बुद्धवार व्रत विधि

ग्रह शांति तथा सर्व-सुखों की इच्छा रखने वालों को बुद्धवार का व्रत करना चाहिये. इस व्रत में दिन-रात में एक ही बार भोजन करना चाहिए. इस व्रत के समय हरी वस्तुओं का उपयोग करना श्रेष्ठतम है. इस व्रत के अंत में शंकर जी की पूजा, धूप, बेल-पत्र आदि से करनी चाहिए .  साथ ही बुद्धवार की कथा सुनकर आरती के बाद प्रसाद लेकर जाना चाहिये. इस व्रत का प्रारंभ शुक्ल पक्ष के प्रथम बुद्धवार से करें. 21 व्रत रखें. बुद्धवार के व्रत से बुध ग्रह की शांति तथा धन, विद्या और व्यापार में वृद्धि होती है.

बुद्धवार व्रत कथा – Budhwar Vrat Katha

एक समय एक व्यक्ति अपनी पत्नी को विदा करवाने के लिये अपनी ससुराल गया. वहां पर कुछ दिन रहने के पश्चात् सास-ससुर से विदा करने के लिये कहा. किन्तु सबने कहा कि आज बुद्धवार का दिन है आज के दिन गमन नहीं करते हैं. वह व्यक्ति किसी प्रकार न माना और हठधर्मी करके बुद्धवार के दिन ही पत्नी को विदा कराकर अपने नगर को चल पड़ा. राह में उसकी पत्नी को प्यास लगी तो उसने अपने पति से कहा कि मुझे बहुत जोर से प्यास लगी है. तब वह व्यक्ति लोटा लेकर रथ से उतरकर जल लेने चला गया. जैसे ही वह व्यक्ति पानी लेकर अपनी पत्नी के निकट आया तो वह यह देखकर आश्चर्य से चकित रह गया कि ठीक अपनी ही जैसी सूरत तथा वैसी ही वेश-भूषा में वह व्यक्ति उसकी पत्नी के साथ रथ में बैठा हुआ है.

उसने क्रोध से कहा कि तू कौन है जो मेरी पत्नी के निकट बैठा हुआ है.  दूसरा व्यक्ति बोला कि यह मेरी पत्नी है. इसे मैं अभी-अभी ससुराल से विदा कराकर ला रहा हूं. वे दोनों व्यक्ति परस्पर झगड़ने लगे. तभी राज्य के सिपाही आकर लोटे वाले व्यक्ति को पकड़ने लगे. स्त्री से पूछा, तुम्हारा असली पति कौन सा है.  तब पत्नी शांत ही रही क्योंकि दोनों एक जैसे थे.

वह किसे अपना असली पति कहे. वह व्यक्ति ईश्वर से प्रार्थना करता हुआ बोला – हे परमेश्वर, यह क्या लीला है कि सच्चा झूठा बन रहा है. तभी आकाशवाणी हुई कि मूर्ख आज बुद्धवार के दिन तुझे गमन नहीं करना था. तूने किसी की बात नहीं मानी.  यह सब लीला बुद्धदेव भगवान की है. उस व्यक्ति ने तब बुद्धदेव जी से प्रार्थना की और अपनी गलती के लिये क्षमा मांगी. तब बुद्धदेव जी अन्तर्ध्यान हो गए. वह अपनी स्त्री को लेकर घर आया तथा बुद्धवार का व्रत वे दोनों पति-पत्नी नियमपूर्वक करने लगे.  जो व्यक्ति इस कथा को श्रवण करता तथा सुनाता है उसको बुद्धवार के दिन यात्रा करने का कोई दोष नहीं लगता है, उसको सर्व प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है.

बुद्धवार व्रत की आरती

आरती युगलकिशोर की कीजै. तन मन धन न्यौछावर कीजै..

गौरश्याम मुख निरखत रीजै. हरि का स्वरुप नयन भरि पीजै..

रवि शशि कोट बदन की शोभा. ताहि निरखि मेरो मन लोभा..

ओढ़े नील पीत पट सारी. कुंजबिहारी गिरवरधारी..

फूलन की सेज फूलन की माला. रत्न सिंहासन बैठे नन्दलाला..

कंचनथार कपूर की बाती. हरि आए निर्मल भई छाती..

श्री पुरुषोत्तम गिरिवरधारी. आरती करें सकल ब्रज नारी..

नन्दनन्दन बृजभान, किशोरी.  परमानन्द स्वामी अविचल जोरी ..

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