BHAGAVAD GITA COMPLETE COURSE भगवद्गीता सम्पूर्ण कोर्स

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About Course

BHAGAVAD GITA COMPLETE COURSE

भगवद गीता एक महत्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक ग्रंथ है, जो “महाभारत” महाकाव्य के भीष्म पर्व के अंतर्गत आता है। यह ग्रंथ श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुई एक महत्वपूर्ण संवाद पर आधारित है और इसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार किए जाते हैं, जैसे कि धर्म, कर्म, भक्ति, और अध्यात्मा। यह ग्रंथ हिन्दू धर्म के अनुसार जीवन के मार्ग को समझाने और जीवन के सार्थकता को समझाने का प्रयास करता है।

पहला अध्याय : गीता का पहला अध्याय अर्जुन-विषाद योग है। इसमें 46 श्लोकों द्वारा अर्जुन की मन: स्थिति का वर्णन किया गया है कि किस तरह अर्जुन अपने सगे-संबंधियों से युद्ध करने से डरते हैं और किस तरह भगवान कृष्ण उन्हें समझाते हैं।

दूसरा अध्याय : गीता के दूसरे अध्याय सांख्य-योग+ में कुल 72 श्लोक हैं जिसमें श्रीकृष्ण, अर्जुन को कर्मयोग, ज्ञानयोग, सांख्ययोग, बुद्धि योग और आत्म का ज्ञान देते हैं। यह अध्याय वास्तव में पूरी गीता का सारांश है। इसे बेहद महत्वपूर्ण भाग माना जाता है।

तीसरा अध्याय : गीता का तीसरा अध्याय कर्मयोग है, इसमें 43 श्लोक हैं। श्रीकृष्ण इसमें अर्जुन को समझाते हैं कि परिणाम की चिंता किए बिना हमें हमारा कर्म करते रहना चाहिए।

चौथा अध्याय : ज्ञान कर्म संन्यास योग गीता का चौथा अध्याय है, जिसमें 42 श्लोक हैं। अर्जुन को इसमें श्रीकृष्ण बताते हैं कि धर्मपारायण के संरक्षण और अधर्मी के विनाश के लिए गुरु का अत्यधिक महत्व है।

पांचवां अध्याय : कर्म संन्यास योग गीता का पांचवां अध्याय है, जिसमें 29 श्लोक हैं। अर्जुन इसमें श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि कर्मयोग और ज्ञान योग दोनों में से उनके लिए कौन-सा उत्तम है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि दोनों का लक्ष्य एक है परन्तु कर्म योग बेहतर है।

छठा अध्याय : आत्मसंयम योग गीता का छठा अध्याय है, जिसमें 47 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण, अर्जुन को अष्टांग योग के बारे में बताते हैं। वह बताते हैं कि किस प्रकार मन की दुविधा को दूर किया जा सकता है।

सातवां अध्याय : ज्ञानविज्ञान योग गीता का सातवां अध्याय है, जिसमें 30 श्लोक हैं।  इसमें श्रीकृष्ण निरपेक्ष वास्तविकता और उसके भ्रामक ऊर्जा +माया+ के बारे में अर्जुन को बताते हैं।

आठवां अध्याय : गीता का आठवां अध्याय अक्षरब्रह्मयोग है, जिसमें 28 श्लोक हैं। गीता के इस पाठ में स्वर्ग और नरक का सिद्धांत शामिल है। इसमें मृत्यु से पहले व्यक्ति को सोच, आध्यात्मिक संसार तथा नरक और स्वर्ग को जाने की राह के बारे में बताया गया है।

नौवां अध्याय : राजविद्याराजगुह्य योग गीता का नवां अध्याय है, जिसमें 34 श्लोक हैं। इसमें यह बताया है कि श्रीकृष्ण की आंतरिक ऊर्जा सृष्टि को व्याप्त बनाती है उसका सृजन करती है और पूरे ब्रह्मांड को नष्ट कर देती है।

दसवां अध्याय : विभूति योग गीता का दसवां अध्याय है जिसमें 42 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को यह बताते हैं कि किस प्रकार सभी तत्वों और आध्यात्मिक अस्तित्व के अंत का कारण बनते हैं।

ग्यारहवां अध्याय : विश्वस्वरूपदर्शन योग गीता का ग्यारहवां अध्याय है जिसमें 55 श्लोक हैं। इस अध्याय में अर्जुन के निवेदन पर श्रीकृष्ण अपना विश्वरूप धारण करते हैं।

बारहवां अध्याय : भक्ति योग गीता का बारहवां अध्याय है जिसमें 20 श्लोक हैं। इस अध्याय में कृष्ण भगवान भक्ति के मार्ग की महिमा अर्जुन को बताते हैं। इसके साथ ही वह भक्ति योग का वर्णन अर्जुन को सुनाते हैं।

तेरहवां अध्याय : क्षेत्र क्षत्रज्ञ विभाग योग गीता तेरहवां अध्याय है इसमें 35 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के ज्ञान के बारे में तथा सत्व, रज और तम गुणों द्वारा अच्छी योनि में जन्म लेने का उपाय बताते हैं।

चौदहवां अध्याय : गणत्रय विभाग योग है इसमें 27 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण सत्व, रज और तम गुणों का तथा मनुष्य की उत्तम, मध्यम अन्य गतियों का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हैं। अंत में इन गुणों को पाने का उपाय और इसका फल बताया गया है।

पंद्रहवां अध्याय : गीता का पंद्रहवां अध्याय पुरुषोत्तम योग है, इसमें 20 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण कहते हैं कि दैवी प्रकृति वाले ज्ञानी पुरुष सर्व प्रकार से मेरा भजन करते हैं तथा आसुरी प्रकृति वाले अज्ञानी पुरुष मेरा उपहास करते हैं।

सोलहवां अध्याय : दैवासुरसंपद्विभाग योग गीता का सोलहवां अध्याय है, इसमें 24 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण स्वाभाविक रीति से ही दैवी प्रकृति वाले ज्ञानी पुरुष तथा आसुरी प्रकृति वाले अज्ञानी पुरुष के लक्षण के बारे में बताते हैं।

सत्रहवां अध्याय : श्रद्धात्रय विभाग योग गीता का सत्रहवां अध्याय है, इसमें 28 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को यह बताते हैं कि जो शास्त्र विधि का ज्ञान न होने से तथा अन्य कारणों से शास्त्र विधि छोडऩे पर भी यज्ञ, पूजा आदि शुभ कर्म तो श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनकी स्थिति क्या होती है।

अठारहवां अध्याय : मोक्ष-संन्यास योग गीता का अठारहवां अध्याय है, इसमें 78 श्लोक हैं। यह अध्याय पिछले सभी अध्यायों का सारांश है। इसमें अर्जुन, श्रीकृष्ण से न्यास यानी ज्ञानयोग का और त्याग अर्थात फलासक्ति रहित कर्मयोग का तत्व जानने की इच्छा प्रकट करते हैं।

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What Will You Learn?

  • कर्म का महत्व: गीता में कर्म के महत्व को बताया गया है। हमें कर्म करते समय सही दिशा में आत्मा की उन्नति के लिए समर्पित रहना चाहिए।
  • निःस्वार्थ कर्म: गीता के अनुसार, हमें कर्म करते समय फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। यह हमें निःस्वार्थता और सच्ची प्रेम की दिशा में ले जाता है।
  • ध्यान और अध्यात्मिकता: गीता में ध्यान और अध्यात्मिकता के महत्व को प्रमोट किया गया है। यह हमें अपने आत्मा की ओर अग्रसर होने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • आत्मा का स्वरूप: गीता में आत्मा के स्वरूप और परमात्मा के साथ के संबंध को समझाने का प्रयास किया गया है। यह हमें अपने आत्मा की महत्वपूर्णता को समझाता है।
  • नैतिकता और धर्म: गीता में नैतिकता और धर्म के महत्व को बताया गया है। यह हमें सही और गलत के बीच विवेक करने की महत्वपूर्णता को समझाता है।
  • सामर्पण और आत्म-समर्पण: गीता में सामर्पण और आत्म-समर्पण के महत्व को प्रमोट किया गया है। यह हमें अपने कार्यों को सच्ची भक्ति के साथ करने की महत्वपूर्णता को समझाता है।
  • समस्याओं का समाधान: गीता में समस्याओं का समाधान निकालने के लिए तर्किक और मानसिक उपाय बताए गए हैं, जिससे हम अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं का समाधान खोज सकते हैं।
  • उद्देश्य और लक्ष्य: गीता हमें जीवन के उद्देश्य और लक्ष्य को समझने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है, जिससे हम अपने जीवन को एक सफल और प्राप्तिशील दिशा में ले जा सकते हैं।
  • भगवद गीता के उपदेश हमारे जीवन में नैतिकता, आत्मा के विकास, और सच्चे जीवन के मार्ग के बारे में ज्ञान प्रदान करते हैं। इसे पढ़कर और समझकर हम अपने जीवन को सार्थक और धार्मिक तरीके से जी सकते हैं।

