बहुत सालो पहले गणेश पूरी नाम का गाँव था.  उस गाँव में विनायक और बिंदु नाम के भाई बहन रहा करते थे. वे दोनों एक दुसरे से बहुत प्यार करते थे और हमेशा एक दुसरे का खयाल रखते थे.

बिंदु का एक नित्य नियम था. वह हर रोज सुबह घर के सारे काम पुरे करने के बाद. अपने भाई विनायक का मुंह देखकर ही खाना खाती थी.

कुछ सालो बाद विनायक ने अपनी बहन का विवाह पड़ोसी गाँव के ही एक व्यापारी रचाया. उसके ससुराल वाले काफी भले लोग थे.

शादी के बाद भी बिंदु ने अपना नित्य नियम कायम रखा था. वह हर सुबह सुसराल के घर का काम जल्दी-जल्दी खत्म करके के अपने मायके भाई का मुंह देखने जाती थी. ससुराल से मायके तक बिंदु जिस रास्ते से जाती थी,

वह रास्ता खेतों से होकर गुजरता था. वहां पर घनी झाड़ियों के बीच एक खेजड़ी के पेड़ के निचे गणेश भगवान की छोटीसी सुंदर मूर्ति रखी होती थी.

बिंदु हर रोज आते वक्त उस मूर्ति के सामने हाथ जोडकर बोलती थी. हे गणेश जी मेरे जैसा अमर सुहाग और मेरे जैसा अमर पीहर (मायका) सबको दीजिए. इतना कहकर जब वह मायके जाने के लिए निकलती.

तब घनी झाड़ियों के कांटे उसके पैरों में चुभा करते. एक दिन रोज की तरह बिंदु मायके पहुंची और भाई का मुंह देखकर उसके पास बैठ गई.

उसी समय उसकी भाभी की नजर बिंदु के पैरो पर गई. भाभी ने पूछा की आपके पैरो में क्या हुआ है?  वह सुनकर बिंदु ने जवाब दिया की आते वक्त खेतों की घनी झाड़ियों के गिरे हुए कांटे मेरे पांव में चुभ गए है.

उसके बाद जब बिंदु वापस अपने ससुराल लौट गई. तब भाभी ने अपने पति विनायक से कहा की आपकी बहन के पैरो में कांटे चुभ गए है. कल फिरसे ना चुभे इसलिए आज ही आप रास्ता साफ करवा दीजिये.

वह सुनते ही विनायक ने उसी वक्त कुल्हाड़ी उठाई और खेतो की घनी झाड़ियाँ काटकर रास्ता साफ कर दी. लेकिन झाड़ियाँ काटते वक्त उसके हातो एक गलती हो गई.

और झाड़ियों के साथ-साथ वह खेजड़ी के पेड़ वाली सुंदर गणेश मूर्ति भी वहा से हटा दी गई. इसी बात पर भगवान गणेश जी बहुत नाराज हो गए और भाई विनायक के प्राण हर लिए.

अगली सुबह जब अंतिम संस्कार हेतु गाँव के लोग विनायक को ले जा रहे थे. तब उसकी पत्नी ने रोते हुए कहा. रुकिए इनकी बहन आनेवाली है उसका नियम है की वह अपने भाई का मुंह देखे बिना नहीं रह सकती. फिर लोग बोलने लगे आज देख लेगी लेकिन कल क्या करेगी?

दूसरी तरफ बिंदु रोज की तरह अपने भाई से मिलने ससुराल से आ रही थी. रास्ते में आते वक्त उसे रास्ता साफ सुथरा दिखाई दिया. लेकिन उसका ध्यान जब रोज की तरह बिंदायक जी के स्थान पर गया.

तब उसने देखा की गणेश मूर्ति अपने स्थान पर नहीं है.  फिर उसने तुरंत ही उस मूर्ति को ढूंडकर उसके नियमित स्थान पर स्थापित कर दिया.

और हाथ जोड कर बोली हे गणेश भगवान मेरे जैसा अमर सुहाग और मेरे जैसा अमर पीहर (मायका) सबको दीजिए. इतना कहकर आगे बढी.

अपने भक्त की बात सुनकर गणेश भगवान सोचने लगे. अगर मैंने इसका कहना नहीं सुना तो मुझे कौन मानेगा?  कौन पुजेगा मुझे? तब गणेश जी ने बिंदु को आवाज दी और बोले सुनो बेटी जाते-जाते इस खेजड़ी की सात पत्तियां लेकर जा.

क्या है कल्कि अवतार, अगर वो आ गया तो सबकुछ बर्बाद हो जाएगा

और उसे कच्चे दूध में घोलकर अपने भाई के उपर छींटा मार देना,  वह उठकर बैठ जाएगा. वह आवाज सुनकर बिंदु इधर-उधर देखने लगी. पर उसे आस-पास कोई भी नहीं दिखाई दिया. फिर उसने सोचा ठीक है. जैसा सुना वैसा कर देती हूँ. और वह खेजड़ी की ७ पत्तियां तोडकर अपने भाई के घर ले गई.

मायके पहुंचते ही उसने देखा की भाई के घर गाँव के लोग इकट्ठा हुए है. भाभीजी रो रही है और सामने भाई का शव (लाश) रखा है.  फिर बिंदु ने तुरंत ही सुनी हुई उस आवाज के हिसाब से खेजड़ी की सात पत्तियां कच्चे दूध में घोलकर भाई पर छींटे मार दिए.

भाई के उठते ही वह अपनी बहन से बोला मुझे बहुत ही गहरी नींद आ गई थी. वह सुनकर बिंदु बोली इस तरह की नींद किसी दुश्मन को भी नसीब ना हो. बाद में उसने अपने भाई को पूरी कहानी बताई. तभी भाई विनायक ने भगवान बिंदायक से क्षमा मांग ली.

तो यह थी मान्यता अनुसार बुधवार को सुनी जानेवाली गणेश जी की कथा.

हे गणेश भगवान इस कहानी को पढने वाले और सुनने वाले को हमेशा खुश रखना. कहानी अधूरी हो तो इसे पूरी करना और हमसे कोई गलती हो गई हो तो क्षमा करना.

अमर सुहाग की कहानी

अमर सुहाग एक ब्राह्मण ब्राह्मणी थे उनके पांच बेटिया थी | पांचो बेटिया विधिविधान से देवाधिदेव महादेव व माँ पार्वती का विधिपूर्वक पूजन कर अमर सुहाग की कथा सुनती थी |पूजा के समय चोरो बेटिया दीपक जलाती तो पूजा पूर्ण होने तक जलता रहता | परन्तु पांचवी बेटी का दीपक कहानी सुनने से पहले ही बड़ा हो जाता | यह देखकर पांचवी बेटी को चिंता होने लगी | सभी बहनों का दीपक तो जलता हैं | मेरा दीपक बड़ा क्यों हो जाता हैं | एक दिन पांचवी बेटी ने घर जाकर माँ को सारी बात बताई तब माँ ने कहा बेटा इसमें चिंता की कोई बात नहीं हैं | कल से तू दीपक में घी अधिक डालना | बेटी ऐसा करने लगी | कुछ समय पश्चात ब्राह्मण ने पांचों बेटियों का विवाह कर दिया | चारों बेटियों के घर में अन्न धन के भंडार भरे थे परन्तु पांचवी बेटी की आर्थिक स्थति थौड़ी कमजोर थी | उसका पति जंगल से लकड़ी काट कर लाकर घर चलाता था | परन्तु पांचवी बेटी संतोषी व बहुत समझदार थी | कभी किसी से शिकायत नहीं करती थी | विवाह के बाद भी महादेव माँ पार्वती का पूजन करती थी | एक दिन उसका पति कम लकडिया लेकर आया तो उसने पूछा क्या हुआ आज लकड़ी कम लाये हो तो पति ने कहा आज मेरी तबियत खराब हैं मुझे बुखार हैं |

दुसरे दिन लडकी ने पति से कहा आज आपकी तबियत ठीक नही हैं आज में भी आपकी साथ चलूंगी | उसने सास ससुर से आज्ञा लेकर पति के साथ चल पड़ी |जंगल में पति की तबियत खराब हो गई | और पति की मृत्यु हो गई | जंगल में अकेली थी कोई मदद के लिए नहीं थी | पति का सिर गोद में रखकर विलाप करने लगी | रोते रोते शिव पार्वती जी को पुकारने लगी | हे महादेव हे माँ पार्वती मैंने सदैव आपका ध्यान पूजन किया हैं आपके सिवा मेरा कोई नहीं हैं में घर जाकर अपने बूढ़े सास ससुर को क्या कहूंगी | लडकी का विलाप और सच्ची भक्ति देखकर माँ पार्वती ने कहा हे प्राण नाथ इस निर्जन जंगल में हमें कौन पुकार रका हैं हमें उसकी रक्षा करनी चाहिए | माँ पार्वती ने पूछा लडकी क्या हुआ हैं ? तुम क्यों रो रही हो | तब लडकी ने सारी बात बताई और मादेव जी पार्वती माता के चरण पकड़ लिए और विनती करने लगी | उसकी पूजा भक्ति से प्रसन्न होकर उसके पति को जीवन दान दिया | और आशीर्वाद दिया की जो कोई भी सुहागन स्त्री श्रद्धा भक्ति से अमर सुहाग की शिव पूजन कर कथा सुनेगी वह सदैव अखण्ड सौभाग्यवती रहगी | उसके सुख सम्पति अन्न धन के भंडार सदैव भरे रहेंगे |

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