Loading...

KARMASU

Vindhayavasini Stotra

Vindhayavasini Stotra:विंध्यवासिनी स्तोत्र (श्री विंध्यवासिनी स्तोत्र): माता विंध्यवासिनी स्वरूप भी देवी वत्सल की भक्त हैं और कहा जाता है कि यदि कोई भक्त थोड़ी सी भी श्रद्धा से माता की पूजा करता है, तो माता उसे मुक्ति और मोक्ष प्रदान करती हैं। विंध्याचल पर्वत श्रृंखला में उनका निवास – माता की निरंतर उपस्थिति ने विंध्य पर्वत को जाग्रत शक्तिपीठ की श्रेणी में ला खड़ा किया है और विश्व समुदाय में अतुलनीय सम्मान दिलाया है।

Vindhayavasini Stotra
Vindhayavasini Stotra

माता विंध्यवासिनी Vindhayavasini Stotra स्वरूप भी देवी वत्सल की भक्त हैं और कहा जाता है कि यदि कोई भक्त थोड़ी सी भी श्रद्धा से माता की पूजा करता है, तो माता उसे मुक्ति और मोक्ष प्रदान करती हैं। विंध्याचल पर्वत श्रृंखला में उनका निवास – माता की निरंतर उपस्थिति ने विंध्य पर्वत को जाग्रत शक्तिपीठ की श्रेणी में ला खड़ा किया है और विश्व समुदाय में अतुलनीय सम्मान दिलाया है। पुराणों में विंध्य क्षेत्र का महत्व संस्कार के रूप में वर्णित किया गया है।

विंध्याचल की पर्वत शृंखलाओं में गंगा की पावन धारा की कल-कल ध्वनियाँ प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरती हैं। विंध्याचल पर्वत न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा स्थल है, बल्कि संस्कृति का अद्भुत अध्याय भी है। इसकी माटी में पुराणों की अनेक पौराणिक मान्यताएँ तथा अतीत के अनेक अध्याय समाए हुए हैं। श्रीमद्भगवती महापुराण (महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित) के श्रीकृष्ण-जीवन प्रकरण में अवतार (देवकी के आठवें जन्म से उद्धृत) के संबंध में कहा गया है।

यदि थोड़ा विचार करें तो एक माँ की करुण दृष्टि, यदि पाषाण समूह को इस श्रेणी में खड़ा कर दे, तो पूर्ण श्रद्धा से पूजन करने पर माँ उसे क्या नहीं देगी? प्रयाग और काशी के मध्य (मिर्जापुर नगर के अंतर्गत) विंध्याचल नामक तीर्थ है, जहाँ माँ Vindhayavasini Stotra विंध्यवासिनी रूप में निवास करती हैं। श्रीगंगा के तट पर स्थित इस महातीर्थ शास्त्र को सभी शक्तिपीठों में प्रधान बताया गया है।

यह महातीर्थ भारत के 51 शक्तिपीठों में प्रथम एवं अंतिम शक्तिपीठ है जो गंगा नदी के तट पर स्थित है। Vindhayavasini Stotra विंध्येश्वरी की महिमा जगत में अपार है। इस स्तोत्र को पढ़ने से देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है। व्यक्ति को धन, आरोग्य, सुख, समृद्धि, सौभाग्य एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए व्यक्ति को प्रातःकाल विंध्यवासिनी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

विंध्यवासिनी स्तोत्र के लाभ
जो कोई भी व्यक्ति श्रद्धा एवं विश्वास के साथ 9 दिनों तक नियमित रूप से विंध्यवासिनी स्तोत्र का जाप करता है, उसे जीवन में सफलता मिलती है। विंध्यवासिनी स्तोत्र से धन, सुख, समृद्धि, वैभव, शक्ति एवं सौभाग्य में वृद्धि होती है।

किसको करना चाहिए यह स्तोत्र का पाठ:
जो व्यक्ति बाधा रहित जीवन चाहते हैं, उन्हें प्रातःकाल नियमित रूप से विंध्यवासिनी स्तोत्र का जाप करना चाहिए।

Vividh Dev Stotrani: श्री विविध देव स्तोत्राणि Vividh Dev Stotrani

Vividh Dev Stotrani: श्री विविध देव स्तोत्राणि

श्री विविध देव स्तोत्राणि हिंदी पाठ: Vividh Dev Stotrani in Hindi ।। श्री गणपति स्तोत्रम् ।। Vividh Dev Stotrani जेतुं यस्त्रिपुरं हरेण हरिणा…

Vishwavasu Gandharv Stotra: श्री विश्वावसु गन्धर्व स्तोत्र Vishwavasu Gandharv Stotra

Vishwavasu Gandharv Stotra: श्री विश्वावसु गन्धर्व स्तोत्र

Vishwavasu Gandharv Stotra: विश्वावसु गंधर्व स्तोत्र (श्री विश्वावसु गंधर्व स्तोत्र): विवाह के लिए ज्योतिष शास्त्र का एक नियम है, सप्तम…

Viprapatni Krita Krishna Stotra:श्री विप्रपत्नी कृत श्रीकृष्ण स्तोत्र Viprapatni Krita Krishna Stotra

Viprapatni Krita Krishna Stotra:श्री विप्रपत्नी कृत श्रीकृष्ण स्तोत्र

श्री विप्रपत्नी कृत श्रीकृष्ण स्तोत्र हिंदी पाठ:Viprapatni Krita Krishna Stotra in Hindi Viprapatni Krita Krishna Stotra:त्वं ब्रह्म परमं धाम निरीहो निरहंकृतिः ।निर्गुणश्च…

निशुम्भ-शुम्भ-मर्दिनीं, प्रचण्ड-मुण्ड-खण्डिनीम् ।
वने-रणे प्रकाशिनीं, भजामि विन्ध्य-वासिनीम् ।। 1 ।।

त्रिशूल-मुण्ड-धारिणीं, धरा-विघात-हारिणीम् ।
गृहे गृहे निवासिनीं, भजामि विन्ध्य-वासिनीम ।। 2 ।।

दरिद्र-दु:ख-हारिणीं, सतां विभूति-कारिणीम् ।
वियोग-शोक-हारिणीं, भजामि विन्ध्य-वासिनीम् ।। 3 ।।

लसत-सुलोल-लोचनां, लतां सदा-वर-प्रदाम् ।
कपाल-शूल-धारिणीं, भजामि विन्ध्य-वासिनीम् ।। 4 ।।

करे मुदा गदा-धरां, शिवां शिव-प्रदायिनीम् ।
वरा-वरा-ननां शुभां, भजामि विन्ध्य-वासिनीम् ।। 5 ।।

ऋषीन्द्र-जामिन-प्रदां, त्रिधास्य-रूप-धारिणिम् ।
जले स्थले निवासिनीं, भजामि विन्ध्य-वासिनीम् ।। 6 ।।

विशिष्ट-सृष्टि-कारिणीं, विशाल-रूप-धारिणीम् ।
महोदरां विशालिनीं, भजामि विन्ध्य-वासिनीम् ।। 7 ।।

प्रन्दरादि-सेवितां, मुरादि-वंश-खण्डिनीम् ।
विशुद्ध-बुद्धि-कारिणीं, भजामि विन्ध्य-वासिनीम् ।। 8 ।।

।। इति श्री विंध्यवासिनी स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *