Siddhivinayak Aarti:सिद्धिविनायक आरती गणपति जी की विशेष आरती है, जो भक्तों को भगवान गणेश की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का एक सशक्त माध्यम है। भगवान सिद्धिविनायक को विघ्नहर्ता और बुद्धि, विवेक, और समृद्धि के दाता माना जाता है। इस आरती को श्रद्धा से करने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।
Siddhivinayak Aarti:सिद्धिविनायक आरती के लाभ
1. विघ्नों और बाधाओं का निवारण
- Siddhivinayak Aarti भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। Siddhivinayak Aarti सिद्धिविनायक आरती करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं और समस्याएं दूर होती हैं। कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
2. समृद्धि और आर्थिक लाभ
- सिद्धिविनायक की आरती से धन और समृद्धि का आगमन होता है। Siddhivinayak Aarti यह आरती आर्थिक समस्याओं से मुक्ति दिलाने और व्यवसाय में उन्नति के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।
3. बुद्धि और विवेक की वृद्धि
- गणेश जी को ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है। उनकी आरती करने से व्यक्ति की निर्णय क्षमता और मानसिक शक्ति बढ़ती है।
4. मनोकामनाओं की पूर्ति
- जो भी भक्त श्रद्धा से सिद्धिविनायक की आरती करता है, उसकी सभी उचित इच्छाएं पूरी होती हैं। भगवान गणेश भक्तों की मनोकामनाओं को शीघ्र पूरा करते हैं।
5. पारिवारिक सुख और शांति
- Siddhivinayak Aarti जब परिवार के सभी सदस्य मिलकर आरती करते हैं, तो घर में सुख-शांति और एकता का वातावरण बनता है। पारिवारिक संबंधों में मजबूती आती है।
6. मानसिक शांति और सकारात्मकता
- Siddhivinayak Aarti आरती के समय गाए जाने वाले भजन और मंत्र मन को शांति प्रदान करते हैं। इससे तनाव और चिंता कम होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
7. शुभ कार्यों में सफलता
- Siddhivinayak Aarti किसी भी शुभ कार्य या नए कार्य को शुरू करने से पहले गणपति जी की आरती करने से कार्य निर्विघ्न रूप से संपन्न होता है।
8. स्वास्थ्य में सुधार
- सिद्धिविनायक आरती करने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह आरती भक्तों को ऊर्जा और उत्साह से भर देती है।
9. ईश्वरीय कृपा और आशीर्वाद
- Siddhivinayak Aarti नियमित रूप से सिद्धिविनायक की आरती करने से भक्तों पर भगवान गणेश की कृपा और आशीर्वाद बना रहता है। इससे जीवन में हर क्षेत्र में सफलता और सुख मिलता है।
सिद्धिविनायक आरती के शब्द:
“जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती,
दर्शन मात्रे मन कामना पूर्ति।“
Siddhivinayak Aarti:यह आरती भगवान गणेश की महिमा का गुणगान करती है और उनके भक्तों के जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि लाने का मार्ग प्रशस्त करती है। नियमित रूप से इस आरती का पाठ करने से भक्त गणेश जी की कृपा से अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।
Shri Siddhivinayak Aarti:श्री सिद्धिविनायक आरती
Siddhivinayak Aarti:श्री सिद्धिविनायक मंदिर मुंबई का सबसे प्रसिद्ध भगवान श्री गणेश मंदिर है, यहाँ होने वाली पूर्ण आरती मे श्री गणेश की विभिन्न स्तुतियाँ, भगवान शिव एवं देवी दुर्गा की स्तुतियाँ भी जुड़ी हैं।
सुख करता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नाची ।
नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची ।
सर्वांगी सुन्दर उटी शेंदु राची ।
कंठी झलके माल मुकताफळांची ।
जय देव जय देव..
जय देव जय देव,
जय मंगल मूर्ति ।
दर्शनमात्रे मनः,
कामना पूर्ति
जय देव जय देव ॥
रत्नखचित फरा तुझ गौरीकुमरा ।
चंदनाची उटी कुमकुम केशरा ।
हीरे जडित मुकुट शोभतो बरा ।
रुन्झुनती नूपुरे चरनी घागरिया ।
जय देव जय देव..
जय देव जय देव,
जय मंगल मूर्ति ।
दर्शनमात्रे मनः,
कामना पूर्ति
जय देव जय देव ॥
लम्बोदर पीताम्बर फनिवर वंदना ।
सरल सोंड वक्रतुंडा त्रिनयना ।
दास रामाचा वाट पाहे सदना ।
संकटी पावावे निर्वाणी, रक्षावे सुरवर वंदना ।
जय देव जय देव..
जय देव जय देव,
जय मंगल मूर्ति ।
दर्शनमात्रे मनः,
कामना पूर्ति
जय देव जय देव ॥
॥ श्री गणेशाची आरती ॥
शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको ।
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहरको ।
हाथ लिए गुड लड्डू सांई सुरवरको ।
महिमा कहे न जाय लागत हूं पादको ॥
जय देव जय देव..
