उसके फलस्वरूप माता लक्ष्मी श्राप से मुक्त होकर वैकुंठ धाम चली गईं. एकवीर से हैहय वंश की उत्पत्ति हुई

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