हिंदू धर्म में 33 करोड़ (कोटि) देवी-देवताएं हैं। सभी देवी-देवताओं से जुड़ी कथा-कहानियां पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। देवराज इंद्र की बात करें तो उन्हें देवताओं का राजा कहा जाता है। लेकिन इंद्र देवताओं की एक पदवी होती है। हिंदू धर्म में प्रमुख देवी-देवताओं की पूजा की जाती है और मंदिर भी होते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों इंद्र देव की पूजा नहीं की जाती और ना ही इंद्र देव की पूजा के लिए कोई मंदिर बनवाए गए हैं। कहा जाता है कि एक श्राप के कारण इंद्र देव की पूजा नहीं की जाती है। जानते हैं इस रोचक कहानी के बारे में विस्तार से..

आखिर क्यों नहीं होती देवराज इंद्र की पूजा

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण के कारण इंद्र देव की पूजा नहीं की जाती है। शुरुआत में इंद्र देव की पूजा ‘इंद्रोत्सव’ नाम से पूरे उत्तर भारत में होती थी। इस अवसर पर बड़े त्यौहार का आयोजन भी किया जाता था। लेकिन भगवान कृष्ण के कारण इंद्र की पूजा पूरी तरह से बंद हो गई। इंद्र की पूजा के बजाय गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र देव की पूजा बंद कराने के लिए स्वर्ग में सभी देवी-देवताओं से निवेदन किया।

भगवान श्री कृष्ण का मानना था कि ऐसे व्यक्ति की पूजा कभी नहीं करनी चाहिए जो ना ही ईश्वर है और ना ईश्वर के समान। जब इंद्र देव को पूजा बंद होने की बात का पता चला तो वे क्रोधित हो गए। उन्होंने तुरंत बादलों को आदेश दिया कि ऐसी वर्षा करो कि बृजवासी पूरी तरह से डूब जाए और उनसे क्षमा मांगने पर विवश हो जाए। इंद्र के आदेश पर ऐसी ही वर्षा हुई और इससे बृजवासी परेशान हो गए। तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठा लिया और सभी बृजवासियों को गोवर्धन पर्वत के नीचे आने को कहा। इस तरह के बृजवासियों पर वर्षा का कोई असर नहीं हुआ और इंद्र का अभिमान भी टूट गया।

इंद्र देव को मिला था 100 योनियों का श्राप

इंद्र के चित्रों में उनके शरीर पर असंख्य आंखें दिखाई देती है। दरअसल ये आंखें गौतम ऋषि द्वारा मिले श्राप का परिणाम है। पद्ममपुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार, इन्द्र स्वर्गलोक में अप्सराओं के साथ कामवासना से घिरे रहते थे। एक दिन जब वे धरती पर विचरण करने आए तो उन्होंने एक कुटिया के बाहर गौतम ऋषि की पत्नी देवी अहिल्या को देखा। अहिल्या सुंदर और रूपवती थी, जिसे देखते ही इंद्र उनपर मोहित हो गए। छलपूर्वक अहिल्या को पाने के लिए  इंद्र ने अपनी माया से रात को सुबह जैसे वातावरण में बदल दिया। गौतम ऋषि को लगा कि सुबह हो गई और वे कुटिया से निकलकर स्नान और पूजा-पाठ के लिए बाहर चले गए। उनके जाते इंद्र गौतम ऋषि का वेश धारण कर कुटिया में चले गए। अहिल्या इंद्र को गौतम ऋषि के वेश में देख पति समझ बैठी। गौतम ऋषि ने नदी में आसपास का वातावरण देखा जिससे उन्हें अनुभव हुआ कि अभी सुबह नहीं हुई है और वो अपनी कुटिया की तरफ लौट गए। कुटिया लौटते ही उन्होंने देखा कि उनके वेश में कोई दूसरा पुरुष उनकी पत्नी के साथ रति क्रियाएं कर रहा है। 

गौतम ऋषि ने क्रोध में आकर पत्नी अहिल्या को जीवनभर पत्थर की शील बनने का श्राप दे दिया। उन्होंने इंद्र से कहा कि तुमने यह सब केवल एक स्त्री की योनि पाने के लिए किया। तुम्हें योनि की इतनी लालसा है, तो तुम्हें वही मिलेगी। तब ऋषि ने इंद्र को हजार योनियों का श्राप दे दिया और इंद्र के शरीर पर हजार योनियां निकल आई। लेकिन इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने गौतम ऋषि से क्षमा मांगी। फिर गौतम ऋषि ने उन योनियों को आंखों में बदल दिया। यही कारण है कि इंद्र की अधिकतर तस्वीरों पर असंख्य आंखें दिखाई देती है।

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