जय देव जय देव,
जय जय श्री गणराज ।
विद्या सुखदाता
धन्य तुम्हारा दर्शन
मेरा मन रमता,
जय देव जय देव ॥
अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि ।
विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी ।
कोटीसूरजप्रकाश ऐबी छबि तेरी ।
गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारि ॥
जय देव जय देव..
जय देव जय देव,
जय जय श्री गणराज ।
विद्या सुखदाता
धन्य तुम्हारा दर्शन
मेरा मन रमता,
जय देव जय देव ॥
भावभगत से कोई शरणागत आवे ।
संतत संपत सबही भरपूर पावे ।
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे ।
गोसावीनंदन निशिदिन गुन गावे ॥
जय देव जय देव..
जय देव जय देव,
जय जय श्री गणराज ।
विद्या सुखदाता
धन्य तुम्हारा दर्शन
मेरा मन रमता,
जय देव जय देव ॥
॥ श्री शंकराची आरती ॥
लवथवती विक्राळा ब्रह्मांडी माळा,
वीषे कंठ काळा त्रिनेत्री ज्वाळा
लावण्य सुंदर मस्तकी बाळा,
तेथुनिया जळ निर्मळ वाहे झुळझुळा ॥
जय देव जय देव..
जय देव जय देव,
जय श्रीशंकरा ।
आरती ओवाळू,
तुज कर्पुरगौरा
जय देव जय देव ॥
कर्पुरगौरा भोळा नयनी विशाळा,
अर्धांगी पार्वती सुमनांच्या माळा
विभुतीचे उधळण शितकंठ नीळा,
ऐसा शंकर शोभे उमा वेल्हाळा ॥
जय देव जय देव..
जय देव जय देव,
जय श्रीशंकरा ।
आरती ओवाळू,
तुज कर्पुरगौरा
जय देव जय देव ॥
देवी दैत्यी सागरमंथन पै केले,
त्यामाजी अवचित हळहळ जे उठले
ते त्वा असुरपणे प्राशन केले,
नीलकंठ नाम प्रसिद्ध झाले ॥
जय देव जय देव..
जय देव जय देव,
जय श्रीशंकरा ।
आरती ओवाळू,
तुज कर्पुरगौरा
जय देव जय देव ॥
व्याघ्रांबर फणिवरधर सुंदर मदनारी,
पंचानन मनमोहन मुनिजनसुखकारी
शतकोटीचे बीज वाचे उच्चारी,
रघुकुलटिळक रामदासा अंतरी ॥
जय देव जय देव..
जय देव जय देव,
जय श्रीशंकरा ।
आरती ओवाळू,
तुज कर्पुरगौरा
जय देव जय देव ॥
॥ श्री देवीची आरती ॥
दुर्गे दुर्घट भारी तुजविण संसारी,
अनाथनाथे अंबे करुणा विस्तारी ।
वारी वारीं जन्ममरणाते वारी,
हारी पडलो आता संकट नीवारी ॥
जय देवी जय देवी..
जय देवी जय देवी,
जय महिषासुरमथनी ।
सुरवर-ईश्वर-वरदे,
तारक संजीवनी
जय देवी जय देवी ॥
त्रिभुवनी भुवनी पाहतां तुज ऎसे नाही,
चारी श्रमले परंतु न बोलावे काहीं ।
साही विवाद करितां पडिले प्रवाही,
ते तूं भक्तालागी पावसि लवलाही ॥
जय देवी जय देवी..
जय देवी जय देवी,
जय महिषासुरमथनी ।
सुरवरईश्वरवरदे,
तारक संजीवनी
जय देवी जय देवी ॥
प्रसन्न वदने प्रसन्न होसी निजदासां,
क्लेशापासूनि सोडी तोडी भवपाशा ।
अंवे तुजवांचून कोण पुरविल आशा,
नरहरि तल्लिन झाला पदपंकजलेशा ॥
जय देवी जय देवी..
जय देवी जय देवी,
जय महिषासुरमथनी ।
सुरवरईश्वरवरदे,
तारक संजीवनी
जय देवी जय देवी ॥
॥ घालीन लोटांगण आरती ॥
घालीन लोटांगण, वंदीन चरण ।
डोळ्यांनी पाहीन रुप तुझें ।
प्रेमें आलिंगन, आनंदे पूजिन ।
भावें ओवाळीन म्हणे नामा ॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।
त्वमेव बंधुक्ष्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विध्या द्रविणं त्वमेव ।
त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥
कायेन वाचा मनसेंद्रीयेव्रा,
बुद्धयात्मना वा प्रकृतिस्वभावात ।
करोमि यध्य्त सकलं परस्मे,
नारायणायेति समर्पयामि ॥
अच्युतं केशवं रामनारायणं,
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं,
जानकीनायकं रामचंद्र भजे ॥
हरे राम हर राम,
राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण,
कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।