
About Course
अष्टावक्र गीता अद्वैत वेदान्त का ग्रन्थ है जो ऋषि अष्टावक्र और राजा जनक के संवाद के रूप में है। भगवद्गीता, उपनिषद और ब्रह्मसूत्र के सामान अष्टावक्र गीता अमूल्य ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में ज्ञान, वैराग्य, मुक्ति और समाधिस्थ योगी की दशा का सविस्तार वर्णन है।
इस पुस्तक के बारे में किंवदंती है कि रामकृष्ण परमहंस ने भी यही पुस्तक नरेंद्र को पढ़ने को कहा था जिसके पश्चात वे उनके शिष्य बने और कालांतर में स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए।
इस ग्रंथ का प्रारम्भ राजा जनक द्वारा किये गए तीन प्रश्नों से होता है। (१) ज्ञान कैसे प्राप्त होता है? (२) मुक्ति कैसे होगी? और (३) वैराग्य कैसे प्राप्त होगा? ये तीन शाश्वत प्रश्न हैं जो हर काल में आत्मानुसंधानियों द्वारा पूछे जाते रहे हैं। ऋषि अष्टावक्र ने इन्हीं तीन प्रश्नों का संधान राजा जनक के साथ संवाद के रूप में किया है जो अष्टावक्र गीता के रूप में प्रचलित है। ये सूत्र आत्मज्ञान के सबसे सीधे और सरल वक्तव्य हैं। इनमें एक ही पथ प्रदर्शित किया गया है जो है ज्ञान का मार्ग। ये सूत्र ज्ञानोपलब्धि के, ज्ञानी के अनुभव के सूत्र हैं। स्वयं को केवल जानना है—ज्ञानदर्शी होना, बस। कोई आडम्बर नहीं, आयोजन नहीं, यातना नहीं, यत्न नहीं, बस हो जाना वही जो हो। इसलिए इन सूत्रों की केवल एक ही व्याख्या हो सकती है, मत मतान्तर का कोई झमेला नहीं है; पाण्डित्य और पोंगापंथी की कोई गुंजाइश नहीं है।
अष्टावक्र गीता में २० अध्याय हैं-
- साक्षी
- आश्चर्यम्
- आत्माद्वैत
- सर्वमात्म
- लय
- प्रकृतेः परः
- शान्त
- मोक्ष
- निर्वाण
- वैराग्य
- चिद्रूप
- स्वभाव
- यथासुखम्
- ईश्वर
- तत्त्वम्
- स्वास्थ्य
- कैवल्य
- जीवन्मुक्ति
- स्वमहिमा
- अकिंचनभाव
Course Content
अष्टावक्र गीता
-
राजा जनक द्वारा किये गए तीन प्रश्न
04:32 -
अष्टावक्र गीता द्वितीया अध्याय
05:43 -
अष्टावक्र गीता का तीसरा अध्याय
22:00 -
अष्टावक्र गीता का चौथा अध्याय
20:00 -
अष्टावक्र गीता का पांचवा अध्याय
19:00 -
अष्टावक्र गीता का छठा अध्याय
34:00 -
अष्टावक्र गीता का सातवाँ अध्याय
32:00 -
अष्टावक्र गीता का आठवाँ अध्याय
24:00 -
अष्टावक्र गीता का नवां अध्याय
34:00 -
अष्टावक्र गीता का दसवां अध्याय
23:00