Course Content

भगवद्गीता की प्रस्तावना
भगवद गीता की प्रस्तावना भीष्म पर्व में महाभारत के अंतर्गत मिलती है और यह महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें गीता के संदर्भ और महत्व का वर्णन किया गया है। गीता की प्रस्तावना में यह बताया जाता है कि कैसे युद्धभूमि पर खड़े हुए अर्जुन की मानसिक स्थिति का विवेचन हो रहा है और उसकी समस्याओं का समाधान करने के लिए भगवद गीता का ज्ञान दिया जा रहा है। इस प्रस्तावना में अर्जुन अपने रथ को दोनों सेनाओं के बीच खड़ा करते हैं और वहाँ अपने परिवार के सदस्यों, शिक्षकों, और मित्रों को देखते हैं जो युद्ध के लिए तैयार हैं, लेकिन उनके दिल में विभिन्न विचार और संशय हैं। अर्जुन इस घमंडी युद्ध में सहयोग करने के लिए अपने स्नेही, गुरु, और प्रियजनों का विरोध करते हैं और उनका मन विचलित हो जाता है। इस मामूली संघर्ष के बावजूद, यह संदर्भ महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे आगामी युद्ध की तयारियों के बीच आता है, जिसमें अर्जुन को अपने कर्तव्य का स्वरूप और महत्व समझाया जाता है। इस प्रस्तावना में गीता के उपदेश के लिए एक परिपूर्ण मानसिक संघर्ष की आवश्यकता का उल्लेख किया जाता है और इसके बाद गीता के संदेश का प्रस्तावना किया जाता है। इस प्रस्तावना के बाद, गीता में भगवद कृष्ण अर्जुन के मानसिक संशयों और समस्याओं का समाधान देने के लिए उनके संग कार्य करते हैं और उन्हें अपने कर्मों के प्रति निष्कल्म भावना का गहरा ज्ञान देते हैं। इस प्रकार, गीता का संदेश मन, आत्मा, और धर्म के महत्व को समझाने में मदद करता है।

  • अवनि कुमार पाण्डेय जी के द्वारा श्रीमद् भगवद्गीता की व्याख्या का प्रारंभ
    14:48
  • गीता की प्रस्तावना
    18:48

अर्जुन-विषाद योग
पहला अध्याय : गीता का पहला अध्याय अर्जुन-विषाद योग है। इसमें 46 श्लोकों द्वारा अर्जुन की मन: स्थिति का वर्णन किया गया है कि किस तरह अर्जुन अपने सगे-संबंधियों से युद्ध करने से डरते हैं और किस तरह भगवान कृष्ण उन्हें समझाते हैं।

सांख्य-योग
दूसरा अध्याय : गीता के दूसरे अध्याय सांख्य-योग+ में कुल 72 श्लोक हैं जिसमें श्रीकृष्ण, अर्जुन को कर्मयोग, ज्ञानयोग, सांख्ययोग, बुद्धि योग और आत्म का ज्ञान देते हैं। यह अध्याय वास्तव में पूरी गीता का सारांश है। इसे बेहद महत्वपूर्ण भाग माना जाता है।

कर्मयोग
तीसरा अध्याय : गीता का तीसरा अध्याय कर्मयोग है, इसमें 43 श्लोक हैं। श्रीकृष्ण इसमें अर्जुन को समझाते हैं कि परिणाम की चिंता किए बिना हमें हमारा कर्म करते रहना चाहिए।

ज्ञान कर्म संन्यास योग
चौथा अध्याय : ज्ञान कर्म संन्यास योग गीता का चौथा अध्याय है, जिसमें 42 श्लोक हैं। अर्जुन को इसमें श्रीकृष्ण बताते हैं कि धर्मपारायण के संरक्षण और अधर्मी के विनाश के लिए गुरु का अत्यधिक महत्व है।

कर्म संन्यास योग
पांचवां अध्याय : कर्म संन्यास योग गीता का पांचवां अध्याय है, जिसमें 29 श्लोक हैं। अर्जुन इसमें श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि कर्मयोग और ज्ञान योग दोनों में से उनके लिए कौन-सा उत्तम है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि दोनों का लक्ष्य एक है परन्तु कर्म योग बेहतर है।

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